हालांकि, वैज्ञानिकों ने कुछ हद तक क्लोनिंग की तकनीकों का विकास किया है, जैसे कि जानवरों की क्लोनिंग। 1996 में भेड़ डॉली को सफलतापूर्वक क्लोन किया गया था, जो कि एक बडी उपलब्धि थी।
क्लोनिंग के दो प्रमुख प्रकार होते हैं- एक थेराप्यूटिक क्लोनिंग, इसमें स्टेम सेल्स का उपयोग किया जाता है ताकि किसी व्यक्ति के अंग या ऊतक की मरम्मत या प्रतिस्थापन किया जा सके। दूसरा रीप्रोडक्टिव क्लोनिंग, यह उस प्रक्रिया को संदर्भित करता है, जिसमें एक संपूर्ण जीव का क्लोन बनाया जाता है। लेकिन
यह एक बहुत ही जटिल और जोखिम भरी प्रक्रिया है, जिसमें स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर चिंताएं हैं।