राजस्थान में विपक्ष के नेता गुलाबचंद कटारिया को सोहराबुद्दीन एनकाउंटर मामले में जमानत मिलने से भाजपा का वह ख्वाब टूट गया है, जिसके आधार पर वह प्रदेशभर में आंदोलन का मूड बना रही थी।
असल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा जानती थीं कि उनकी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस को घेरने की उनकी कोशिशें दम तोड़ रही हैं। हालांकि वे रोजाना नए-नए आरोप जड़ती जा रही हैं और गहलोत को भ्रष्ट साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहीं है, मगर गहलोत की व्यक्तिगत छवि बेदाग होने के कारण सारे वार खाली जा रहे हैं। वे समझ रही हैं कि वे सरकार की जनोपयोगी योजनाओं के सामने ऐसे आरोपों से चुनावी माहौल नहीं बना पा रही हैं। उलटे उन पर कांग्रेस का एक ही वार काफी भारी पड़ रहा था कि पूरे चार साल तो वे गायब रहीं और चुनाव आते ही आरोपों की झड़ी लगा रही हैं। चार साल गायब रहने का उनके पास कोई जवाब था भी नहीं। ऐसे में वह किसी ऐसे मौके की तलाश कर रही थी, जिससे राजस्थान की जनता को उद्वेलित किया जा सके। यूं भी भाजपा की चुनावी रणनीति मुद्दे को उछालने की रहती है, ऐसे में उन्हें कोई ऐसा मौका चाहिए था। संयोग से सीबीआई ने उसे वह मौका दे दिया। सीबीआई ने कटारिया को एनकाउंटर का आरोपी बनाया और ऐसे में उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई। वसुंधरा ये सोचने लगीं कि जैसे ही कटारिया को गिरफ्तार किया जाएगा, वे पूरे प्रदेश में कांगे्रेस के दमन चक्र को मुद्दा बना कर आंदोलन छेड़ देंगी, जिससे भाजपा कार्यकर्ता तो लामबंद व वार्म अप होगा ही, जनता की भावनाएं भी भड़काई जा सकेंगी। और इसी कारण बार-बार कहती रहीं कि सरकार कटारिया को झूठा फंसा रही है, सरकार उन्हें भी किसी झूठे मामले में उलझाने की कोशिश कर सकती है, मगर वे किसी से डरने वाली नहीं हैं। असल में वे कटारिया की गिरफ्तारी होने पर किए जाने वाले आंदोलन की पृष्ठभूमि बना रही थीं, मगर उनकी सोच धरी की धरी रह गई, जब कटारिया का जमानत मंजूर हो गई। अब वसुंधरा के पास जनता को उद्वेलित करने का फिलहाल कोई मौका नहीं है। ऐसे में संभव है भाजपा नरेन्द्र मोदी ब्रांड पैंतरा खेल सकती है। इसका इशारा कांग्रेसी नेता कर भी चुके हैं।
जहां तक कटारिया के मुकदमे का सवाल है, उनको जमानत मिलते ही ये सवाल उठने लगे हैं कि यह कैसे हो गया। इस बारे में जयपुर के एक पत्रकार निरंजन परिहार ने तो बाकायदा प्रायोजित न्यूज आइटम बना कर खुलासा करने की कोशिश की है। उनका कहना है कि कटारिया को फांसने के मामले में सीबीआई बगलें झांक रही है और सबूतों के मामले में सीबीआई झूठी साबित हो रही है।
मुंबई की विशेष अदालत में चल रहे इस केस में कटारिया को आरोपी बना कर उनके खिलाफ चार्जशीट भी पेश कर दी, लेकिन अब अपने लगाए आरोपों को वह साबित नहीं कर पा रही है। ऐसा लग रहा है कि अपनी जलाई गुई आग में सीबीआई खुद झुलस रही है। इसके पीछे तर्क ये दिया है कि सीबीआई की कहानी झूठी है। वे कहते हैं कि कुख्यात अपराधी सोहराबुद्दीन की मौत के मामले में कटारिया के खिलाफ लगाए गए आरोप में सिर्फ एक बात कही गई है कि 27 दिसम्बर, 2005 से 30 दिसम्बर, 2005 तक आईपीएस ऑफिसर डीजी वणजारा उदयपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। उसी दौरान राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री कटारिया का भी स्टाफ भी वहीं पर रुका हुआ था। जिन तारीखों की घटनाओं का हवाला देकर सीबीआई ने कटारिया को फांसने की चार्जशीट तैयार की है, उन दिनों वे मुंबई में भारतीय जनता पार्टी के राष्ठ्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए मुंबई आए हुए थे। खुद निरंजन परिहार के साथ वे सहारा समय टेलीविजन चैनल के स्टूडिय़ो में भी एक लाइव कार्यक्रम में उपस्थित थे, जिसकी प्रसारण की तारीख को सीबीआई झुठला नहीं सकती।
सिद्धराज लोढ़ा के समाचार पत्र शताब्दी गौरव, गोविंद पुरोहित के जागरूक टाइम्स, सुरेश गोयल के प्रात:काल सहित मुंबई के विभिन्न समाचार पत्रों में उन तारीखों के दौरान कटारिया के मुंबई के विभिन्न कार्यक्रमों की खबरें और तस्वीरें भी छपी हैं, सीबीआई उन्हें गलत साबित नहीं कर सकती। उन्हीं दिनों मुंबई में माथुर भी बीजेपी अधिवेशन में मौजूद थे। सीबीआई द्वारा बताए जा रहे दिनों में दोनों नेताओं के उदयपुर में नहीं होने की बात साबित हो चुकी है। यहां तक कि दोनों नेताओं के मुंबई आने-जाने के टिकट और कटारिया के गोवा यात्रा के सबूत भी मौजूद हैं।
उनकी इन बातों में कितनी सच्चाई है ये तो कोर्ट में होने वाली कार्यवाही से पता लगेगी, मगर केवल इन तारीखों के आधार पर ही सीबीआई ने बेवकूफी की होगी, ये समझ से परे हैं। जरूर उसके पास कोई आधार होगा। भले ही कटारिया को जमानत मिलने से परिहार को ये न्यूज आइटम बनाने का मौका मिला गया, मगर वसुंधरा वे मौका तो नहीं मिल पाया, जिसको वे भुनाने की कोशिश में थीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
असल में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा जानती थीं कि उनकी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत व कांग्रेस को घेरने की उनकी कोशिशें दम तोड़ रही हैं। हालांकि वे रोजाना नए-नए आरोप जड़ती जा रही हैं और गहलोत को भ्रष्ट साबित करने की नाकाम कोशिश कर रहीं है, मगर गहलोत की व्यक्तिगत छवि बेदाग होने के कारण सारे वार खाली जा रहे हैं। वे समझ रही हैं कि वे सरकार की जनोपयोगी योजनाओं के सामने ऐसे आरोपों से चुनावी माहौल नहीं बना पा रही हैं। उलटे उन पर कांग्रेस का एक ही वार काफी भारी पड़ रहा था कि पूरे चार साल तो वे गायब रहीं और चुनाव आते ही आरोपों की झड़ी लगा रही हैं। चार साल गायब रहने का उनके पास कोई जवाब था भी नहीं। ऐसे में वह किसी ऐसे मौके की तलाश कर रही थी, जिससे राजस्थान की जनता को उद्वेलित किया जा सके। यूं भी भाजपा की चुनावी रणनीति मुद्दे को उछालने की रहती है, ऐसे में उन्हें कोई ऐसा मौका चाहिए था। संयोग से सीबीआई ने उसे वह मौका दे दिया। सीबीआई ने कटारिया को एनकाउंटर का आरोपी बनाया और ऐसे में उन पर गिरफ्तारी की तलवार लटक गई। वसुंधरा ये सोचने लगीं कि जैसे ही कटारिया को गिरफ्तार किया जाएगा, वे पूरे प्रदेश में कांगे्रेस के दमन चक्र को मुद्दा बना कर आंदोलन छेड़ देंगी, जिससे भाजपा कार्यकर्ता तो लामबंद व वार्म अप होगा ही, जनता की भावनाएं भी भड़काई जा सकेंगी। और इसी कारण बार-बार कहती रहीं कि सरकार कटारिया को झूठा फंसा रही है, सरकार उन्हें भी किसी झूठे मामले में उलझाने की कोशिश कर सकती है, मगर वे किसी से डरने वाली नहीं हैं। असल में वे कटारिया की गिरफ्तारी होने पर किए जाने वाले आंदोलन की पृष्ठभूमि बना रही थीं, मगर उनकी सोच धरी की धरी रह गई, जब कटारिया का जमानत मंजूर हो गई। अब वसुंधरा के पास जनता को उद्वेलित करने का फिलहाल कोई मौका नहीं है। ऐसे में संभव है भाजपा नरेन्द्र मोदी ब्रांड पैंतरा खेल सकती है। इसका इशारा कांग्रेसी नेता कर भी चुके हैं।
जहां तक कटारिया के मुकदमे का सवाल है, उनको जमानत मिलते ही ये सवाल उठने लगे हैं कि यह कैसे हो गया। इस बारे में जयपुर के एक पत्रकार निरंजन परिहार ने तो बाकायदा प्रायोजित न्यूज आइटम बना कर खुलासा करने की कोशिश की है। उनका कहना है कि कटारिया को फांसने के मामले में सीबीआई बगलें झांक रही है और सबूतों के मामले में सीबीआई झूठी साबित हो रही है।
मुंबई की विशेष अदालत में चल रहे इस केस में कटारिया को आरोपी बना कर उनके खिलाफ चार्जशीट भी पेश कर दी, लेकिन अब अपने लगाए आरोपों को वह साबित नहीं कर पा रही है। ऐसा लग रहा है कि अपनी जलाई गुई आग में सीबीआई खुद झुलस रही है। इसके पीछे तर्क ये दिया है कि सीबीआई की कहानी झूठी है। वे कहते हैं कि कुख्यात अपराधी सोहराबुद्दीन की मौत के मामले में कटारिया के खिलाफ लगाए गए आरोप में सिर्फ एक बात कही गई है कि 27 दिसम्बर, 2005 से 30 दिसम्बर, 2005 तक आईपीएस ऑफिसर डीजी वणजारा उदयपुर के सर्किट हाउस में रुके थे। उसी दौरान राजस्थान के तत्कालीन गृहमंत्री कटारिया का भी स्टाफ भी वहीं पर रुका हुआ था। जिन तारीखों की घटनाओं का हवाला देकर सीबीआई ने कटारिया को फांसने की चार्जशीट तैयार की है, उन दिनों वे मुंबई में भारतीय जनता पार्टी के राष्ठ्रीय अधिवेशन में भाग लेने के लिए मुंबई आए हुए थे। खुद निरंजन परिहार के साथ वे सहारा समय टेलीविजन चैनल के स्टूडिय़ो में भी एक लाइव कार्यक्रम में उपस्थित थे, जिसकी प्रसारण की तारीख को सीबीआई झुठला नहीं सकती।
सिद्धराज लोढ़ा के समाचार पत्र शताब्दी गौरव, गोविंद पुरोहित के जागरूक टाइम्स, सुरेश गोयल के प्रात:काल सहित मुंबई के विभिन्न समाचार पत्रों में उन तारीखों के दौरान कटारिया के मुंबई के विभिन्न कार्यक्रमों की खबरें और तस्वीरें भी छपी हैं, सीबीआई उन्हें गलत साबित नहीं कर सकती। उन्हीं दिनों मुंबई में माथुर भी बीजेपी अधिवेशन में मौजूद थे। सीबीआई द्वारा बताए जा रहे दिनों में दोनों नेताओं के उदयपुर में नहीं होने की बात साबित हो चुकी है। यहां तक कि दोनों नेताओं के मुंबई आने-जाने के टिकट और कटारिया के गोवा यात्रा के सबूत भी मौजूद हैं।
उनकी इन बातों में कितनी सच्चाई है ये तो कोर्ट में होने वाली कार्यवाही से पता लगेगी, मगर केवल इन तारीखों के आधार पर ही सीबीआई ने बेवकूफी की होगी, ये समझ से परे हैं। जरूर उसके पास कोई आधार होगा। भले ही कटारिया को जमानत मिलने से परिहार को ये न्यूज आइटम बनाने का मौका मिला गया, मगर वसुंधरा वे मौका तो नहीं मिल पाया, जिसको वे भुनाने की कोशिश में थीं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000