तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अक्तूबर 27, 2016

मोदी के गले की हड्डी हैं वसुंधरा

राजनीति के जानकार मानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भाजपा में एक तानाशाह के रूप में स्थापित हैं। वजह साफ है कि अकेले उनके नाम पर ही भाजपा पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हुई है। उन्हें राज्य स्तर पर क्षत्रपों की मौजूदगी कत्तई पसंद नहीं। विशेष रूप से राजस्थान की बात करें तो यह सब जानते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मुख्यमंत्री वसुंधरा कत्तई पसंद नहीं हैं, उनका बस चले तो वे उन्हें एक झटके में हटा दें, मगर उनकी सबसे बड़ी परेशानी ये है कि उनके पास उनका विकल्प भी नहीं है। उनकी इसी उधेड़बुन के चलते राजस्थान में उहापोह के हालात हैं। वसुंधरा राजे का दूसरा कार्यकाल निस्तेज सा बीता जा रहा है। उपलब्धि शून्य। महारानी में पहले जैसी चमक भी नजर नहीं आ रही। और इसी वजह से कांग्रेस में ऊर्जा का संचार हो रहा है। हालांकि चुनाव अभी दूर हैं, मगर मौजूदा हालात को देखते हुए भाजपाइयों को भी यही लगता है कि शायद इस बार जीत के दीदार नहीं हो पाएंगे। आखिरी वक्त मोदी कोई बड़ा दाव खेल जाएं तो कुछ कह नहीं सकते।
अत्यंत विश्वसनीय सूत्रों से जानकारी मिल रही है कि वसुंधरा राजे को अपदस्त करने का ताना-बाना बुना जा रहा है, मगर ऐसा कदम उठाने का साहस भी नहीं हो रहा, क्योंकि वह आत्मघाती भी हो सकता है। यूं वसुंधरा राजे इतनी कमजोर भी नहीं कि उन्हें आसानी से हटाया जा सके। वे व्यक्ति नहीं, एक पार्टी हैं। पार्टी में ही विधायकों का एक बड़ा समूह उनका दीवाना है। वे विधायक वसुंधरा के कहने पर कुछ भी करने को तैयार हैं। कई बार ये अफवाह उठी है कि अगर उनके साथ छेडख़ानी की गई तो वे अलग पार्टी भी बना सकती हैं। अपनी ताकत का अहसास वे पहले भी भाजपा आलाकमान को करवा चुकी हैं। भारी दबाव बना कर उन्हें नेता प्रतिपक्ष पद से हटा तो दिया गया, मगर किसी और को यह पद नहीं दिया जा सका। आखिरकार न केवल उन्हें मान मनुहार कर नेता प्रतिपक्ष बनने को राजी किया गया, अपितु उनके नेतृत्व में ही चुनाव लडऩे का भी ऐलान किया गया। तब और अब में फर्क सिर्फ ये है कि तब भाजपा केन्द्र में सत्ता में नहीं थी और अभी पूरी मजबूती के साथ सत्ता पर काबिज है। तब राजनाथ सिंह जैसे संजीदा नेता के हाथ में भाजपा की कमान थी, अब तेजतर्रार नरेन्द्र मोदी के खास सिपहसालार चतुर-चालाक अमित शाह बागडोर संभाले हुए हैं। फिर भी साहस नहीं जुटा पा रहे। बीच बीच में खबरें आती हैं कि उन्हें हटा कर ओम प्रकाश माथुर या भूपेन्द्र यादव को मुख्यमंत्री बनाया जा सकता है, मगर हर बार खबर अफवाह ही साबित होती है। यानि कि किसी न किसी वजह से मामला टल जाता है।
असल में मोदी की वजह से ही इस बार वसुंधरा वैसा नहीं कर पा रहीं, जैसा वे करने का मानस रखती हैं, या जो वादे करके उन्होंने बहुमत हासिल किया था। कार्यकर्ता निराश हैं। सरकार के कामकाज में कहीं भी सुराज संकल्प नजर नहीं आता। शासन-प्रशासन एक ढर्रे पर चल रहा है। कहीं से लगता ही नहीं कि सरकार जनता के लिए कुछ अतिरिक्त भी करना चाहती है। खासकर तब जब कि प्रदेश में भाजपा प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता पर सवार है। जनता में भी यह संदेश साफ जा चुका है कि इस बार के कार्यकाल में गिनाने लायक कुछ नहीं। यानि कि इस बार वसुंधरा के चेहरे पर चुनाव जीतना कठिन होगा। मगर दिक्कत ये है कि उनसे बेहतर, बेहतर क्या उनके समकक्ष भी कोई चेहरा भाजपा के पास नहीं, जिसको आगे रख कर चुनाव जीता जा सके। अजीब गुत्थी है। पहले जैसी लहर भी नहीं चलने वाली नहीं है, क्योंकि मोदी का जादू शनै: शनै: ढ़लता जा रहा है। हां, इतना जरूर सही है कि भाजपा-भाजपा-भाजपा की जगह मोदी-मोदी-मोदी करने की वजह से पार्टी पूरी तरह से मोदी के नाम पर ही टिकी हुई है। उनकी चमक के आवरण में राज्य सरकार की उपलब्धि शून्यता को ढंका जा रहा है। मगर एक सच ये भी है कि जिस तरह से पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की जीत का श्रेय मोदी को दिया गया, ठीक उसी तरह यदि इस बार भाजपा हारती है तो उसकी एक मात्र वजह मोदी ही होंगे, क्योंकि उन्होंने वसुंधरा राजे को इस लायक ही नहीं छोड़ा कि वे स्वछंद रूप से काम कर सकें।
ऐसे में कांग्रेस यदि अगली बार सत्ता पर काबिज होने की सपना देख रही है तो वह जायज ही लगता है। इस वजह से भी कि जब से सचिन पायलट को प्रदेश कांग्रेस की कमान सौंपी गई है, वे लगातार सक्रिय रह कर कांग्रेस में जान फूंक रहे हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस जिस तरह से चौखाने चित हुई थी, उससे काफी उबर कर आ चुकी है। हां, ये जरूर है कि पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के व्यक्तिगत समर्थक उन्हें जिंदा रखे हुए हैं, जो फूट का संकेत है। चुनाव में बुरी तरह से हार का ठीकरा उन पर ही फूटा है, मगर आज भी उनकी छवि कमजोर नहीं हुई है। स्वाभाविक रूप से लंबे समय तक प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और दो बार मुख्यमंत्री रहने के दौरान उनसे निजी रूप से उपकृत हुए नेता उनके मुरीद है। मगर लगता यही है कि कांग्रेस आलाकमान नए जोश के प्रतीक सचिन को ही आगे लाना चाहता है। हां, गहलोत के सम्मान का भी ध्यान रखा जा रहा है। संभव है उन्हें उनके हिसाब की सीटें दे कर राजी कर लिया जाए। मुख्यमंत्री के रूप में सचिन को ही प्रोजेक्ट किया जाएगा। नहीं भी किया जाएगा तो बहुमत मिलने पर उन्हें ही मुख्यमंत्री बनाया जाएगा और गहलोत को अंतत: केन्द्र में शिफ्ट किया जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
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