उन्होंने गीता में उल्लिखित भगवान श्रीकृष्ण के संदेश, यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतरू, अभ्युत्थानमधर्मस्य तत्दात्मानम सृजाम्यहम का जिक्र करते हुए बताया कि इस संदेश में ही यह अंतनिर्हित है कि धर्म की हानि तो होती रहेगी और अधर्म को मिटाने के लिए भगवान भी बार-बार अवतरित होते रहेंगे। सिलसिला कहीं थमने वाला नहीं है। महापुरुष जन्म लेंगे। बेशक अपने-अपने काल खंड को प्रभावित करेंगे, मगर किसी का प्रभाव शाश्वत नहीं रहेगा। कुत्ते की पूंछ सा है आदमी। तो तुम दुनिया को सुधारने का जिम्मा मत लो, वह भगवान पर ही छोड़ दो। जरा सोचो कि खुद भगवान को ही बार-बार अवतार लेना पड़ता है, एक बार के अवतार से वे दुनिया को पूरा सुधार नहीं पाते। दुनिया में फिर से अधर्म का बोलबाला हो जाता है। ऐसे में तुम्हारी बिसात ही क्या है?
और खुलासा करते हुए उन्होंने बताया कि समय का एक प्रवाह है। एक धारा है। जैसे एक नदी के प्रवाह को हम रोक नहीं पाते, वैसे ही वक्त के खिलाफ चलने से कुछ हासिल होने वाला नहीं है। यदि हम नदी की धारा को रोकने की कोशिश करेंगे तो मात्र अपने शरीर मात्र की सीमा तक सफल हो पाएंगे। और वह भी कब तक? हद से हद साठ-सत्तर साल तक। जैसे ही तुम समाप्त हो जाओगे, वह फिर से अपनी दिशा में बहती रहेगी। ये दुनिया ऐसी ही रहेगी। तो क्यों फालतू में अपना टाइम बर्बाद करते हो। काहे फिक्र करो दुनिया की? उचित ये है कि सारा ध्यान अपने पर केन्द्रित कर लो। दुनिया के कल्याण का ख्याल छोड़ो, वह तुमसे होना भी नहीं है, ज्यादा अच्छा है कि आत्म कल्याण की दिशा में बढ़ जाओ। यह सीख मेरे जेहन में गहरे पैठी हुई है, हालांकि इस पर सीमित ही अमल कर पाया हूं।
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