प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बीच के जगजाहिर संबंधों की ही वजह रही कि राजनीतिक विश्लेषक यह मान कर चल रहे थे कि अजमेर के सांसद प्रो. सांवरलाल जाट को केन्द्रीय मंत्रीमंडल में स्थान नहीं मिल पाएगा और यह उनके साथ सबसे बड़ा धोखा होगा। राज्य में किसी केबीनेट मंत्री को लोकसभा चुनाव लड़ाया जाए तो इसका मतलब यही माना जाना चाहिए कि अगर वह जीता और पार्टी की सरकार बनी तो केन्द्रीय मंत्रीमंडल में उसका स्थान पक्का होगा, मगर प्रो. जाट के साथ ऐसा होता नजर नहीं आ रहा था। बेशक उनकी पैरवी मुख्यमंत्री वसुंधरा कर रही थीं, मगर चूंकि मोदी व उनके बीच ट्यूनिंग को ठीक माना जा रहा, इस कारण कम से कम राजनीति के जानकार तो यही मान कर चल रहे थे कि प्रो. जाट शायद ही मंत्री बन पाएं। कदाचित इसका अहसास खुद प्रो. जाट को भी रहा होगा। उनके लिए अफसोसनाक बात ये भी थी जो नसीराबाद सीट उन्होंने छोड़ी उसके लिए उनके पुत्र को पार्टी ने टिकट नहीं दिया। ऐसे में अगर उन्हें मंत्री नहीं बनाया जाता तो समझा जा सकता है कि जाती तौर पर उनके साथ क्या बीतती। सो बताते हैं कि उन्होंने अकेले वसुंधरा के भरोसे रहना उचित नहीं समझा। मोदी के करीबी भाजपा नेता ओम प्रकाश माथुर के लगातार संपर्क में रहे। यह बात राजनीति के जानकारों की जानकारी में भी थी। मगर इसका जिक्र मीडिया में कहीं नहीं आया। जैसे ही प्रो. जाट को मंत्री बनाया गया तो पत्रकारों ने खुलासा किया कि वे माथुर के संपर्क में भी थे।
बात अगर राजनीतिक समीकरणों की करें तो यह सब को पता है कि माथुर व वसुंधरा के बीच कैसे संबंध हैं। एक बारगी तो यह अफवाह तक फैल गई थी कि वसुंधरा को हटा कर माथुर को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। अब समझा सकता है कि प्रो. जाट ने वसुंधरा के खासमखास होने के बाद भी माथुर से करीबी क्यों बढ़ाई। संभव है उन्हें लग रहा हो कि अकेले वसुंधरा उन्हें मंत्री नहीं बनवा पाएंगी। ऐसे में केवल वसुंधरा के भरोसे रह कर भला अपना राजनीतिक कैरियर काहे को खराब करते। जो भी हो माथुर से नजदीकी और मंत्री बनने में माथुर का हाथ होने की कानाफूसी का कुछ लोग ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि प्रो. जाट ने ऐन वक्त पर पाला बदल लिया। कुछ लोग इसका ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि वसुंधरा ने यह जानते हुए कि अकेले उनके दम पर वे मंत्री नहीं बन पाएंगे, खुद ही जाट से कहा होगा कि वे दूसरे चैनल पर भी काम करें। हालांकि अभी ये पक्का नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने पाला बदल लिया है, मगर यदि उनको मंत्री बनवाने में माथुर का हाथ रहा है, तो समझा जा सकता है कि अब मोदी व वसुंधरा में से कौन उनके लिए अहम रहेगा। वैसे भी केन्द्र में काम करना है तो मोदी के प्रति स्वामी भक्ति उन्हें दिखानी ही होगी।
-तेजवानी गिरधर
बात अगर राजनीतिक समीकरणों की करें तो यह सब को पता है कि माथुर व वसुंधरा के बीच कैसे संबंध हैं। एक बारगी तो यह अफवाह तक फैल गई थी कि वसुंधरा को हटा कर माथुर को मुख्यमंत्री बनाया जा रहा है। अब समझा सकता है कि प्रो. जाट ने वसुंधरा के खासमखास होने के बाद भी माथुर से करीबी क्यों बढ़ाई। संभव है उन्हें लग रहा हो कि अकेले वसुंधरा उन्हें मंत्री नहीं बनवा पाएंगी। ऐसे में केवल वसुंधरा के भरोसे रह कर भला अपना राजनीतिक कैरियर काहे को खराब करते। जो भी हो माथुर से नजदीकी और मंत्री बनने में माथुर का हाथ होने की कानाफूसी का कुछ लोग ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि प्रो. जाट ने ऐन वक्त पर पाला बदल लिया। कुछ लोग इसका ये भी अर्थ लगा रहे हैं कि वसुंधरा ने यह जानते हुए कि अकेले उनके दम पर वे मंत्री नहीं बन पाएंगे, खुद ही जाट से कहा होगा कि वे दूसरे चैनल पर भी काम करें। हालांकि अभी ये पक्का नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने पाला बदल लिया है, मगर यदि उनको मंत्री बनवाने में माथुर का हाथ रहा है, तो समझा जा सकता है कि अब मोदी व वसुंधरा में से कौन उनके लिए अहम रहेगा। वैसे भी केन्द्र में काम करना है तो मोदी के प्रति स्वामी भक्ति उन्हें दिखानी ही होगी।
-तेजवानी गिरधर