-तेजवानी गिरधर-
अमेरिका के ह्यूस्टन में पचास हजार भारतीयों के बड़े व ऐतिहासिक जलसे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी को भले ही मोटे तौर पर दोनों देशों के संबंध मजबूत होने के रूप में देखा गया हो, मगर मोदी के, अगली बार ट्रंप सरकार, के नारे ने यह संदेह उत्पन्न कर दिया है कि मोदी की इस यात्रा का साइलेंट एजेंडा क्या ट्रंप के लिए प्रवासी भारतीयों के वोट जुटाना था। हो सकता है कि ट्रंप की गरिमामय मौजूदगी में मोदी ने अति उत्साहित हो कर यह जुमला दिया हो, मगर इसकी जम कर मजम्मत हो रही है।
असल में ऐसा होता ही है कि किन्हीं भी दो राष्ट्रों के शासनाध्यक्ष जब एक मंच शेयर कर रहे होते हैं तो शिष्टाचार में एक दूसरे तारीफ ही करते हैं। दोनों देशों के बीच संबंध और बेहतर होने की बात भी कही जाती है। यह एक सामान्य सी बात है। जैसे मोदी ने भारत और अमेरिकी के बीच गहरे मानवीय संबंधों का जिक्र करते हुए दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने में 'विशेष शख्सियतÓ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के योगदान की सराहना की, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दुनिया मजबूत, फलता-फूलता और संप्रभु भारत देख रही है। मगर जैसे ही मोदी ने यह नारा दिया कि अगली बार ट्रंप सरकार, तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति व कूटनीति के जानकार भौंचक्क रह गए। असल में मोदी को यह समझना होगा कि तारीफ मोदी की नहीं हो रही, बल्कि इसलिए हो रही है कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं। वरना जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो अमेरिका उनको वीजा देने को ही तैयार नहीं था।
जानकारी के अनुसार ऐसा पहली बार हुआ कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर आसीन व्यक्ति को अगली बार चुने जाने का नारा दिया हो, मानो वे किसी चुनावी रैली में बोल रहे हों, और ये रैली ट्रंप के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए ही आयोजित की गई हो। यह बात ठीक है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी को वहां जो सम्मान मिला, वह हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है, मगर सम्मान से अभिभूत हो कर इस प्रकार ट्रंप के लिए प्रवासी भारतीयों से वोट की अपील करना अच्छी हरकत नहीं है। न तो नैतिक रूप से न कूटनीतिक रूप से। समझ में नहीं आता कि ऐसा मोदी के सलाहकारों की राय पर हुआ या फिर मोदी ने अपने स्तर पर ही ऐसा कर दिया। ट्रंप के लिए निजी तौर पर अपील करने से भले ही दोनों के बीच व्यक्तिगत दोस्ती प्रगाढ़ हो जाए, मगर सोचने वाली बात ये है कि भारत को इससे क्या मतलब कि अमेरिका में ट्रंप दुबारा सरकार बनाएं या कोई और? क्या ऐसा करके हमने दूसरे देश की भीतरी राजनीति में हिस्सेदारी नहीं निभा दी है? क्या ऐसा करने से चलते रास्ते डमोक्रेट्स व्यर्थ ही हमारे विरोधी नहीं बन जाएंगे? हो सकता है कि मोदी को ये लगा हो कि ट्रंप ही दुबारा चुने जाएंगे, इस कारण ऐसी अपील कर दी हो। अगर उनका अनुमान सही निकलता है तो न केवल अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए अच्छी बात होगी, अपितु दोनों देशों के संबंधों में और सुधार आएगा। लेकिन यदि डेमोक्रट्स जीते तो उनका प्रवासी भारतीयों व भारत के प्रति कैसा नजरिया होगा, ये समझा जा सकता है।
जलसे के तुरंत बाद डेमोक्रेट्स की प्रतिक्रिया आ भी गई। डेमोक्रेट्स नेता बर्नी सैंडर्स ने अपने ट्वीट में कहा कि भारत में धर्म स्वातंत्र्य और मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों को नजरअंदाज कर ट्रंप, मोदी का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ''जब धार्मिक उत्पीडऩ, दमन और निष्ठुरता पर डोनाल्ड ट्रंप चुप रहते हैं तो वे पूरी दुनिया के निरंकुश नेताओं को यह संदेश देते हैं कि तुम जो चाहे करो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगाÓÓ। हालांकि सीधे तौर पर उन्होंने वहां की स्थानीय राजनीति के तहत ट्रंप की आलोचना की, मगर अप्रत्यक्ष रूप से हम भी तो आलोचना के शिकार हो गए।
अमरीका में हुए जबरदस्त जलसे के समानांतर कई घटनाएं हुईं। मीडिया, मोदी के कार्यक्रम में भारतीयों की भारी भीड़ उमडऩे के बारे में तो बहुत कुछ कहता रहा, परंतु इससे जुड़ी कई अन्य घटनाओं को नजरअंदाज किया गया। उदाहरण के लिए, मोदी की नीतियों के विरोध में जो प्रदर्शन वहां हुए, उनकी कोई चर्चा नहीं हुई। यद्यपि अधिकांश दर्शकों ने मोदी का भाषण बिना सोचे-विचारे निगल लिया परंतु स्टेडियम के बाहर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शनकारियों ने मोदी राज में देश की असली स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करवाने का प्रयास किया। बेशक अमरीका में रह रहे भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा हिन्दू राष्टवाद का समर्थक और मोदी भक्त है, परंतु वहां के कई भारतीय, भारत में मानवाधिकारों की स्थिति और प्रजातांत्रिक अधिकारों के साथ हो रहे खिलवाड़ से चिंतित भी हैं।
ज्ञातव्य है कि मोदी की मानसिकता को जानने वाले इस बात को रेखांकित करते रहे हैं कि मोदी हर वक्त चुनावी मूड में ही रहते हैं। पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे पांच साल तक सदैव कांग्रेस को ऐसे ललकारते रहे, मानों कांग्रेस उनको गंभीर चुनाती दे रही हो। खुद के दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल होने से ही यह सिद्ध हो गया था कि मतदाता ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया है, ऐसे में कांग्रेस, जवाहर लाल नेहरू व राहुल गांधी पर ताबड़तोड़ हमलों से यह भ्रम होता रहा कि क्या मोदी अब भी अपने आपको विरोधी दल का नेता मानते हैं। बावजूद इसके वे कांग्रेस को ही कोसते रहे। दूसरी बार केवल और केवल अपने दम पर प्रचंड बहुमत के साथ जीतने के बाद भी वे कांग्रेस की कमियां गिनाते रहते हैं। कुछ इसी तरह की चुनावी मानसिकता के चलते वे ट्रंप के लिए वोट की अपील कर आए।
अमेरिका के ह्यूस्टन में पचास हजार भारतीयों के बड़े व ऐतिहासिक जलसे में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मौजूदगी को भले ही मोटे तौर पर दोनों देशों के संबंध मजबूत होने के रूप में देखा गया हो, मगर मोदी के, अगली बार ट्रंप सरकार, के नारे ने यह संदेह उत्पन्न कर दिया है कि मोदी की इस यात्रा का साइलेंट एजेंडा क्या ट्रंप के लिए प्रवासी भारतीयों के वोट जुटाना था। हो सकता है कि ट्रंप की गरिमामय मौजूदगी में मोदी ने अति उत्साहित हो कर यह जुमला दिया हो, मगर इसकी जम कर मजम्मत हो रही है।
असल में ऐसा होता ही है कि किन्हीं भी दो राष्ट्रों के शासनाध्यक्ष जब एक मंच शेयर कर रहे होते हैं तो शिष्टाचार में एक दूसरे तारीफ ही करते हैं। दोनों देशों के बीच संबंध और बेहतर होने की बात भी कही जाती है। यह एक सामान्य सी बात है। जैसे मोदी ने भारत और अमेरिकी के बीच गहरे मानवीय संबंधों का जिक्र करते हुए दोनों देशों के संबंधों को मजबूत बनाने में 'विशेष शख्सियतÓ अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के योगदान की सराहना की, वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में दुनिया मजबूत, फलता-फूलता और संप्रभु भारत देख रही है। मगर जैसे ही मोदी ने यह नारा दिया कि अगली बार ट्रंप सरकार, तो अंतरराष्ट्रीय राजनीति व कूटनीति के जानकार भौंचक्क रह गए। असल में मोदी को यह समझना होगा कि तारीफ मोदी की नहीं हो रही, बल्कि इसलिए हो रही है कि वे भारत के प्रधानमंत्री हैं। वरना जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो अमेरिका उनको वीजा देने को ही तैयार नहीं था।
जानकारी के अनुसार ऐसा पहली बार हुआ कि किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद पर आसीन व्यक्ति को अगली बार चुने जाने का नारा दिया हो, मानो वे किसी चुनावी रैली में बोल रहे हों, और ये रैली ट्रंप के लिए जनसमर्थन जुटाने के लिए ही आयोजित की गई हो। यह बात ठीक है कि प्रधानमंत्री के रूप में मोदी को वहां जो सम्मान मिला, वह हम सभी भारतीयों के लिए गर्व की बात है, मगर सम्मान से अभिभूत हो कर इस प्रकार ट्रंप के लिए प्रवासी भारतीयों से वोट की अपील करना अच्छी हरकत नहीं है। न तो नैतिक रूप से न कूटनीतिक रूप से। समझ में नहीं आता कि ऐसा मोदी के सलाहकारों की राय पर हुआ या फिर मोदी ने अपने स्तर पर ही ऐसा कर दिया। ट्रंप के लिए निजी तौर पर अपील करने से भले ही दोनों के बीच व्यक्तिगत दोस्ती प्रगाढ़ हो जाए, मगर सोचने वाली बात ये है कि भारत को इससे क्या मतलब कि अमेरिका में ट्रंप दुबारा सरकार बनाएं या कोई और? क्या ऐसा करके हमने दूसरे देश की भीतरी राजनीति में हिस्सेदारी नहीं निभा दी है? क्या ऐसा करने से चलते रास्ते डमोक्रेट्स व्यर्थ ही हमारे विरोधी नहीं बन जाएंगे? हो सकता है कि मोदी को ये लगा हो कि ट्रंप ही दुबारा चुने जाएंगे, इस कारण ऐसी अपील कर दी हो। अगर उनका अनुमान सही निकलता है तो न केवल अमेरिका में रह रहे भारतीयों के लिए अच्छी बात होगी, अपितु दोनों देशों के संबंधों में और सुधार आएगा। लेकिन यदि डेमोक्रट्स जीते तो उनका प्रवासी भारतीयों व भारत के प्रति कैसा नजरिया होगा, ये समझा जा सकता है।
जलसे के तुरंत बाद डेमोक्रेट्स की प्रतिक्रिया आ भी गई। डेमोक्रेट्स नेता बर्नी सैंडर्स ने अपने ट्वीट में कहा कि भारत में धर्म स्वातंत्र्य और मानवाधिकारों पर हो रहे हमलों को नजरअंदाज कर ट्रंप, मोदी का समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने कहा, ''जब धार्मिक उत्पीडऩ, दमन और निष्ठुरता पर डोनाल्ड ट्रंप चुप रहते हैं तो वे पूरी दुनिया के निरंकुश नेताओं को यह संदेश देते हैं कि तुम जो चाहे करो तुम्हारा कुछ नहीं बिगड़ेगाÓÓ। हालांकि सीधे तौर पर उन्होंने वहां की स्थानीय राजनीति के तहत ट्रंप की आलोचना की, मगर अप्रत्यक्ष रूप से हम भी तो आलोचना के शिकार हो गए।
अमरीका में हुए जबरदस्त जलसे के समानांतर कई घटनाएं हुईं। मीडिया, मोदी के कार्यक्रम में भारतीयों की भारी भीड़ उमडऩे के बारे में तो बहुत कुछ कहता रहा, परंतु इससे जुड़ी कई अन्य घटनाओं को नजरअंदाज किया गया। उदाहरण के लिए, मोदी की नीतियों के विरोध में जो प्रदर्शन वहां हुए, उनकी कोई चर्चा नहीं हुई। यद्यपि अधिकांश दर्शकों ने मोदी का भाषण बिना सोचे-विचारे निगल लिया परंतु स्टेडियम के बाहर बड़ी संख्या में विरोध प्रदर्शनकारियों ने मोदी राज में देश की असली स्थिति की ओर ध्यान आकर्षित करवाने का प्रयास किया। बेशक अमरीका में रह रहे भारतीयों का एक बड़ा हिस्सा हिन्दू राष्टवाद का समर्थक और मोदी भक्त है, परंतु वहां के कई भारतीय, भारत में मानवाधिकारों की स्थिति और प्रजातांत्रिक अधिकारों के साथ हो रहे खिलवाड़ से चिंतित भी हैं।
ज्ञातव्य है कि मोदी की मानसिकता को जानने वाले इस बात को रेखांकित करते रहे हैं कि मोदी हर वक्त चुनावी मूड में ही रहते हैं। पहली बार प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे पांच साल तक सदैव कांग्रेस को ऐसे ललकारते रहे, मानों कांग्रेस उनको गंभीर चुनाती दे रही हो। खुद के दम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने में सफल होने से ही यह सिद्ध हो गया था कि मतदाता ने कांग्रेस को पूरी तरह से नकार दिया है, ऐसे में कांग्रेस, जवाहर लाल नेहरू व राहुल गांधी पर ताबड़तोड़ हमलों से यह भ्रम होता रहा कि क्या मोदी अब भी अपने आपको विरोधी दल का नेता मानते हैं। बावजूद इसके वे कांग्रेस को ही कोसते रहे। दूसरी बार केवल और केवल अपने दम पर प्रचंड बहुमत के साथ जीतने के बाद भी वे कांग्रेस की कमियां गिनाते रहते हैं। कुछ इसी तरह की चुनावी मानसिकता के चलते वे ट्रंप के लिए वोट की अपील कर आए।
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