तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, अप्रैल 17, 2012

संघ के मोदी पर हाथ रखने से मचेगा भाजपा में घमासान

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को दिल्ली की ओर कूच करने का इशारा करने से भाजपा में पहले से चल रहे घमासान के बढऩे की आशंका तेज हो गई है। हालांकि प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदारों ने फिलवक्त चुप्पी साध रखी है, मगर समझा जाता है कि वे भी नया गणित बैठाने की जुगत करेंगे। पूर्व में पीएम इन वेटिंग रह चुके लाल कृष्ण आडवाणी के खासमखास पूर्व विदेश मंत्री जसवंत सिंह ने तो आडवाणी की खुल कर पैरवी कर दी है। उनका यह कहना कि वरिष्ठतम आडवाणी जी के रहते किसी और की दावेदारी का तो कोई मतलब ही नहीं है, यूं ही उड़ाने लायक नहीं है। जिन्ना के बारे में विवादित पुस्तक लिखने के कारण पूर्व में पार्टी से बाहर किए जा चुके जसवंत की हैसियत भले ही संघ के सामने कुछ नहीं हो, मगर उनका ठीक इसी मौके पर बोलना यह साबित करता है कि पार्टी का एक धड़ा अब भी निपटाए जा चुके आडवाणी में फिर जान फूंकने की कोशिश कर रहा है। समझा जाता है कि संघ की ओर से मोदी को प्रोजेक्ट करने को अन्य दावेदार भी आसानी से पचाने वाले नहीं हैं।
असल में कांग्रेस सरकार की लगभग तय सी विदाई से उत्साहित भाजपा में पहले से ही पीएम वेटिंग को लेकर खींचतान चल रही थी। लोकसभा में विपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज और राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली तो अपनी मौजूदा भूमिका के कारण प्रबल दावेदार माने ही जा रहे थे। उधर गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी गुजरात दंगों से जुड़े एक मामले में उच्चतम न्यायालय के निर्देश को अपनी जीत के रूप में प्रचारित कर तीन दिवसीय उपवास किया, जिसे इस रूप में लिया गया कि वे भी दावेदारी कर रहे हैं। रहा सवाल पूर्व में पीएम इन वेटिंग रह चुके आडवाणी का तो उन्होंने भी रथयात्रा के जरिए जता दिया था कि उन्हें खारिज बम न माने जाए। उनके दावे को बल इस कारण भी मिला कि रथ यात्रा के पूरी तरह से निजी फैसले पर भी पार्टी ने मोहर लगा दी थी। हालांकि औपचारिक बयान देते हुए पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने स्पष्ट करने की कोशिश की थी कि इसका मकसद उन्हें दावेदार के रूप में स्थापित करना नहीं है। गाहे बगाहे पूर्व अध्यक्ष राजनाथ सिंह का नाम भी उछलता रहता है। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि पार्टी अध्यक्ष गडकरी भी गुपचुप तैयारी कर रहे हैं। वे लोकसभा चुनाव नागपुर से लडऩा चाहते हैं और मौका पडऩे पर खुल कर दावा पेश कर देंगे। कुल मिला कर यह स्पष्ट है कि भाजपा में एकाधिक दावेदार हैं। इस स्थिति को भले ही पार्टी अपनी संपन्नता करार दे कर विवाद को ढंकने का प्रयास करे, लेकिन यही उसके लिए सबसे बड़ी समस्या बना हुआ है
ताजा प्रकरण की विवेचना करें तो मोदी को दावेदार बताने की पहल खुद पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी ने ही की। हालांकि साथ ही वे यह भी कहते रहे कि सुषमा व जेतली भी प्रधानमंत्री पद के योग्य हैं। उनकी इस प्रकार की बयानबाजी से पार्टी में भारी असमंजस पैदा हो रहा था। मगर अब जब कि पार्टी के मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के मुखपत्र पांचजन्य ने गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी का नाम साफ तौर पर उछाल दिया है। दरअसल पहले टाइम पत्रिका में नरेन्द्र मोदी को विकास पुरुष बताने और अब गुलबर्गा सोसायटी में एसआईटी द्वारा क्लीन चिट दिए जाने के बाद संघ कुछ ज्यादा ही उत्साहित है। पांचजन्य ने तो साफ तौर पर कहा है कि नरेन्द्र मोदी को प्रदेश के नहीं बल्कि देश के नेतृत्व पर सोचना चाहिए। यूं पिछले दिनों नागपुर में हुई संघ की महाबैठक में भी मोदी का नाम आया था, मगर बात सिरे तक नहीं पहुंची। मगर जैसे ही एसआईटी ने मोदी को बेदाग घोषित कर दिया, संघ के मुखपत्र ने तुरंत मौका लपक लिया। यानि कि संघ पार्टी को कठपुतली की तरह इस्तेमाल करना चाहती है। मगर धरातल के राजनीतिक समीकरणों व मजबूरियों को समझने वाली पार्टी इससे बड़े भारी पशोपेश में पड़ जाएगी कि वह अपना चेहरा पूरी तरह से हिंदूवादी कैसे कर दे? विशेष रूप से प्रधानमंत्री पद के अन्य दावेदार, जो कि यही चाहते रहे कि मोदी पर कट्टर हिंदूवादी लेबल लगा रहे, मगर एसआईटी की ओर से मोदी को क्लीन चिट दिए जाने पर संघ के नए दाव के बाद उनको सांप सूंघ गया है।
पार्टी से अलग हट कर विचार करें तो भी यह लगता है कि मोदी दिल्ली के कुछ और नजदीक पहुंच गए हैं। वजह ये है कि पहले जहां कांग्रेस मोदी को कसाई बता कर उनके खिलाफ अभियान छेड़े हुई थी, अब उसकी बोलती बंद हो गई है। सोनिया गांधी और राहुल गांधी को अब मोदी को मौत का सौदागर कहने से पहले दस बार सोचना पड़ेगा।
जहां तक मीडिया का सवाल है, वह भी भाजपा की ओर से मोदी को दावेदार मानने लगा है। टाइम पत्रिका की ओर से आगामी भिडंत राहुल व मोदी के बीच होने की संभावना जताए जाने के बाद हुए एक सर्वे में यह रुझान आया कि प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी को 24 प्रतिशत लोगों ने पसंद किया है और कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी को केवल 17 प्रतिशत लोग ही चाहते हैं। उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद तो राहुल का ग्राफ और भी गिरा है। ऐसे में मोदी को क्लीन चिट मिलने पर संघ ने तुरंत उनको दौड़ में सबसे आगे ला खड़ा करने की कोशिश की है। उनको राष्ट्रीय स्तर पर मान्य बनाने के लिए गुजरात में हुए विकास को गिना कर उन्हें विकास पुरुष स्थापित करने की कोशिश की जा रही है। हालांकि धरातल का एक सच ये भी है कि भले ही टाइम पत्रिका उनको अपने मुख पत्र पर छापे और एसआईटी उन्हें क्लीन चिट दे दे, पार्टी का एक धड़ा यह जानता है कि आम जनता में उनकी छवि इतनी सुधर नहीं पाई है, जितनी कि जताई जा रही है। आज भी पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के उस कथन को गिनाया जाता है, जिसमें मोदी के राजधर्म पर चलने को कहा गया था। बहरहाल देखते हैं कि संघ के इस नए पैंतरे के क्या परिणाम निकलते हैं।
-तेजवानी गिरधर
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