लंबी जद्दोजहद के बाद भले ही पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे व संघ लॉबी के बीच सुलह हो गई हो और इस एकता से कथित अनुशासित पार्टी भाजपा के कार्यकर्ता उत्साहित हों, मगर वरिष्ठ भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी इस एकता की पोल खोलने को उतारु हैं। वे अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से जताने की जिद पर अड़े हैं, भले ही इससे पार्टी एकता की छीछालेदर हो जाए। उन्होंने इसका इसका ताजा नमूना पेश किया राजस्थान विधानसभा सत्र के पहले दिन राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान। उन्होंने पार्टी लाइन से हट कर राज्यपाल के अंग्रेजी में पढ़े जाने वाले अभिभाषण पर व्यवस्था का सवाल उठाते हुए ऐतराज किया। यह बात दीगर है कि राज्यपाल ने उनके विरोध को देखते हुए अभिभाषण के कुछ पैरे हिंदी में पढ़े, मगर इससे भाजपाई रणनीति की कमजोरी तो उजागर हो ही गई।
अव्वल तो वे भाजपा विधायक दल की बैठक में गए ही नहीं, जिसमें कि रणनीति तैयार की गई थी। इसी से अंदाजा लग जाता है कि उन्हें पार्टी गाइड लाइन की कोई परवाह ही नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने जो कहा था वह करके दिखाया। ज्ञातव्य है कि जब यह बात सामने आई कि राज्यपाल मारग्रेट अल्वा अंग्रेजी में अभिभाषण पढ़ेंगी तो भाजपा का रुख स्पष्ट नहीं था कि वह इसका विरोध करेगी या नहीं, जबकि तिवाड़ी ने पहले ही कह दिया कि वे तो इसका विरोध करेंगे, चाहे कोई उनका साथ दे या नहीं। वे अकेले ही इस मुद्दे को उठाने का ऐलान कर चुके थे। और ठीक इसके अनुरूप किया। हालांकि भाजपा विधायक दल की बैठक में यह तय हुआ था कि राज्यपाल के अभिभाषण की भाषा को लेकर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया विरोध दर्ज करवाएंगे, लेकिन तिवाड़ी ने इस फैसले की परवाह किए बिना ही विधानसभा में अभिभाषण शुरू होने से पहले ही हिंदी-अंग्रेजी का मुद्दा उठा लिया। बाद में कटारिया को यह कह सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने विधायक दल की बैठक खत्म होने के बाद तिवाड़ी को बता दिया था कि क्या रणनीति तय हुई है। इस प्रकार भले ही कटारिया ने पार्टी में एकजुटता होने का संकेत दिया हो, मगर यह साफ है कि तिवाड़ी बेहद नाराज हैं। उनके तल्खी भले जवाब को दिखिए-मुझे विधायक दल की बैठक की सूचना नहीं थी। मैंने कोई मुद्दा हाईजेक नहीं किया। मैंने सदन में व्यवस्था का प्रश्न उठाया था कि राज्यपाल अंग्रेजी में अभिभाषण नहीं पढ़ सकतीं। ये बात जो जानता होगा वही तो बोलेगा! मैंने कोई पार्टी लाइन नहीं तोड़ी। ये विधानसभा के स्वाभिमान और राष्ट्रभाषा की रक्षा का मसला था। कुल मिला कर यह स्पष्ट है कि तिवाड़ी को अभी राजी नहीं किया जा सका है और वे आगे भी फटे में टांग फंसाते रहेंगे।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश भाजपा में नए तालमेल के प्रति उनकी असहमति तभी पता लग गई थी, जबकि दिल्ली में सुलह वाले दिन वे तुरंत वहां से निजी काम के लिए चले गए। इसके बाद वसुंधरा के राजस्थान आगमन पर स्वागत करने भी नहीं गए। श्रीमती वसुंधरा के पद भार संभालने वाले दिन सहित कटारिया के नेता प्रतिपक्ष चुने जाने पर मौजूद तो रहे, मगर कटे-कटे से। कटारिया के स्वागत समारोह में उन्हें बार-बार मंच पर बुलाया गया लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिले और हाथ का इशारा कर इनकार कर दिया। बताते हैं कि इससे पहले तिवाड़ी बैठक में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन कटारिया और भूपेंद्र यादव उन्हें घर मनाने गए। इसके बाद ही तिवाड़ी यहां आने के लिए राजी हुए। उन्होंने दुबारा उप नेता बनने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। उनके मन में पीड़ा कितनी गहरी है, इसका अंदाजा इसी बयान से लगा जा सकता है कि मैं ब्राह्मण के घर जन्मा हूं। ब्राह्मण का तो मास बेस हो ही नहीं सकता। मैं राजनीति में जरूर हूं, लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना अपनी शान के खिलाफ समझता हूं। मैं उपनेता का पद स्वीकार नहीं करूंगा।
-तेजवानी गिरधर
अव्वल तो वे भाजपा विधायक दल की बैठक में गए ही नहीं, जिसमें कि रणनीति तैयार की गई थी। इसी से अंदाजा लग जाता है कि उन्हें पार्टी गाइड लाइन की कोई परवाह ही नहीं है। इतना ही नहीं, उन्होंने जो कहा था वह करके दिखाया। ज्ञातव्य है कि जब यह बात सामने आई कि राज्यपाल मारग्रेट अल्वा अंग्रेजी में अभिभाषण पढ़ेंगी तो भाजपा का रुख स्पष्ट नहीं था कि वह इसका विरोध करेगी या नहीं, जबकि तिवाड़ी ने पहले ही कह दिया कि वे तो इसका विरोध करेंगे, चाहे कोई उनका साथ दे या नहीं। वे अकेले ही इस मुद्दे को उठाने का ऐलान कर चुके थे। और ठीक इसके अनुरूप किया। हालांकि भाजपा विधायक दल की बैठक में यह तय हुआ था कि राज्यपाल के अभिभाषण की भाषा को लेकर नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया विरोध दर्ज करवाएंगे, लेकिन तिवाड़ी ने इस फैसले की परवाह किए बिना ही विधानसभा में अभिभाषण शुरू होने से पहले ही हिंदी-अंग्रेजी का मुद्दा उठा लिया। बाद में कटारिया को यह कह सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने विधायक दल की बैठक खत्म होने के बाद तिवाड़ी को बता दिया था कि क्या रणनीति तय हुई है। इस प्रकार भले ही कटारिया ने पार्टी में एकजुटता होने का संकेत दिया हो, मगर यह साफ है कि तिवाड़ी बेहद नाराज हैं। उनके तल्खी भले जवाब को दिखिए-मुझे विधायक दल की बैठक की सूचना नहीं थी। मैंने कोई मुद्दा हाईजेक नहीं किया। मैंने सदन में व्यवस्था का प्रश्न उठाया था कि राज्यपाल अंग्रेजी में अभिभाषण नहीं पढ़ सकतीं। ये बात जो जानता होगा वही तो बोलेगा! मैंने कोई पार्टी लाइन नहीं तोड़ी। ये विधानसभा के स्वाभिमान और राष्ट्रभाषा की रक्षा का मसला था। कुल मिला कर यह स्पष्ट है कि तिवाड़ी को अभी राजी नहीं किया जा सका है और वे आगे भी फटे में टांग फंसाते रहेंगे।
ज्ञातव्य है कि प्रदेश भाजपा में नए तालमेल के प्रति उनकी असहमति तभी पता लग गई थी, जबकि दिल्ली में सुलह वाले दिन वे तुरंत वहां से निजी काम के लिए चले गए। इसके बाद वसुंधरा के राजस्थान आगमन पर स्वागत करने भी नहीं गए। श्रीमती वसुंधरा के पद भार संभालने वाले दिन सहित कटारिया के नेता प्रतिपक्ष चुने जाने पर मौजूद तो रहे, मगर कटे-कटे से। कटारिया के स्वागत समारोह में उन्हें बार-बार मंच पर बुलाया गया लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिले और हाथ का इशारा कर इनकार कर दिया। बताते हैं कि इससे पहले तिवाड़ी बैठक में ही नहीं आ रहे थे, लेकिन कटारिया और भूपेंद्र यादव उन्हें घर मनाने गए। इसके बाद ही तिवाड़ी यहां आने के लिए राजी हुए। उन्होंने दुबारा उप नेता बनने का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया। उनके मन में पीड़ा कितनी गहरी है, इसका अंदाजा इसी बयान से लगा जा सकता है कि मैं ब्राह्मण के घर जन्मा हूं। ब्राह्मण का तो मास बेस हो ही नहीं सकता। मैं राजनीति में जरूर हूं, लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना अपनी शान के खिलाफ समझता हूं। मैं उपनेता का पद स्वीकार नहीं करूंगा।
-तेजवानी गिरधर