हालांकि समाजवादी पार्टी का अभी तक राजस्थान में कोई जनाधार नहीं रहा है, मगर पदोन्नति में आरक्षण समाप्त करने का नया पैंतरा चलने वाली समाजवादी पार्टी अब यहां भी अपनी जमीन तलाशने लगी है। उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खुद ही अपने राज्य के बाद राजस्थान का रुख करना चाहते थे कि पदोन्नति में आरक्षण का विरोध करने वाल समता आंदोलन समिति ने उन्हें अकेले इसी मुद्दे पर जयपुर में सम्मानित करने का न्यौता दे दिया। अंधा क्या चाहे, दो आखें, वे तुरंत राजी हो गए। जयपुर आए तो उनका भव्य स्वागत किया गया।
अखिलेश की इस नई चाल से जहां राजस्थान का चुनावी समीकरण बदलने के आसार दिखाई दे रहे हैं, वहीं अखिलेश की भी कोशिश है कि इस बहाने अपने जातीय वोटों के अतिरिक्त समता आंदोलन का साथ दे रहे कांग्रेस व भाजपा के कार्यकर्ता उनके साथ जुड़ जाएं। जहां तक मुद्दे का सवाल है एक अनुमान के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था से प्रदेश के 72 फीसदी सवर्ण कर्मचारी यानी 5 लाख से अधिक परिवार प्रभावित होते हैं। वे अगर कांग्रेस व भाजपा से रूठ कर सपा के साथ जुड़ते हैं तो जाहिर तौर पर यहां का राजनीतिक समीकरण बदल जाएगा। इसमें भी बड़ा पेच यह है अधिसंख्य सवर्ण भाजपा मानसिकता के माने जाते हैं। यानि अगर वे सपा की ओर आकर्षित होते हैं तो ज्यादा नुकसान भाजपा का ही होगा। सच तो ये है आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ताओं में भाजपा मानसिकता के लोग ही ज्यादा है। इस लिहाज से सपा की राजस्थान में एंट्री भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। नुकसान कांग्रेस को भी होगा, मगर कुछ कम। पदोन्नति में आरक्षण की वह भी पक्षधर है, मगर चूंकि इससे उसका पहले से कायम अनुसूचित जाति का वोट बैंक मजबूत होता है तो उसक एवज में सवर्ण वोटों में सेंध पड़ती है तो वह उसे बर्दाश्त करने की स्थिति में है। रहा सवाल भाजपा का तो उसकी भी अनुसूचित जाति पर पकड़ मजबूत होगी, मगर एकाएक कांग्रेस का गढ़ वह तोड़ पाएगी, इसकी संभावना कम ही है।
नए समीकरण के बारे में भाजपा के थिंक टैंकरों का मानना है कि इससे भाजपा को कोई नुकसा नहीं होगा। उनका तर्क ये है कि सपा का जातिगत आधार अलग रूप में है। कांग्रेस और सपा के वोट बैंक में एक समानता है-अल्पसंख्यक, एससी-एसटी और ओबीसी। अगर सपा चुनाव में उतरती है तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस के इस वोट बैंक में सेंध लग सकती है। उनकी सोच भी सही है, मगर वे यह नहीं समझ पा रहे कि पदोन्नति में आरक्षण का समर्थन करने के कारण अनुसूचित जाति सपा के साथ कैसे जाएगी।
अब जरा ये भी देख लें कि सपा की राजस्थान में एंट्री कहां कहां पर होगी। यूं तो पूरे राजस्थान में ही वह अपने वोट पकाएगी, मगर ज्यादा असर मुंडावर, बहरोड़, बानसूर, तिजारा, अलवर शहर, अलवर ग्रामीण, किशनगढ़ बास, डीग, कुम्हेर, कामां, कोटपूतली, आमेर, विराटनगर, शाहपुरा, धौलपुर यादव बहुल इलाकों पर पड़ेगा। वहां का यादव सीधे तौर पर उसके साथ हो जाएगा। अर्थात केवल यादव बहुल इलाके में ही ज्यादा असर का माना जाए तो सपा कम से कम दस सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी। कांग्रेस व भाजपा को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में वह ब्लैकमेलिंग की स्थिति में आ सकती है। इसका अर्थ होता है सीधे-सीधे सत्ता में भागीदारी।
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि प्रदेश में सरकारी भर्ती के साथ पदोन्नति में भी एससी को 16' और एसटी को 12' आरक्षण का प्रावधान है। इससे वरिष्ठता और अनारक्षित वर्ग की सीटों के भी प्रभावित होने पर राज्य कर्मियों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। फिर भी पदोन्नति में 16 और 12' आरक्षण जारी रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अन्य नेता आरक्षित वर्ग के पक्ष में खड़े हो गए थे।
जहां तक अखिलेश के अभिनंदन का सवाल है, इससे समता आंदोलन समिति को एक तरह से सरकार पर यह दबाव बढ़ाने का मौका मिल गया है। इस बहाने उसे एक रहनुमा भी हासिल हुआ है, जो उनकी हर तरह से मदद कर सकता है। अर्थात अब समता आंदोलन और मजबूत हो कर उभर सकता है।
-तेजवानी गिरधर
अखिलेश की इस नई चाल से जहां राजस्थान का चुनावी समीकरण बदलने के आसार दिखाई दे रहे हैं, वहीं अखिलेश की भी कोशिश है कि इस बहाने अपने जातीय वोटों के अतिरिक्त समता आंदोलन का साथ दे रहे कांग्रेस व भाजपा के कार्यकर्ता उनके साथ जुड़ जाएं। जहां तक मुद्दे का सवाल है एक अनुमान के अनुसार पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था से प्रदेश के 72 फीसदी सवर्ण कर्मचारी यानी 5 लाख से अधिक परिवार प्रभावित होते हैं। वे अगर कांग्रेस व भाजपा से रूठ कर सपा के साथ जुड़ते हैं तो जाहिर तौर पर यहां का राजनीतिक समीकरण बदल जाएगा। इसमें भी बड़ा पेच यह है अधिसंख्य सवर्ण भाजपा मानसिकता के माने जाते हैं। यानि अगर वे सपा की ओर आकर्षित होते हैं तो ज्यादा नुकसान भाजपा का ही होगा। सच तो ये है आंदोलन के मुख्य कर्ताधर्ताओं में भाजपा मानसिकता के लोग ही ज्यादा है। इस लिहाज से सपा की राजस्थान में एंट्री भाजपा के लिए परेशानी का सबब बन सकती है। नुकसान कांग्रेस को भी होगा, मगर कुछ कम। पदोन्नति में आरक्षण की वह भी पक्षधर है, मगर चूंकि इससे उसका पहले से कायम अनुसूचित जाति का वोट बैंक मजबूत होता है तो उसक एवज में सवर्ण वोटों में सेंध पड़ती है तो वह उसे बर्दाश्त करने की स्थिति में है। रहा सवाल भाजपा का तो उसकी भी अनुसूचित जाति पर पकड़ मजबूत होगी, मगर एकाएक कांग्रेस का गढ़ वह तोड़ पाएगी, इसकी संभावना कम ही है।
नए समीकरण के बारे में भाजपा के थिंक टैंकरों का मानना है कि इससे भाजपा को कोई नुकसा नहीं होगा। उनका तर्क ये है कि सपा का जातिगत आधार अलग रूप में है। कांग्रेस और सपा के वोट बैंक में एक समानता है-अल्पसंख्यक, एससी-एसटी और ओबीसी। अगर सपा चुनाव में उतरती है तो कहा जा सकता है कि कांग्रेस के इस वोट बैंक में सेंध लग सकती है। उनकी सोच भी सही है, मगर वे यह नहीं समझ पा रहे कि पदोन्नति में आरक्षण का समर्थन करने के कारण अनुसूचित जाति सपा के साथ कैसे जाएगी।
अब जरा ये भी देख लें कि सपा की राजस्थान में एंट्री कहां कहां पर होगी। यूं तो पूरे राजस्थान में ही वह अपने वोट पकाएगी, मगर ज्यादा असर मुंडावर, बहरोड़, बानसूर, तिजारा, अलवर शहर, अलवर ग्रामीण, किशनगढ़ बास, डीग, कुम्हेर, कामां, कोटपूतली, आमेर, विराटनगर, शाहपुरा, धौलपुर यादव बहुल इलाकों पर पड़ेगा। वहां का यादव सीधे तौर पर उसके साथ हो जाएगा। अर्थात केवल यादव बहुल इलाके में ही ज्यादा असर का माना जाए तो सपा कम से कम दस सीटों को सीधे तौर पर प्रभावित करेगी। कांग्रेस व भाजपा को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति में वह ब्लैकमेलिंग की स्थिति में आ सकती है। इसका अर्थ होता है सीधे-सीधे सत्ता में भागीदारी।
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि प्रदेश में सरकारी भर्ती के साथ पदोन्नति में भी एससी को 16' और एसटी को 12' आरक्षण का प्रावधान है। इससे वरिष्ठता और अनारक्षित वर्ग की सीटों के भी प्रभावित होने पर राज्य कर्मियों ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक 17 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी। फिर भी पदोन्नति में 16 और 12' आरक्षण जारी रहा, क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत सहित अन्य नेता आरक्षित वर्ग के पक्ष में खड़े हो गए थे।
जहां तक अखिलेश के अभिनंदन का सवाल है, इससे समता आंदोलन समिति को एक तरह से सरकार पर यह दबाव बढ़ाने का मौका मिल गया है। इस बहाने उसे एक रहनुमा भी हासिल हुआ है, जो उनकी हर तरह से मदद कर सकता है। अर्थात अब समता आंदोलन और मजबूत हो कर उभर सकता है।
-तेजवानी गिरधर