पिछली 26 मई को नरेन्द्र मोदी सरकार के तीन साल पूरे हो गए। इस अवसर पर मोदी फैस्ट के जरिए उल्लेखनीय सफलताओं का दावा किया जा रहा है। कदाचित आंकड़ों की भाषा में वह सच हो, मगर धरातल की सच्चाई ये है कि आम आदमी की जिंदगी में राहत के तनिक भी लक्षण नजर नहीं आ रहे।
अकेले न खाऊंगा, न खाने दूंगा के जुमले की बात करें तो भले ही प्रत्यक्षत: कोई बड़ा घोटाला उजागर नहीं हुआ हो, मगर समीक्षकों का मानना है कि घोटाले तो हुए हैं, मगर बाहर नहीं आने दिए गए। नोटबंदी की ही बात करें तो वह अपने आप में एक घोटाला है। पूरा देश जानता है कि उसमें किस कदर लूट मची। न केवल बैंक वालों ने कमीशन खा कर नोट बदले, अपितु दलालों की भी पौ बारह हो गई। इस तथ्य को कोई भी नहीं नकार सकता। केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने नोटबंदी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सूचना को रोके रखने से अर्थव्यवस्था को लेकर लोगों में शंकाएं पैदा हों रही हैं। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री कार्यालय, रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय नोटबंदी के पीछे के कारणों संबंधी जानकारी मांगने वाली सभी आरटीआई याचिकाओं को हाल में खारिज कर चुके हैं। सीधी सट्ट बात है कि आप कोई जानकारी बाहर ही नहीं आने देंगे तो पता ही कैसे चलेगा कि घोटाला हुआ है या नहीं।
नोटबंदी जैसे देश को बर्बाद कर देने वाले कदम को भी सरकार ने ऐसे प्रस्तुत किया मानो उससे देश का बहुत भला हुआ हो। जहां लोगों का एक बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा बिछाए गए विकास के दावों के मायाजाल में फंसा हुआ है, वहीं जमीनी स्तर पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। न तो महंगाई कम हुई है, न रोजगार बढ़ा है और ना ही आम आदमी की स्थिति में कोई सुधार आया है। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में गिरावट आई है और किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं।
जहां तक न खाने देने का सवाल है, हर कोई जानता है कि स्थिति जस की तस है। प्रशासनिक तंत्र अब भी भ्रष्टाचार में उसी तरह आकंठ डूबा हुआ है, जैसा पहले था। किसी भी महकमे पर नजर डाल लें, कहीं भी सुविधा शुल्क की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आया है। हर कोई जानता है कि हर जगह रिश्वतखोरी वैसी की वैसी है, जैसे पहले थी। इस तथ्य को साबित करने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि यह स्वयंसिद्ध है। न तो रिश्वतखोरों के मन में कोई डर उत्पन्न हुआ है और न ही आम आदमी को किसी प्रकार की राहत मिली है।
दूसरी उल्लेखनीय बात ये है कि पाकिस्तान के साथ तो संबंध पहले से ज्यादा बिगड़े हैं। कश्मीर की हालत भी सुधरने की बजाय दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। केवल झूठी वाहवाही और बड़ी-बड़ी डींगे हांकने का माहौल है। जो मोदी विपक्ष में रहते पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की बात करते थे, वही आज चुप बैठे हैं। सबक सिखाना तो दूर पाकिस्तान का हौसला और बढ़ गया है। अफसोस कि आत्ममुग्ध सरकार सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा पीट रही है। कश्मीर के संबंध में सरकार की नीति का नतीजा यह हुआ है कि लड़के सड़कों पर निकल कर पत्थर फेंक रहे हैं। कश्मीर के लोगों से संवाद स्थापित करने में सरकार की विफलता के कारण, घाटी में हालात खराब होते जा रहे हैं।
मोदी के कार्यकाल की तीसरी उल्लेखनीय बात ये है कि भले ही वे आज भी एक आइकन के तौर पर देखे जाते हैं, मगर इस दौर में सत्ता का प्रधानमंत्री के हाथों में केन्द्रीयकरण हुआ है। मोदी के सामने वरिष्ठ से वरिष्ठ मंत्री की भी कुछ कहने तक की हिम्मत नहीं होती और ऐसा लगता है कि कैबिनेट की बजाए इस देश पर केवल एक व्यक्ति शासन कर रहा है।
चुनाव प्रचार के दौरान जो सबसे बड़ा वादा मोदी ने किया था, वह पूरी तरह से झूठा साबित हुआ। विदेशों में जमा काला धन वापस लाकर हर भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा करने का भाजपा का वायदा, सरकार के साथ-साथ जनता भी भूल चली है।
सामाजिक समरसता की स्थिति ये है कि पवित्र गाय को राजनीति की बिसात का मोहरा बना दिया गया है। गाय के नाम पर कई लोगों की पीट-पीटकर हत्या की जा चुकी है। सरकार जिस तरह से गोरक्षा के मामले में आक्रामक रुख अपना रही है, उसके चलते, गोरक्षक गुंडों की हिम्मत बढ़ गई है और वे खुलेआम मवेशियों के व्यापारियों और अन्य के साथ गुंडागर्दी कर रहे हैं।
कुल मिला कर देश को मोदी के नाम पर भले ही ऐसा चुंबकीय व्यक्ति मिला हुआ है, जो भाजपा को बढ़त दिलाए हुए है, मगर धरातल पर आम आदमी को कुछ भी नहीं मिला है। सार्वजनिक रूप से भले ही भाजपाई इस तथ्य को स्वीकार न करें, मगर कानाफूसी में वे भी स्वीकार करते हैं कि जिस परिवर्तन के नाम पर भाजपा सत्ता में आई, वैसा कोई परिवर्तन कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000
अकेले न खाऊंगा, न खाने दूंगा के जुमले की बात करें तो भले ही प्रत्यक्षत: कोई बड़ा घोटाला उजागर नहीं हुआ हो, मगर समीक्षकों का मानना है कि घोटाले तो हुए हैं, मगर बाहर नहीं आने दिए गए। नोटबंदी की ही बात करें तो वह अपने आप में एक घोटाला है। पूरा देश जानता है कि उसमें किस कदर लूट मची। न केवल बैंक वालों ने कमीशन खा कर नोट बदले, अपितु दलालों की भी पौ बारह हो गई। इस तथ्य को कोई भी नहीं नकार सकता। केंद्रीय सूचना आयोग के आयुक्त श्रीधर आचार्यलु ने नोटबंदी पर कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि सूचना को रोके रखने से अर्थव्यवस्था को लेकर लोगों में शंकाएं पैदा हों रही हैं। ज्ञातव्य है कि प्रधानमंत्री कार्यालय, रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय नोटबंदी के पीछे के कारणों संबंधी जानकारी मांगने वाली सभी आरटीआई याचिकाओं को हाल में खारिज कर चुके हैं। सीधी सट्ट बात है कि आप कोई जानकारी बाहर ही नहीं आने देंगे तो पता ही कैसे चलेगा कि घोटाला हुआ है या नहीं।
नोटबंदी जैसे देश को बर्बाद कर देने वाले कदम को भी सरकार ने ऐसे प्रस्तुत किया मानो उससे देश का बहुत भला हुआ हो। जहां लोगों का एक बड़ा हिस्सा सरकार द्वारा बिछाए गए विकास के दावों के मायाजाल में फंसा हुआ है, वहीं जमीनी स्तर पर हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। न तो महंगाई कम हुई है, न रोजगार बढ़ा है और ना ही आम आदमी की स्थिति में कोई सुधार आया है। स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता में गिरावट आई है और किसानों की आत्महत्या की घटनाएं बढ़ी हैं।
जहां तक न खाने देने का सवाल है, हर कोई जानता है कि स्थिति जस की तस है। प्रशासनिक तंत्र अब भी भ्रष्टाचार में उसी तरह आकंठ डूबा हुआ है, जैसा पहले था। किसी भी महकमे पर नजर डाल लें, कहीं भी सुविधा शुल्क की व्यवस्था में कोई बदलाव नहीं आया है। हर कोई जानता है कि हर जगह रिश्वतखोरी वैसी की वैसी है, जैसे पहले थी। इस तथ्य को साबित करने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि यह स्वयंसिद्ध है। न तो रिश्वतखोरों के मन में कोई डर उत्पन्न हुआ है और न ही आम आदमी को किसी प्रकार की राहत मिली है।
दूसरी उल्लेखनीय बात ये है कि पाकिस्तान के साथ तो संबंध पहले से ज्यादा बिगड़े हैं। कश्मीर की हालत भी सुधरने की बजाय दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। केवल झूठी वाहवाही और बड़ी-बड़ी डींगे हांकने का माहौल है। जो मोदी विपक्ष में रहते पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब देने की बात करते थे, वही आज चुप बैठे हैं। सबक सिखाना तो दूर पाकिस्तान का हौसला और बढ़ गया है। अफसोस कि आत्ममुग्ध सरकार सर्जिकल स्ट्राइक का ढिंढोरा पीट रही है। कश्मीर के संबंध में सरकार की नीति का नतीजा यह हुआ है कि लड़के सड़कों पर निकल कर पत्थर फेंक रहे हैं। कश्मीर के लोगों से संवाद स्थापित करने में सरकार की विफलता के कारण, घाटी में हालात खराब होते जा रहे हैं।
मोदी के कार्यकाल की तीसरी उल्लेखनीय बात ये है कि भले ही वे आज भी एक आइकन के तौर पर देखे जाते हैं, मगर इस दौर में सत्ता का प्रधानमंत्री के हाथों में केन्द्रीयकरण हुआ है। मोदी के सामने वरिष्ठ से वरिष्ठ मंत्री की भी कुछ कहने तक की हिम्मत नहीं होती और ऐसा लगता है कि कैबिनेट की बजाए इस देश पर केवल एक व्यक्ति शासन कर रहा है।
चुनाव प्रचार के दौरान जो सबसे बड़ा वादा मोदी ने किया था, वह पूरी तरह से झूठा साबित हुआ। विदेशों में जमा काला धन वापस लाकर हर भारतीय के बैंक खाते में 15 लाख रुपए जमा करने का भाजपा का वायदा, सरकार के साथ-साथ जनता भी भूल चली है।
सामाजिक समरसता की स्थिति ये है कि पवित्र गाय को राजनीति की बिसात का मोहरा बना दिया गया है। गाय के नाम पर कई लोगों की पीट-पीटकर हत्या की जा चुकी है। सरकार जिस तरह से गोरक्षा के मामले में आक्रामक रुख अपना रही है, उसके चलते, गोरक्षक गुंडों की हिम्मत बढ़ गई है और वे खुलेआम मवेशियों के व्यापारियों और अन्य के साथ गुंडागर्दी कर रहे हैं।
कुल मिला कर देश को मोदी के नाम पर भले ही ऐसा चुंबकीय व्यक्ति मिला हुआ है, जो भाजपा को बढ़त दिलाए हुए है, मगर धरातल पर आम आदमी को कुछ भी नहीं मिला है। सार्वजनिक रूप से भले ही भाजपाई इस तथ्य को स्वीकार न करें, मगर कानाफूसी में वे भी स्वीकार करते हैं कि जिस परिवर्तन के नाम पर भाजपा सत्ता में आई, वैसा कोई परिवर्तन कहीं पर भी नजर नहीं आ रहा।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
8094767000