फरीदाबाद स्थित सूरजकुंड में हो रही भाजपा कार्यसमिति की बैठक में जिस प्रकार दो दिन तक राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की अनुपस्थिति रही और उस पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया यह थी कि उन्हें पता नहीं कि वे कहां हैं, साफ जाहिर है कि राजस्थान में वसुंधरा व संघ के बीच अब भी तलवारें खिंची हुई हैं। इस बीच यह भी खबर आई है कि चतुर्वेदी को आगामी विधानसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद पर बनाए रखा जाएगा, यह भी स्पष्ट हो गया है कि भले ही वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाए, मगर टिकट वितरण में उन्हें उतना फ्री हैंड नहीं मिलेगा, जितना कि वे चाहती हैं।
वसुंधरा व संघ के बीच खाई कितनी गहरी है, इसका अंदाजा चतुर्वेदी के बयान से ही जाहिर हो जाता है कि वे कहां हैं और कब आएंगी, कुछ पता नहीं, संवादहीनता चरम पर है। भले ही संघ के नेता यह मानते हों कि वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लडऩे को राजी होना पड़ेगा, मगर वे अपनी टांग भी ऊंची ही रखना चाहते हैं। उनका एकछत्र राज उन्हें मंजूर नहीं। अर्थात अपने हिस्से की टिकटें वे ले कर ही रहेंगे। असल में यह स्थिति इस वजह से भी बनी क्योंकि वसुंधरा लंबे समय तक राजस्थान से बाहर लंदन में जा कर बैठ गईं। पीछे से संघ लॉबी को और लामबंद होने का मौका मिल गया और वसुंधरा खेमे के नेता चुप्पी साधे बैठे रहे। हालत ये हो गई कि इस दरम्यान चतुर्वेदी ने अनेक नियुक्तियां कीं और उसमें वसुंधरा खेमे को नजरअंदाज भी किया।
इससे भी महत्वपूर्ण जानकारी ये आ रही है कि भाजपा हाईकमान फिलहाल संगठन में कोई फेरबदल करने की बजाय उसे यथावत रखना चाहता है, वसुंधरा के लिए परेशानी का सबब बन जाएगा। भले ही चुनाव वसुंधरा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करके लड़ा जाए, मगर टिकट बंटवारे में संघ लॉबी पूरा दखल रखेगी। दोनों धड़ों के बीच टिकटों का अनुपात तय होने के बाद भी खींचतान की नौबत तो आने ही वाली है।
ज्ञातव्य है कि इन दिनों राजस्थान के सभी भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की नजर इसी बात पर है कि वसुंधरा व संघ लॉबी के बीच सुलह किन शर्तों पर होती है। ताजा जानकारियों से तो वसुंधरा लॉबी को थोड़ी हताशा हो रही है, जबकि संघ लॉबी इस बात से खुश है कि वह अपनी बात मनवाने में लगभग कामयाब हो गई है। अब देखना ये है कि वसुंधरा के जयपुर आने पर कैसा माहौल रहता है? क्या ताजा समीकरणों में कोई बदलाव तो नहीं आता?
-तेजवानी गिरधर