तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, नवंबर 11, 2012

गडकरी की विदाई तय, जोशी-जेटली का नाम उभरा


हालांकि पूर्ति कंपनी विवाद के बाद भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी को हटाए जाने की चर्चाओं पर पार्टी ने विराम लगा दिया है, मगर यह तय माना जा रहा है कि उन्हें दुबारा अध्यक्ष बनाए जाने की संभावना पूरी तरह से समाप्त हो गई है। इसका संकेत इस बात से भी मिलता है कि भाजपा की आधिकारिक वेबसाइट बीजेपी.ओआरजी में जहां उनके दूसरी बार अध्यक्ष बनने से पहले ही अगले कार्यकाल में अध्यक्ष के रूप में उनका नाम डाल दिया गया था, लेकिन विवाद होने पर उनके दूसरे कार्यकाल वाला कालम हटा ही दिया गया। रहा सवाल नए अध्यक्ष का तो उस पर मंथन शुरू हो गया है। चर्चा में यूं तो कई नाम हैं, जिनमें पूर्व अध्यक्ष लाल कृष्ण आडवाणी, अरुण जेटली आदि की चर्चा है, मगर समझा जाता है कि संघ को डॉ. मुरली मनोहर जोशी का नाम ज्यादा रुचता है। उसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि उन पर अब तक कोई दाग नहीं लगा है और दूसरा ये कि वे सीनियर होने के नाते डिजर्व भी करते हैं।
यूं तो पार्टी का एक धड़ा फिर से आडवाणी की ताजपोशी करने के पक्ष में है, मगर संघ इसके लिए राजी नहीं हो रहा, क्योंकि जिन्ना संबंधी बयान की वजह से संघ के दबाव में उन्हें पद छोडऩा पड़ा था। अब अगर संघ उनके नाम पर सहमति देता है तो इसका ये ही अर्थ निकाला जाएगा कि संघ समझौते को मजबूर हुआ है। बावजूद इसके आडवाणी के नाम को पूरी तरह से नकारा नहीं गया है। इस बीच दूसरा नाम राज्यसभा में विपक्ष के नेता अरुण जेटली का उभरा है, जिनको नरेन्द्र मोदी व आडवाणी का समर्थन हासिल माना जा रहा है। मंथन के दौरान चंद दिन बाद ही मुरली मनोहर जोशी का नाम भी उभरा है, जिनको कि संघ का समर्थन हासिल होने की संभावना जताई जा रही है। बताया जाता है कि वाराणसी से सांसद जोशी के इलाके में अरसे संघ प्रचारक का काम देखते रहे व मौजूदा सरकार्यवाह डॉ. कृष्णगोपाल ने उनका नाम सुझाया है और उसके लिए संघ के अन्य प्रमुख नीति निर्धारकों को लामबंद भी किया जा रहा है।
यहां यह बताना प्रासंगिक ही होगा कि जोशी पार्टी में कितनी दमदार  स्थिति में रहे हैं। पिछली बार वे लोकसभा में विपक्ष का नेता बनते बनते रह गए थे। वे संघ की पहली पसंद थे, मगर हुआ यूं कि ऐन वक्त पर आडवाणी व संघ के बीच एक समझौता हुआ, वो यह कि संघ आडवाणी की ओर से सुझाए गए सुषमा स्वराज के नाम पर आपत्ति नहीं करेगा और संघ की ओर से अध्यक्ष के रूप में पेश नितिन गडकरी के नाम पर ऐतराज नहीं जताएंगे। नतीजतन जोशी नेता प्रतिपक्ष बनते बनते रह गए। ताजा हालत में जहां सुषमा स्वराज पूरी तरह से गडकरी का साथ दे रही हैं तो आडवाणी ने अरुण जेटली पर हाथ धर दिया है। अब देखना ये है कि संघ आडवाणी और मोदी के दबाव में आता है या फिर अपनी पसंद के जोशी को अध्यक्ष बनवाने मे कामयाब रहता है।
-तेजवानी गिरधर