हालांकि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी व दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक-एक बार अपनी-अपनी चमक दिखा चुके हैं, मगर दिल्ली विधानसभा के दुबारा होने जा रहे चुनाव में दोनों को ही एक अग्रि परीक्षा से गुजरना है। एक ओर जहां मोदी को यह साबित करना है कि जो लहर उन्होंने पूरे देश में चला कर सत्ता हासिल की और उसके बाद हुए चुनावों में भी लहर की मौजूदगी का अहसास कराया, क्या वह देश की राजधानी दिल्ली में भी मौजूद है, वहीं केजरीवाल को एक बार फिर उस कसौटी से गुजरना है, जिसमें उन्होंने साबित किया था कि देश को सत्ता परिवर्तन ही नहीं बल्कि व्यवस्था परिवर्तन की जरूरत है।
हालांकि सीधे तौर पर दिल्ली में होने जा रहे चुनाव से मोदी का लेना-देना नहीं है, क्योंकि वहां उन्हें या तो अपनी पार्टी व उसकी नीतियों के आधार पर या फिर किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करके चुनावी रणनीति बनानी है, बावजूद इसके इस चुनाव के परिणाम उनकी छवि व लहर का आकलन करने वाले हैं। यूं भी दिल्ली का चुनाव कोई मात्र विधानसभा का ही चुनाव नहीं है, बल्कि वह एक तरह से राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित रहने वाला है। इसी चुनाव से पता लगेगा कि आम जनता मोदी व उनकी नीतियों का समर्थन करती है या फिर केजरीवाल की कल्पित नई व साफ सुथरी व्यवस्था में अपनी आस्था जताती है।
जैसा नजर आता है, उसके अनुसार भाजपा को मोदी की छवि, उनकी लहर और देश में उसकी सत्ता का लाभ मिलने ही वाला है। दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा इतनी मजबूत स्थिति में नहीं थी। दूसरा ये कि जो लहर पूरे देश में अन्य विधानसभा चुनावों में दिखाई दी थी, उसका असर दिल्ली में नजर नहीं आया था। वहां चूंकि जनता सीधे तौर पर अन्ना हजारे के आंदोलन व केजरीवाल की मुहिम से सीधे जुड़ी हुई थी, इस कारण मोदी के नाम का कोई खास चमत्कार नहीं हो पाया था। मगर अब स्थितियां भिन्न हैं। मोदी एक बड़ा पावर सेंटर बन चुके हैं, जबकि केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से स्तीफा देकर लोकसभा चुनाव में खराब परफोरमेंस की वजह से पहले जितने लोकप्रिय नहीं रह गए हैं। उनकी दिल्ली की राजनीतिक गणित पर पकड़ तो है, मगर सवाल ये उठता है क्या दिल्ली की जनता केन्द्र में भाजपा की सरकार के रहते केजरीवाल को दुबारा मुख्यमंत्री बनने का मौका देगी? क्या जिन मुद्दों से आकर्षित हो कर जनता ने केजरीवाल का साथ दिया था, वे अब बदली परिस्थितियों में भी उसे जरूरी नजर आते हैं?
कुल मिला कर मोदी व केजरीवाल के लिए ये चुनाव बेहद प्रतिष्ठापूर्ण हैं। अगर भाजपा यह चुनाव हारती है तो इसी के साथ मोदी लहर के अवसान की शुरुआत हो जाएगी। और अगर जीतती है तो मोदी और अधिक ताकतवर हो जाएंगे। उधर केजरीवाल के लिए बड़ी परेशानी है। अगर वे जीतते हैं तो फिर से अपनी पार्टी को संवारने और उसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का मौका पाएंगे और अगर हारते हैं तो इसी के साथ उनके राजनीतिक अवसान का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
-तेजवानी गिरधर
हालांकि सीधे तौर पर दिल्ली में होने जा रहे चुनाव से मोदी का लेना-देना नहीं है, क्योंकि वहां उन्हें या तो अपनी पार्टी व उसकी नीतियों के आधार पर या फिर किसी व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करके चुनावी रणनीति बनानी है, बावजूद इसके इस चुनाव के परिणाम उनकी छवि व लहर का आकलन करने वाले हैं। यूं भी दिल्ली का चुनाव कोई मात्र विधानसभा का ही चुनाव नहीं है, बल्कि वह एक तरह से राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित रहने वाला है। इसी चुनाव से पता लगेगा कि आम जनता मोदी व उनकी नीतियों का समर्थन करती है या फिर केजरीवाल की कल्पित नई व साफ सुथरी व्यवस्था में अपनी आस्था जताती है।
जैसा नजर आता है, उसके अनुसार भाजपा को मोदी की छवि, उनकी लहर और देश में उसकी सत्ता का लाभ मिलने ही वाला है। दिल्ली विधानसभा के पिछले चुनाव में भाजपा इतनी मजबूत स्थिति में नहीं थी। दूसरा ये कि जो लहर पूरे देश में अन्य विधानसभा चुनावों में दिखाई दी थी, उसका असर दिल्ली में नजर नहीं आया था। वहां चूंकि जनता सीधे तौर पर अन्ना हजारे के आंदोलन व केजरीवाल की मुहिम से सीधे जुड़ी हुई थी, इस कारण मोदी के नाम का कोई खास चमत्कार नहीं हो पाया था। मगर अब स्थितियां भिन्न हैं। मोदी एक बड़ा पावर सेंटर बन चुके हैं, जबकि केजरीवाल मुख्यमंत्री पद से स्तीफा देकर लोकसभा चुनाव में खराब परफोरमेंस की वजह से पहले जितने लोकप्रिय नहीं रह गए हैं। उनकी दिल्ली की राजनीतिक गणित पर पकड़ तो है, मगर सवाल ये उठता है क्या दिल्ली की जनता केन्द्र में भाजपा की सरकार के रहते केजरीवाल को दुबारा मुख्यमंत्री बनने का मौका देगी? क्या जिन मुद्दों से आकर्षित हो कर जनता ने केजरीवाल का साथ दिया था, वे अब बदली परिस्थितियों में भी उसे जरूरी नजर आते हैं?
कुल मिला कर मोदी व केजरीवाल के लिए ये चुनाव बेहद प्रतिष्ठापूर्ण हैं। अगर भाजपा यह चुनाव हारती है तो इसी के साथ मोदी लहर के अवसान की शुरुआत हो जाएगी। और अगर जीतती है तो मोदी और अधिक ताकतवर हो जाएंगे। उधर केजरीवाल के लिए बड़ी परेशानी है। अगर वे जीतते हैं तो फिर से अपनी पार्टी को संवारने और उसे राष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का मौका पाएंगे और अगर हारते हैं तो इसी के साथ उनके राजनीतिक अवसान का खतरा उत्पन्न हो जाएगा।
-तेजवानी गिरधर