डा. राजकुमार शर्मा |
राजस्थान के चिकित्सा राज्य मंत्री डा. राजकुमार शर्मा को तकलीफ है कि भूण हत्या के मामले में जागरूकता की क्रेडिट फिल्म अभिनेता आमिर खान कैसे ले गए, जबकि चिकित्सा महकमे की जिम्मेदारी उनके पास है। इतना ही नहीं, वे कहते हैं कि आमिर तो पर्दे के हीरो हैं, जबकि रीयल हीरो वे हैं। खान केवल पर्दे पर जागरूकता पैदा कर रहे हैं, जब कि वे तो गांव-गांव जाकर लोगों को बेटी बचाने के लिए कह रहे हैं। सवाल ये उठता है कि अगर डा. शर्मा असली हीरो हैं तो पर्दे के तथाकथित हीरो आमिर की पहल पर ही सरकार क्यों जागी? आमिर की सलाह पर ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने भूण हत्या के मामलों को निपटाने के लिए मुख्य न्यायाधीश से बात कर फास्ट ट्रेक कोर्ट खोलने की कवायद क्यों की? यह काम असली हीरो होते हुए खुद क्यों नहीं करवा पाए?
असल में लगता ये है कि डा. शर्मा को आमिर की पहल के बाद लगा होगा कि करने वाले तो हम हैं, आमिर ने तो केवल सुझाव दिया था, फिर भी फोकट में ही क्रेडिट ले गए। अर्थ ये निकाला गया कि सरकार को खुद को तो सूझा नहीं, आमिर आ कर जगा गए। और वो भी ऐसे कार्यक्रम के जरिए, जिसका वे भारी मेहनताना लेते हैं। तभी तो यह बयान दे दिया कि आमिर कन्या भूूण हत्या जैसे संवेदनशील मामले को लेकर टीवी शो सत्यमेव जयते के जरिये राजस्थान को बदनाम कर रहे हैं, जबकि प्रदेश में अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर हालात हैं। यहां की संवेदनशील सरकार पहले से ही इस दिशा में काफी काम कर रही है। शर्मा ने कहा कि आमिर भू्रण हत्या जैसे गंभीर मुद्दे को भी मनोरंजन का साधन बना रहे हैं, जो ठीक नहीं है। कार्यक्रम में वे एक शो के 3 करोड़ रुपए लेते हैं। समाचारों के मुताबिक वे इससे 20 करोड़ रुपए कमा चुके हैं। मीडिया को लगता है कि आमिर खान के इस शो के बाद ही सरकार हरकत में आई है, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मामले में पहले ही काफी चिंतित हैं। उन्होंने बेटी बचाने के लिए हमारी बेटी, मुखबिर स्कीम जैसी कई योजनाएं पहले से चला रखी हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया को लगता है कि सरकार ने टास्क फोर्स आमिर खान के राजस्थान में आने के बाद बनाई है, जबकि हकीकत यह है कि इसकी घोषणा तो बजट में ही की जा चुकी थी। डा. शर्मा की दलीलों में कितना दम है, ये तो पता नहीं, मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि आमिर की पहल के बाद ही सरकार जागी और मुख्यमंत्री गहलोत ने आमिर की पहल को सार्थक बताते हुए कन्या भू्रण हत्या के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से बात की। मुख्य न्यायाधीश ने भी इस पर सहमत दे दी। यानि कि जो काम वर्षों तक सरकारें नहीं कर पाईं, वह आमिर खान के एक शो ने कर दिया।
इतना ही नहीं मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश एन.के. जैन की खंडपीठ ने एडवोकेट एस.के. गुप्ता की याचिका पर संबंधित अदालतों को निर्देश दिए हैं कि पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत भू्रण परीक्षण से संबंधित मुकदमों में दो माह में निर्णय करें। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि आरोप तय होने के स्तर पर लंबित मुकदमों में आरोप तय कराए और आरोपियों को वारंटों की तामील कराए। अदालत ने सोनोग्राफी मशीनों में साइलेंट आब्जर्वर नहीं लगाने और विवाह पंजीयन के समय उपहारों की सूची संलग्न नहीं करने पर भी सरकार से जवाब मांगा है।
असल में डा. शर्मा की पीड़ा भी कम जायज नहीं है। मानव जाति को कलंकित करते कन्या भू्रण हत्या के मसले को जैसे ही फिल्म स्टार आमिर खान अपने पहले टेलीविजन शो सत्यमेव जयते को उठाया, वह इतना बड़ा मुद्दा बन गया अथवा नजर आने लगा है कि मानो देश में उससे बड़ी कोई समस्या ही नहीं हो। मानो इससे पहले कभी इस मसले पर किसी ने कुछ बोला ही नहीं, किया ही नहीं या इसके समाधान के लिए कोई कानून ही नहीं बना हुआ है। ऐसा स्थापित किया जा रहा है कि जैसे आमिर एक ऐसे रहनुमा पैदा हुए हैं, जो कि इस समस्या को जनआंदोलन ही बना डालेंगे।
दरअसल इस कार्यक्रम का इतना अधिक प्रचार किया गया सभी इस शो को देखने के लिए उत्सुक हो गए और जाहिर तौर पर मुद्दा सही था, इस कारण कार्यक्रम को देखने के बाद हर कोई आमिर खान का गुणगान करने लगा। मीडिया की तो बस पूछो ही मत। वह तो रट ही लगाने लग गया। खास तौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया। बेशक यह मुद्दा हमारी सबसे बड़ी सामाजिक बुराई से जुड़ा हुआ है और इस बुराई से निजात पाने के लिए सरकारें अपने स्तर कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहीं, मगर जैसे ही एक प्रसिद्ध फिल्म स्टार ने इस मुद्दे को उठाया, योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया, मीडिया ने उसे आसमान पर पहुंचा दिया। अब हर कहीं उसी की चर्चा हो रही है। यानि कि हमारी हालत ये हो गई है कि हम हमारे जीवन व समाज के जरूरी विषयों के मामले में भी मीडिया की बाजारवादी संस्कृति पर निर्भर हो गए हैं। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जिंदगी लाइव नामक कार्यक्रम, जिसमें समाज के ऐसे ही चेहरों को उजागर किया जाता है, मगर चूंकि उसे ठीक से मीडिया ने प्रचारित नहीं किया, इस कारण उसकी चर्चा ही नहीं होती। बाबा रामदेव को ही लीजिए। उन्होंने कोई नया योग ईजाद नहीं किया है। वह हमारी संस्कृति की हजारों साल पुरानी जीवन पद्धति का हिस्सा रहा है। बाबा रामदेव के बेहतर योगी इस देश में हुए हैं और अब भी हैं तथा अपने-अपने आश्रमों में योग सिखा रहे हैं, मगर चूंकि बाबा रामदेव ने इलैक्ट्रोनिक मीडिया का सहारा लिया तो ऐसा लगने लगा कि वे दुनिया के पहले योग गुरू हैं। प्राकृतिक चिकित्सा, ज्योतिष, वास्तु आदि बहुत से ऐसे विषय हैं, जो कि हमारी जीवन पद्यति में समाए हुए हैं, मगर अब चूंकि उन्हें मीडिया फोकस कर रहा है, इस कारण ऐसे नजर आने लगे हैं मानो हम तो उनके बारे में जानते ही नहीं थे। इसका सीधा अर्थ है कि हम जीवन के जरूरी मसलों पर भी तब तक नहीं जागते हैं, जबकि उसमें कोई ग्लैमर नहीं होता या मीडिया उसे बूम नहीं बना देता।
बेशक आमिर की मुहिम सराहनीय है, मगर हमारे जागने का जो तरीका है, वह तो कत्तई ठीक नहीं है। एक बात और। हम वास्तव में जाग भी रहे हैं या नहीं, यह भी गौर करने लायक होगा। इसी कारण ये सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ऐसे कार्यक्रम के जरिए कन्या भू्रण हत्या जैसी गंभीर समस्याओं को सुलझाया जा सकता है? यह वाकई चिंतनीय है। हमारा जागना तभी सार्थक होगा, जबकि चर्चा भर न करके उस अमल भी करें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
असल में लगता ये है कि डा. शर्मा को आमिर की पहल के बाद लगा होगा कि करने वाले तो हम हैं, आमिर ने तो केवल सुझाव दिया था, फिर भी फोकट में ही क्रेडिट ले गए। अर्थ ये निकाला गया कि सरकार को खुद को तो सूझा नहीं, आमिर आ कर जगा गए। और वो भी ऐसे कार्यक्रम के जरिए, जिसका वे भारी मेहनताना लेते हैं। तभी तो यह बयान दे दिया कि आमिर कन्या भूूण हत्या जैसे संवेदनशील मामले को लेकर टीवी शो सत्यमेव जयते के जरिये राजस्थान को बदनाम कर रहे हैं, जबकि प्रदेश में अन्य राज्यों की तुलना में काफी बेहतर हालात हैं। यहां की संवेदनशील सरकार पहले से ही इस दिशा में काफी काम कर रही है। शर्मा ने कहा कि आमिर भू्रण हत्या जैसे गंभीर मुद्दे को भी मनोरंजन का साधन बना रहे हैं, जो ठीक नहीं है। कार्यक्रम में वे एक शो के 3 करोड़ रुपए लेते हैं। समाचारों के मुताबिक वे इससे 20 करोड़ रुपए कमा चुके हैं। मीडिया को लगता है कि आमिर खान के इस शो के बाद ही सरकार हरकत में आई है, जबकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत इस मामले में पहले ही काफी चिंतित हैं। उन्होंने बेटी बचाने के लिए हमारी बेटी, मुखबिर स्कीम जैसी कई योजनाएं पहले से चला रखी हैं। उन्होंने कहा कि मीडिया को लगता है कि सरकार ने टास्क फोर्स आमिर खान के राजस्थान में आने के बाद बनाई है, जबकि हकीकत यह है कि इसकी घोषणा तो बजट में ही की जा चुकी थी। डा. शर्मा की दलीलों में कितना दम है, ये तो पता नहीं, मगर इसमें कोई दो राय नहीं कि आमिर की पहल के बाद ही सरकार जागी और मुख्यमंत्री गहलोत ने आमिर की पहल को सार्थक बताते हुए कन्या भू्रण हत्या के मामलों के लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट खोलने पर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से बात की। मुख्य न्यायाधीश ने भी इस पर सहमत दे दी। यानि कि जो काम वर्षों तक सरकारें नहीं कर पाईं, वह आमिर खान के एक शो ने कर दिया।
इतना ही नहीं मुख्य न्यायाधीश अरुण मिश्रा व न्यायाधीश एन.के. जैन की खंडपीठ ने एडवोकेट एस.के. गुप्ता की याचिका पर संबंधित अदालतों को निर्देश दिए हैं कि पीसीपीएनडीटी एक्ट के तहत भू्रण परीक्षण से संबंधित मुकदमों में दो माह में निर्णय करें। कोर्ट ने राज्य सरकार से कहा है कि आरोप तय होने के स्तर पर लंबित मुकदमों में आरोप तय कराए और आरोपियों को वारंटों की तामील कराए। अदालत ने सोनोग्राफी मशीनों में साइलेंट आब्जर्वर नहीं लगाने और विवाह पंजीयन के समय उपहारों की सूची संलग्न नहीं करने पर भी सरकार से जवाब मांगा है।
असल में डा. शर्मा की पीड़ा भी कम जायज नहीं है। मानव जाति को कलंकित करते कन्या भू्रण हत्या के मसले को जैसे ही फिल्म स्टार आमिर खान अपने पहले टेलीविजन शो सत्यमेव जयते को उठाया, वह इतना बड़ा मुद्दा बन गया अथवा नजर आने लगा है कि मानो देश में उससे बड़ी कोई समस्या ही नहीं हो। मानो इससे पहले कभी इस मसले पर किसी ने कुछ बोला ही नहीं, किया ही नहीं या इसके समाधान के लिए कोई कानून ही नहीं बना हुआ है। ऐसा स्थापित किया जा रहा है कि जैसे आमिर एक ऐसे रहनुमा पैदा हुए हैं, जो कि इस समस्या को जनआंदोलन ही बना डालेंगे।
दरअसल इस कार्यक्रम का इतना अधिक प्रचार किया गया सभी इस शो को देखने के लिए उत्सुक हो गए और जाहिर तौर पर मुद्दा सही था, इस कारण कार्यक्रम को देखने के बाद हर कोई आमिर खान का गुणगान करने लगा। मीडिया की तो बस पूछो ही मत। वह तो रट ही लगाने लग गया। खास तौर पर इलैक्ट्रॉनिक मीडिया। बेशक यह मुद्दा हमारी सबसे बड़ी सामाजिक बुराई से जुड़ा हुआ है और इस बुराई से निजात पाने के लिए सरकारें अपने स्तर कोई कसर बाकी नहीं छोड़ रहीं, मगर जैसे ही एक प्रसिद्ध फिल्म स्टार ने इस मुद्दे को उठाया, योजनाबद्ध तरीके से प्रचारित किया, मीडिया ने उसे आसमान पर पहुंचा दिया। अब हर कहीं उसी की चर्चा हो रही है। यानि कि हमारी हालत ये हो गई है कि हम हमारे जीवन व समाज के जरूरी विषयों के मामले में भी मीडिया की बाजारवादी संस्कृति पर निर्भर हो गए हैं। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है जिंदगी लाइव नामक कार्यक्रम, जिसमें समाज के ऐसे ही चेहरों को उजागर किया जाता है, मगर चूंकि उसे ठीक से मीडिया ने प्रचारित नहीं किया, इस कारण उसकी चर्चा ही नहीं होती। बाबा रामदेव को ही लीजिए। उन्होंने कोई नया योग ईजाद नहीं किया है। वह हमारी संस्कृति की हजारों साल पुरानी जीवन पद्धति का हिस्सा रहा है। बाबा रामदेव के बेहतर योगी इस देश में हुए हैं और अब भी हैं तथा अपने-अपने आश्रमों में योग सिखा रहे हैं, मगर चूंकि बाबा रामदेव ने इलैक्ट्रोनिक मीडिया का सहारा लिया तो ऐसा लगने लगा कि वे दुनिया के पहले योग गुरू हैं। प्राकृतिक चिकित्सा, ज्योतिष, वास्तु आदि बहुत से ऐसे विषय हैं, जो कि हमारी जीवन पद्यति में समाए हुए हैं, मगर अब चूंकि उन्हें मीडिया फोकस कर रहा है, इस कारण ऐसे नजर आने लगे हैं मानो हम तो उनके बारे में जानते ही नहीं थे। इसका सीधा अर्थ है कि हम जीवन के जरूरी मसलों पर भी तब तक नहीं जागते हैं, जबकि उसमें कोई ग्लैमर नहीं होता या मीडिया उसे बूम नहीं बना देता।
बेशक आमिर की मुहिम सराहनीय है, मगर हमारे जागने का जो तरीका है, वह तो कत्तई ठीक नहीं है। एक बात और। हम वास्तव में जाग भी रहे हैं या नहीं, यह भी गौर करने लायक होगा। इसी कारण ये सवाल उठाया जा रहा है कि क्या ऐसे कार्यक्रम के जरिए कन्या भू्रण हत्या जैसी गंभीर समस्याओं को सुलझाया जा सकता है? यह वाकई चिंतनीय है। हमारा जागना तभी सार्थक होगा, जबकि चर्चा भर न करके उस अमल भी करें।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com