राजनीतिक हलकों में एक सवाल यह उठ है कि क्या एसपी मीणा के मीणा समाज के प्रमुख नेता किरोड़ी लाल मीणा के साथ कोई कनैक्शन थे? यह सवाल इस वजह से उठा है क्योंकि जैसे ही वे पकड़े गए, मीणा समाज के स्थानीय नेताओं ने मौके पर पहुंच कर किरोड़ी लाल मीणा को जानकारी देने के लिए उनसे संपर्क करने की कोशिश की। क्या यह प्रयास महज समाज के एक बड़े अफसर को राजनीतिक षड्यंत्र में फंसाए जाने के सिलसिले में किया गया? इसी से जुड़ा सवाल ये भी है कि स्थानीय नेताओं ने स्वत:स्फूर्त प्रदर्शन किया अथवा किसी के इशारे पर? सवाल ये भी है कि स्थानीय नेताओं को यह कैसे पता लगा कि एसपी मीणा तो पूरी तरह से निर्दोष हैं और वे राजनीतिक साजिश का शिकार हुए हैं? अव्वल तो उन्हें अपने समाज के अफसर की इस हरकत पर शर्मिंदगी होनी चाहिए थी, लेकिन अगर वे विरोध कर रहे हैं तो उन्हें जरूर यह जानकारी भी होगी कि यह षड्यंत्र किसने और क्यों रचा? इसका उन्हें खुलासा करना चाहिए।
वैसे मीणा पर कार्यवाही पर एक कयास ये भी लगाया जा रहा है कि इसके पीछे जरूर कोई राजनीतिक एजेंडा होगा। वो इस प्रकार की मंथली एक सामान्य सी प्रक्रिया है और मीणा अकेले पहले एसपी नहीं हैं, जिन्होंने ये कृत्य किया हो। अकेले वे ही निशाने पर क्यों लिए गए? सब जानते है कि भले ही एसपी मीणा के पकड़े जाने पर आज पुलिस की थू-थू हो रही है, मगर धरातल का सच ये है कि इस प्रकार की मंथली वसूली का चलन तो पूरे राज्य में है। मीणा से गलती ये हो गई कि उन्होंने वसूली का घटिया तरीका इस्तेमाल किया। अमूमन इस प्रकार की राशि हवाला के जरिए एक जगह से दूसरी जगह तक पहुंचाई जाती है, न कि सीधे थानों से वसूली करके सीधे एसपी तक पहुंचाई जाती है। खैर, अहम बात ये है कि राजेश मीणा पर ही शिकंजा क्यों कसा गया? कयास है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत किरोड़ी लाल मीणा के बढ़ते प्रभाव और उनके प्रभाव में आने वाली आईएएस व आईपीएस लॉबी पर दबाव बनाना चाहते हैं, ताकि वे आगामी चुनाव में ज्यादा परेशान न करें।
सब जानते हैं कि प्रदेश की आईएएस व आईपीएस लॉबी में कई धड़े हैं। मीणा लॉबी का अपना अलग वर्चस्व है। तो सवाल ये उठता है कि कहीं अफसरों की धड़ेबाजी के चक्कर में तो राजेश मीणा नहीं फंस गए? सच जो भी हो, यह तो समझ में आता ही है कि कुछ तो है, जो एसीबी ने मीणा के गिरेबां में हाथ डाला है।
-तेजवानी गिरधर