तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, सितंबर 28, 2012

वसुंधरा को विधानसभा चुनाव में नहीं मिलेगा फ्री हैंड


फरीदाबाद स्थित सूरजकुंड में हो रही भाजपा कार्यसमिति की बैठक में जिस प्रकार दो दिन तक राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की अनुपस्थिति रही और उस पर प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी की प्रतिक्रिया यह थी कि उन्हें पता नहीं कि वे कहां हैं, साफ जाहिर है कि राजस्थान में वसुंधरा व संघ के बीच अब भी तलवारें खिंची हुई हैं। इस बीच यह भी खबर आई है कि चतुर्वेदी को आगामी विधानसभा चुनाव तक अध्यक्ष पद पर बनाए रखा जाएगा, यह भी स्पष्ट हो गया है कि भले ही वसुंधरा राजे के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा जाए, मगर टिकट वितरण में उन्हें उतना फ्री हैंड नहीं मिलेगा, जितना कि वे चाहती हैं।
वसुंधरा व संघ के बीच खाई कितनी गहरी है, इसका अंदाजा चतुर्वेदी के बयान से ही जाहिर हो जाता है कि वे कहां हैं और कब आएंगी, कुछ पता नहीं, संवादहीनता चरम पर है। भले ही संघ के नेता यह मानते हों कि वसुंधरा के नेतृत्व में चुनाव लडऩे को राजी होना पड़ेगा, मगर वे अपनी टांग भी ऊंची ही रखना चाहते हैं। उनका एकछत्र राज उन्हें मंजूर नहीं। अर्थात अपने हिस्से की टिकटें वे ले कर ही रहेंगे। असल में यह स्थिति इस वजह से भी बनी क्योंकि वसुंधरा लंबे समय तक राजस्थान से बाहर लंदन में जा कर बैठ गईं। पीछे से संघ लॉबी को और लामबंद होने का मौका मिल गया और वसुंधरा खेमे के नेता चुप्पी साधे बैठे रहे। हालत ये हो गई कि इस दरम्यान चतुर्वेदी ने अनेक नियुक्तियां कीं और उसमें वसुंधरा खेमे को नजरअंदाज भी किया।
इससे भी महत्वपूर्ण जानकारी ये आ रही है कि भाजपा हाईकमान फिलहाल संगठन में कोई फेरबदल करने की बजाय उसे यथावत रखना चाहता है, वसुंधरा के लिए परेशानी का सबब बन जाएगा। भले ही चुनाव वसुंधरा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करके लड़ा जाए, मगर टिकट बंटवारे में संघ लॉबी पूरा दखल रखेगी। दोनों धड़ों के बीच टिकटों का अनुपात तय होने के बाद भी खींचतान की नौबत तो आने ही वाली है।
ज्ञातव्य है कि इन दिनों राजस्थान के सभी भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की नजर इसी बात पर है कि वसुंधरा व संघ लॉबी के बीच सुलह किन शर्तों पर होती है। ताजा जानकारियों से तो वसुंधरा लॉबी को थोड़ी हताशा हो रही है, जबकि संघ लॉबी इस बात से खुश है कि वह अपनी बात मनवाने में लगभग कामयाब हो गई है। अब देखना ये है कि वसुंधरा के जयपुर आने पर कैसा माहौल रहता है? क्या ताजा समीकरणों में कोई बदलाव तो नहीं आता?
-तेजवानी गिरधर

संघनिष्ठ कर्मचारियों पर शिकंजे की खबर में किसका हाथ?


जैसे ही यह खबर छपी कि सरकार ने भाजपा, आरएसएस और इससे जुड़े संगठनों के किसी भी कार्यक्रम में भाग लेने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई की तैयारी कर ली है, भाजपा व हिंदूवादी संगठन उबल पड़े। उनका उबलना स्वाभाविक भी है। इस प्रकार की हरकतें पूर्व में कांग्रेस की सरकारें करती रही हैं, इस कारण इस प्रकार की खबर पर यकीन भी पूरा था।
जहां तक आदेश की विषय वस्तु का सवाल है, राजस्थान अधिवक्ता परिषद महामंत्री बसंत छाबा ने तो खबर छपते ही कह दिया कि सरकार के इस आदेश की कोई वैधानिकता नहीं है। सुप्रीम कोर्ट और कई हाईकोर्ट ये आदेश दे चुके हैं कि आरएसएस जैसे सामाजिक संगठन की गतिविधियों में शामिल होने के आधार पर किसी कर्मचारी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जा सकती। जाहिर सी बात है कि इसकी जानकारी सरकारी अफसरों को भी रही होगी। अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत भी इस प्रकार का सर्कूलर जारी करने को कहते तो अफसर उन्हें ऐसा न करने की ही सलाह देते। कांग्रेस पहले भी इस प्रकार की बंदिशें लागू कर झटके खा चुकी है।
दिलचस्प बात ये है कि यह खबर ही झूठी थी। इस प्रकार का कोई सर्कूलर सरकार की ओर से जारी ही नहीं किया गया था। खबर छपने के बाद सरकार ने ही इसका खुलासा कर दिया। राजस्थान पत्रिका ने तो इस आशय की खबर न छापने की क्रेडिट तक ली कि यह सर्कूलर एक सामान्य विज्ञप्ति की तरह आया था, जिसकी पुष्टि न होने के कारण उन्होंने इसे छापना मुनासिब नहीं समझा। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि सभी विभागाध्यक्षों और कलेक्टरों को आरएसएस और भाजपा के कार्यक्रमों में शामिल होने वाले सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ तत्काल अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने के आदेश वाला कार्मिक विभाग का सर्कुलर किसने अखबारों के दफ्तरों तक पहुंचाया? चर्चा ये है कि यह कारस्तानी किसी संघनिष्ठ ने ही की होगी, ताकि खबर छपते ही बवाल हो और संघनिष्ठ कर्मचारी जोश में आ कर जयपुर में हो रहे संघ के राष्ट्रीय स्तर के चैतन्य शिविर में बढ़ चढ़ कर भाग लें। फर्जी आदेश छपवाने वाला यह तो जानता रहा होगा कि ऐसी खबर की पोल दूसरे दिन ही खुल जाएगी, मगर उसका मकसद यह भी हो सकता है कि कम से कम इस बहाने हिंदूवादी मुद्दा जागृत होगा। ऐसा करके यह चेतना भी नापने की कोशिश की गई कि देखें कितनी व्यापक प्रतिक्रिया होती है। प्रतिक्रिया हुई भी। हर कोई भाजपा नेता बोल उठे। संघ के प्रांत कार्यवाह डॉ. रमेश अग्रवाल ने तो छूटते ही कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक जैसे जीवंत सामाजिक संगठन को सरकार के ऐसे घिसे-पिटे और पुराने आदेशों पर प्रतिक्रिया देने की आवश्यकता नहीं है। संघ के मुखपत्र पाथेय कण के संपादक कन्हैयालाल चतुर्वेदी को तो लगा कि चुनाव नजदीक देखते हुए कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम वोटों को रिझाने के लिए इस तरह का आदेश निकाला है।
हालांकि कुछ लोग यह मानते हैं कि सरकार ने ही इस प्रकार की हरकत करवाई ताकि यह जांच सके कि उसका कितना विरोध होता है, मगर यह बात आसानी से पचती नहीं है। वह बैठे ठाले हिंदूवादियों को एक होने का मौका काहे को देने वाली है।
बहरहाल, राजनीति के जानकार समझते हैं कि जैसे जैसे चुनाव नजदीक आएंगे, इस प्रकार की हरकतें होती रहेंगी। कभी गणेश जी दूध पीयेंगे तो कभी कोई शगूफा छूटेगा।
-तेजवानी गिरधर