तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शुक्रवार, अक्टूबर 11, 2013

राजस्थान में भाजपा की जीत नहीं अब सुनिश्चित

कोई छह माह पहले तक कायम यह धारणा अब कमजोर होने लगी है कि इस बार राजस्थान की सत्ता पर भाजपा काबिज होने ही जा रही है। बेशक पूरे चार साल तक राज्य से बाहर रही प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे ने सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर पार्टी को सक्रिय किया है, मगर इसी बीच मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कई जनकल्याणकारी योजनाओं की झड़ी लगा कर माहौल बदल दिया है। अब मुकाबला कांटे का माना जा रहा है, जो कि पहले पूरी तरह से भाजपा के पक्ष में माना जा रहा था।
असल में आज से छह माह पहले तक जनता को ऐसा लग रहा था कि भाजपा बढ़त की स्थिति में हैं और आगामी सरकार भाजपा की ही बनेगी। भाजपाइयों को भी पूरा यकीन था कि अब वे सत्ता का काबिज होने ही जा रहे हैं। वस्तुत: इसकी एक वजह ये भी थी कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण देशभर में यह माहौल बना कि कांग्रेस तो गई रसातल में। उसका प्रतिबिंब राजस्थान में भी दिखाई देने लगा। भाजपाई भी अति उत्साहित थे कि अब तो हम आ ही रहे हैं। रहा सवाल राज्य सरकार के कामकाज का तो वह था तो अच्छा, मगर उसका प्रोजेक्शन कमजोर था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उम्मीद थी कि उन्होंने पिछले चार साल में जो जनहितकारी काम किए हैं, उसकी वजह से जनता उनके साथ रहेगी, मगर सर्वे से यह सामने आया कि आम जन तक कांग्रेस सरकार के कामकाज का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है। इस पर खुद गहलोत ने कांग्रेस संदेश यात्रा निकालने का जिम्मा उठाया। इसी दौरान विभिन्न योजनाओं के कारण स्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों को मिल रहे आर्थिक लाभ से माहौल बदला है। हालांकि इससे चिढ़ कर वसुंधरा ने यह आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार खजाना लुटा रही है, मगर उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह खजाना आखिरकार गरीब जनता के लिए ही तो उपयोग में आ रहा है। कुछ मिला कर अब माहौल साफ होने लगा है कि कांग्रेस सरकार से जनता उतनी नाखुश नहीं है, जितना की प्रचार किया गया था। अब तो मीडिया के सर्वे भी कहने लगे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा टक्कर में हैं।
पिछले कुछ माह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से की गई मशक्कत के बाद बदले माहौल से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अब जा कर उम्मीद जागी है कि इस बार राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाई जा सकती है, इसी कारण उन्होंने यहां पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में उनके निर्देशन में बनी चुनाव अभियान समिति और घोषणा पत्र समिति को पूरी तरह से संतुलित बनाया गया। डेमेज कंट्रोल में कुछ कामयाबी भी हासिल हुई है, इसका एक संकेत देखिए कि जेल में बंद पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा की पुत्री दिव्या मदेरणा तक का सुर बदल गया है, जो कि अब तक सरकार को लगातार घेरती रही थीं।
उधर वसुंधरा राजे ने टिकट दावेदारों के बलबूते सुराज यात्रा में शक्ति प्रदर्शन तो कर लिया, मगर अब ये ही टिकट दावेदार उनके लिए सिरदर्द साबित होने वाले हैं और वे उनकी जीत की गणित को भी गड़बड़ा सकते हैं। टिकट दावेदारों ने वसुंधरा में चाहे भीड़ जुटाना हो या अखबारों में लाखों रुपए के विज्ञापन देने की बात हो, सारी ताकत लगा और उसके बदले अब वे भी टिकट की उम्मीद तो रखते ही हैं, यह अलग बात है कि वसुंधरा ने यह स्पष्ट कर दिया कि योग्य उम्मीदवारों को टिकट मिलेगा मगर हर दावेदार अपने योग्य मानते हुए अपनी टिकट पक्की मान रहा है। हर सीट पर दावेदारों की लंबी लिस्ट है। भाजपा में पहली बार टिकट को लेकर दिखा माहौल भाजपा के लिए खतरे का संकेत दे रहा है। यदि भाजपा ने 2009 की तरह टिकट बंटवारे में पैराशूट उम्मीदवारों को उतारा तो जीत की उम्मीद पर पानी फिर सकता है।
जहां तक सुराज संकल्प यात्रा के दौरान कांग्रेस सरकार पर हमले का सवाल है, भले ही वसुंधरा ने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को अब तक का सबसे भ्रष्ट मुख्यमंत्री बताया हो, मगर धरातल पर वे इसे साबित करने में नाकाम रही हैं। उनके अधिसंख्य आरोप नुक्ताचीनी टाइप और रूटीन के हैं। कम से कम इतने तो दमदार नहीं कि सरकार की चूलें हिल जाएं। यानि उनका आम जन पर कोई गहरा असर नहीं है। उनके आरोपों की धार तो तेज रही, मगर उसकी मार उतनी नजर नहीं आई। जुमले उनके तगड़े थे, मगर वे केवल भाषणों में ही सुहावने नजर आए, धरातल पर उसकी गंभीरता कम रही। खुद भाजपाई भी मानने लगे हैं कि इस बार वसुंधरा की यात्रा पहले जैसी कामयाब नहीं रही है। कारण स्पष्ट है। वे खुद अपनी पार्टी में दोफाड़ का कारण बनी रहीं। चार साल तक राज्य से गायब रह कर चुनावी साल में यकायक सक्रिय होने के कांग्रेस के आरोप का आज तक कोई सटीक जवाब नहीं दे पाई हैं।
अगर मोदी फैक्टर की बात करें तो वह अपना असर जरूर दिखाएगा, मगर धरातल की सच्चाई वैसी नहीं जैसी दिखाई देती है। आपको याद होगा कि हाल में कुछ बड़े मीडिया हाउसेस ने सर्वे कराया। सर्वे के मुताबिक कांग्रेस और भाजपा को मिलने वाली (लोकसभा) सीटों में सिर्फ 15 से 20 सीट का फासला है। भाजपा को महज 20 ज़्यादा। ये उन लोगों के मुंह पर तमाचा है, जो पूरे देश में मोदी की लहर बहने का दावा करते हैं। तमाम सर्वे बता रहे हैं कि देश की दो बड़ी पार्टियां (कांग्रेस और बीजेपी) 150 सीट भी नहीं ला पाएंगी। साथ ही गैर कांग्रेसी-गैर भाजपाई कुनबा 200 के आंकड़े को भी बमुश्किल छू पायेगा। यानी कुल 543 सीटों में से भाजपा 150 (लगभग एक चौथाई) का आंकडा भी ना छू पाए तो ये किस लहर और किस लोकप्रियता के दावे की बात हो रही है?
सीएनएन, आईबीएन सीएनडीएस के लोकसभा चुनाव के लिए किए सर्वे के मुताबिक राजस्थान में कांग्रेस के तीन प्रतिशत वोट घटने वाले है, जबकि 2009 के चुनाव में कांग्रेस को 47 प्रतिशत वोट मिले थे। इस तरह आगामी चुनाव में कांग्रेस को 44 प्रतिशत वोट मिल पाएंगे। वहीं भाजपा का सात प्रतिशत मतों का इजाफा होने से 37 प्रतिशत से बढ़कर कांग्रेस के बराबर रहेगी। इससे यह संकेत मिलते है कि मौटे तौर पर विधानसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस में कड़ी टक्कर होने वाली है। इसमें साइलेंट फैक्टर ये है कि इस प्रकार के सर्वे आमतौर पर शहरी होते हैं, जहां भाजपा का प्रभाव अधिक है, जबकि गांवों में आज भी कांग्रेस की पकड़ ज्यादा है।
ऐसे में अगर ये कहा जाए कि भाजपा की जीत सुनिश्चित नहीं तो, कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि इन सबके बावजूद चुनाव परिणाम इस मुख्य फैक्टर पर निर्भर करेंगे कि दोनों दलों में से कौन ज्यादा सही उम्मीदवारों को टिकट बांटता है।
-तेजवानी गिरधर, 7742067000
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