देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने का झंडाबरदार बनी इंडिया अगेंस्ट करप्शन मुहिम की अजमेर इकाई इसके दिल्ली में बैठे मैनेजरों की लापरवाही की वजह से पथ-भ्रष्ट हो गई। पथ-भ्रष्ट कहना इसलिए अतिशयोक्तिपूर्ण नहीं कहा जा सकता क्यों कि उसमें गुटबाजी हो गई और उसका परिणाम ये रहा कि मौजूदा दौर की सर्वाधिक पवित्र मुहिम का कार्यक्रम फ्लॉप शो साबित हो गया।
असल में यह हालत पद और प्रतिष्ठा की लड़ाई के कारण हुआ। अजमेर इकाई का झंडा लेकर अब तक सक्रिय रही कॉर्डिनेटर प्रमिला सिंह को न केवल हटा दिया गया, अपितु उनको दिया गया पद ही समाप्त कर दिया गया। उनके स्थान कीर्ति पाठक को मुख्य कार्यकर्ता की जिम्मेदारी सौंप दी गई। बात यहीं खत्म नहीं हुई। एक ओर जहां कीर्ति पाठक ने ब्लॉसम स्कूल में इंडिया अगेंस्ट करप्शन के सदस्य श्रीओम गौतम का उद्बोधन आयोजित किया, वहीं प्रमिला सिंह भी पीछे नहीं रहीं और उन्होंने भी गौतम का कार्यक्रम कश्यप डेयरी में आयोजित करने की प्रेस रिलीज जारी कर दी। बड़ी दिलचस्प बात ये थी दोनों का समय शाम छह बजे बताया गया। जहां तक स्थान का सवाल है, बताने भर को दोनों अलग-अलग हैं, जबकि वे हैं एक ही स्थान पर। कश्यप डेयरी परिसर में ही ब्लॉसम स्कूल चलती है।
खैर, हुआ वही जो होना था। कीर्ती पाठक की ओर से आयोजित कार्यक्रम ब्लॉसम स्कूल में हुआ, प्रमिला सिंह वाला नहीं। इतना ही नहीं प्रमिला सिंह व उनके समर्थकों को कार्यक्रम में घुसने ही नहीं दिया गया। कीर्ति पाठक के पति राजेश पाठक ने पहले से ही पुलिस का बंदोबस्त कर दिया था। प्रमिला सिंह ने वहां खूब पैर पटके, मगर उनकी एक नहीं चली। इस पर उन्होंने झल्ला कर कहा कि वे आईएसी दिल्ली को शिकायत करेंगी। देखने वाल बात ये है कि उनकी शिकायत क्या रंग लाती है?
इस पूरे प्रकरण से यह तो स्पष्ट है कि प्रमिला सिंह को भी श्रीओम गौतम के आने की पुख्ता जानकारी थी। गौतम उनके कार्यक्रम में क्यों नहीं आए, इस पर दो सवाल उठते हैं। या तो प्रमिला सिंह को आखिर तक बेवकूफ बनाया जाता रहा या फिर उन्हें पता था कि गौतम उनके कार्यक्रम में नहीं आएंगे, फिर भी उन्होंने अपनी ओर से कार्यक्रम की घोषणा कर दी। हालांकि गौतम सुबह ही अजमेर आ गए थे, मगर प्रमिला सिंह लाख कोशिश के बाद भी उनसे मिल नहीं पाईं। वैसे ये संभव लगता नहीं है कि प्रमिला सिंह इतनी मासूम हैं कि उन्हें कीर्ति पाठक के कार्यक्रम का पता ही नहीं था।
बहरहाल, अजमेर इकाई में तो गुटबाजी उजागर हो ही गई है, मगर इस बात अभी पता नहीं लग पाया है कि क्या यही हाल ऊपर भी है? रहा सवाल कॉर्डिनेटर जैसे पद को समाप्त करने का तो साफ है कि मुहिम के मैनेजरों को पद का झगड़ा समाप्त करने की अक्ल बाद में आई है। और पहले जो पद देने की व्यवस्था की गई थी, उसी का परिणाम है कि अजमेर में गुटबाजी हो गई। वैसे मुहिम से जुड़े कार्यकर्ताओं में यह कानाफूसी होते हुए जरूर सुनी गई कि प्रमिला सिंह को उनके व्यक्तित्व के मुहिम के अनुकूल नहीं मान कर हटाया गया है।
खैर, पूरे उत्तर भारत में सबसे पहले पूर्ण साक्षर घोषित होने का गौरव हासिल अजमेर में इस मुहिम का क्या हाल है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि गौतम के लोकपाल बिल विवेचना कार्यक्रम में एक सौ से कुछ अधिक ही लोग पहुंचे, वे भी जुटाए हुए। ऐसा प्रतीत होता है कि दिल्ली में मुहिम के मैनेजरों को यह पता ही नहीं कि अजमेर में उन्होंने जिन स्वच्छ छवि के लोगों को कमान सौंपी है, उनकी न तो कोई पहचान है और न ही जनता पर पकड़। तुर्रा ये कि वे आम जनता को जोड़ कर अभियान छेड़े हुए हैं। हालांकि इससे उनकी निष्ठा व ईमानदारी पर सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता, मगर इतना तो तय ही है कि उनको जनता को जोडऩे का कोई अनुभव ही नहीं है। केवल मीडिया के दम पर टिके हुए हैं। सोचते हैं कि चूंकि आमजन में भ्रष्टाचार के प्रति विरोध का भाव है, इस कारण मात्र मीडिया के जरिए ही वे उस फसल को काट लेंगे। अब ये बात किसी से छिपी हुई नहीं है कि लोकपाल बिल के मामले में मीडिया ने पिछले दिनों क्या कमाल कर दिखाया था। अजमेर वाला कार्यक्रम भी उसकी जीती जागती मिसाल है। जितना बड़ा वह कार्यक्रम था नहीं, उससे कहीं अधिक उसे कवरेज दिया गया। और यही वजह है कि कार्यक्रम आयोजित करने वाले जितने बड़े नेता हैं नहीं, उससे कहीं अधिक अपने आप को मानने लगे हैं।