तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अगस्त 15, 2013

तिवाड़ी भी हुए वसुंधरा शरणम गच्छामी

घोषणा पत्र बनाने के लिए अजमेर में हुई संभागीय बैठक में भाषण देते तिवाडी
राजस्थान में भाजपाई बेड़े की खेवनहार प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे के आगे प्रदेश के सारे दिग्गज भाजपा नेताओं के शरणम गच्छामी होने के बाद भी इकलौते वरिष्ठ नेता घनश्याम तिवाड़ी अलग सुर अलाप रहे थे। एक ओर तो वसुंधरा राजे सुराज संकल्प यात्रा में व्यस्त थीं, दूसरी ओर उन्होंने अपनी ओर से देव दर्शन यात्रा का नाटक शुरू कर दिया। बाबा रामदेव का सहयोग मिलने पर तो यह संदेश गया कि संभव है वे अपनी अलग पार्टी बना लेंगे। मगर जैसे ही बाबा रामदेव खुल कर नरेन्द्र मोदी और भाजपा की पैरवी करने लगे तो उन्हें भारी झटका  लगा। उनकी अक्ल ठिकाने आ गई कि इस वक्त भाजपा के विपरीत चलना अपने पैरों को कुल्हाड़ी मारने के समान होगा। सो वे भी पलटी खा गए। 
हाल ही वे भाजपा घोषणा पत्र के लिए सुझाव की संभागीय बैठक में भाग लेने अजमेर आए। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रदेश और देश में परिवर्तन अवश्यम्भावी होगा और भा.ज.पा. सुराज देने के लिये कृत संकल्प है। 
अपुन ने तो पहले ही इस कॉलम में लिख दिया कि तिवाड़ी भी अन्य दिग्गजों की तरह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे की शरण में आ जाएंगे। वरिष्ठ नेता रामदास अग्रवाल व अन्य वरिष्ठ नेताओं की समझाइश के बाद वसुंधरा व तिवाड़ी के बीच कायम दूरियां कम हुईं। बर्फ पिघलने के संकेत पिछले दिनों जयपुर में भाजपा के धरने पर उनकी मौजूदगी से भी मिल गए थे। अब तो वे घोषणा पत्र बनवाने में भी जुट गए हैं। 
ज्ञातव्य है कि वे वसुंधरा को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किए जाने के वे शुरू से ही खिलाफ थे। तिवाड़ी की खुली असहमति तब भी उभर कर आई, जब दिल्ली में सुलह वाले दिन ही वे तुरंत वहां से निजी काम के लिए चले गए। इसके बाद वसुंधरा के राजस्थान आगमन पर स्वागत करने भी नहीं गए। श्रीमती वसुंधरा के पद भार संभालने वाले दिन सहित कटारिया के नेता प्रतिपक्ष चुने जाने पर मौजूद तो रहे, मगर कटे-कटे से। कटारिया के स्वागत समारोह में उन्हें बार-बार मंच पर बुलाया गया लेकिन वे अपनी जगह से नहीं हिले और हाथ का इशारा कर इनकार कर दिया।
ज्ञातव्य है कि उन्होंने उप नेता का पद स्वीकार करने से इंकार कर दिया था और कहा था कि मैं राजनीति में जरूर हूं, लेकिन स्वाभिमान से समझौता करना अपनी शान के खिलाफ समझता हूं। मैं उपनेता का पद स्वीकार नहीं करूंगा। उनके इस बयान पर खासा भी खासी चर्चा हुई कि देव दर्शन में सबसे पहले जाकर भगवान के यहां अर्जी लगाऊंगा कि हे भगवान, हिंदुस्तान की राजनीति में जितने भी भ्रष्ट नेता हैं उनकी जमानत जब्त करा दे, यह प्रार्थना पत्र दूंगा। भगवान को ही नहीं उनके दर्शन करने आने वाले भक्तों से भी कहूंगा कि राजस्थान को बचाओ। वसुंधरा का नाम लिए बिना उन पर हमला करते हुए जब वे बोले कि राजस्थान को चरागाह समझ रखा है। वसुंधरा और पार्टी हाईकमान की बेरुखी को वे कुछ इन शब्दों में बयान कर गए-लोग कहते हैं कि घनश्यामजी देव दर्शन यात्रा क्यों कर रहे हैं? घनश्यामजी किसके पास जाएं? सबने कानों में रुई भर रखी है। न कोई दिल्ली में सुनता है, न यहां। सारी दुनिया बोलती है, उस बात को भी नहीं सुनते।
उन्हें उम्मीद थी कि आखिरकार संघ पृष्ठभूमि के पुराने नेताओं का उन्हें सहयोग मिलेगा, मगर हुआ ये कि धीरे-धीरे सभी वसुंधरा शरणम गच्छामी होते गए। रामदास अग्रवाल, कैलाश मेघवाल और ओम माथुर जैसे दिग्गज धराशायी हुए तो तिवाड़ी अकेले पड़ गए। उन्हें साफ दिखाई देने लगा कि यदि वे हाशिये पर ही बैठे रहे तो उनका पूरा राजनीतिक केरियर की चौपट हो जाएगा। ऐसे में रामदास अग्रवाल की समझाइश से उनका दिमाग ठिकाने आ गया है।
-तेजवानी गिरधर

मंगलवार, अगस्त 06, 2013

राजस्थान में चंद माह में सुधरे माहौल से जागी राहुल की उम्मीद

पिछले कुछ माह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की ओर से की गई मशक्कत के बाद बदले माहौल से कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को अब जा कर उम्मीद जागी है कि इस बार राजस्थान में फिर से कांग्रेस की सरकार बनाई जा सकती है, इसी कारण उन्होंने यहां पर विशेष ध्यान देना शुरू कर दिया है। इसी सिलसिले में उनके निर्देशन में बनी चुनाव अभियान समिति और घोषणा पत्र समिति को पूरी तरह से संतुलित बनाया गया और उसके बाद प्रदेश के सभी बड़े नेताओं की बैठक भी ली। इस बैठक में उनका सारा जोर इसी बात पर था कि राजस्थान में कांग्रेस की जीत सुनिश्चित है, मगर उसके लिए सभी कांग्रेस नेताओं को एकजुट होना होगा। हालांकि सच्चाई यह भी है कि ऊपर भले ही वे गुटबाजी पर कुछ अंकुश लगाने में कामयाब हो जाएं, मगर निचले स्तर यदि खींचतान जारी रही तो परिणाम सुखद नहीं आ पाएंगे।
असल में आज से छह माह पहले तक जनता को ऐसा लग रहा था कि भाजपा बढ़त की स्थिति में हैं और आगामी सरकार भाजपा की ही बनेगी। भाजपाइयों को भी पूरा यकीन था कि अब वे सत्ता का काबिज होने ही जा रहे हैं। वस्तुत: इसकी एक वजह ये भी थी कि भ्रष्टाचार और महंगाई के कारण देशभर में यह माहौल बना कि कांग्रेस तो गई रसातल में। उसका प्रतिबिंब राजस्थान में भी दिखाई देने लगा। भाजपाई भी अति उत्साहित थी कि अब तो हम आ ही रहे हैं। रहा सवाल राज्य सरकार के कामकाज का तो वह था तो ठीकठाक, मगर उसका प्रोजेक्शन कमजोर था। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी उम्मीद थी कि उन्होंने पिछले चार साल में जो जनहितकारी काम किए हैं, उसकी वजह से जनता उनके साथ रहेगी, मगर सर्वे से यह सामने आया कि आम जन तक कांग्रेस सरकार के कामकाज का प्रचार ठीक से नहीं हुआ है। इस पर खुद गहलोत ने कांग्रेस संदेश यात्रा निकालने का जिम्मा उठाया। प्रदेशभर के दौरे पर निकले गहलोत ने जनता को बताया कि सरकार ने उनके लिए कांग्रेस घोषणा पत्र के अनुरूप कितने काम किए हैं। साथ ही कुछ और लोकलुभावन योजनाओं पर भी अमल शुरू कर दिया। हालाकि इसी दौरान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष श्रीमती वसुंधरा राजे भी सुराज संकल्प यात्रा ले कर निकलीं, मगर वे जिस तरह से गहलोत पर निजी व झूठे आरोप लगाने लगी तो जनता में यह धारणा बनती गई कि पूरे चार साल राज्य से बाहर रहने के बाद अब वे फिर से सत्ता में आने के लिए ही ऐसे आरोप लगा रही हैं। उनके आरोपों की धार तो तेज रही, मगर उसकी मार उतनी नजर नहीं आई। जुमले उनके तगड़े थे, मगर वे केवल भाषणों में ही सुहावने नजर आए, धरातल पर उसकी गंभीरता कम रही। खुद भाजपाई भी मानने लगे हैं कि इस बार वसुंधरा की यात्रा पहले जैसी कामयाब नहीं रही है। एक और उल्लेखनीय पहलू ये रहा कि पिछले छह में जब सरकार के कार्यक्रमों की क्रियान्विति के परिणाम सामने आने लगे तो जनता को समझ में आ गया कि सरकार उनके लिए गंभीरता से उनके लिए काम कर रही है। स्वाभाविक रूप से विभिन्न वर्गों को मिल रहे आर्थिक लाभ से माहौल बदला है। हालांकि इससे चिढ़ कर वसुंधरा ने यह आरोप लगाना शुरू किया कि सरकार खजाना लुटा रही है, मगर उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि यह खजाना आखिरकार गरीब जनता के लिए ही तो उपयोग में आ रहा है। कुछ मिला कर अब माहौल साफ होने लगा है कि कांग्रेस सरकार से जनता उतनी नाखुश नहीं है, जितना की प्रचार किया गया था। अब तो मीडिया के सर्वे भी कहने लगे हैं कि राजस्थान में कांग्रेस व भाजपा टक्कर में हैं। यानि कि कुछ माह में कांग्रेस ने अपने ग्राफ में कुछ सुधार किया है। भाजपा को भी समझ में आ गया है कि उनके बहकावे में जनता नहीं आ रही है। अब वह कुछ नए हथकंडे खेलने पर विचार कर रही है, जिनकी कल्पना करना कम से कम कांग्रेस के बस की तो बात नहीं।
बहरहाल, राहुल गांधी को यह फीडबैक मिल चुका है कि सरकार का परफोरमेंस तो ठीक है और राज्य में माहौल भी प्रतिकूल नहीं है, मगर गुटबाजी जारी रही तो सरकार का लौटना मुश्किल होगा। इस कारण वे अब सारा जोर गुटबाजी समाप्त करने और सभी गुटों को संतुष्ट करने में जुट गए हैं। हाल ही घोषित चुनाव संचालन समिति और घोषणा पत्र समिति में जिस प्रकार मुख्य धारा से हट कर चल रहे नेताओं को शामिल गया है, उनको भी शामिल किए जाने से यह संदेश गया है कि राहुल किसी भी सूरत में केवल गुटबाजी के कारण सरकार गंवाना नहीं चाहते। डेमेज कंट्रोल में कुछ कामयाबी भी हासिल हुई है, इसका एक संकेत देखिए कि जेल में बंद पूर्व जलदाय मंत्री महिपाल मदेरणा की पुत्री दिव्या मदेरणा तक का सुर बदल गया है, जो कि अब तक सरकार को लगातार घेरती रही थीं। समझा जाता है कि आने वाले दिनों में गुटबाजी समाप्त करने के कुछ और कदम सामने आ सकते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000