तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, अप्रैल 25, 2017

आडवाणी के फंसने से है सिंधियों को मोदी पर गुस्सा

हालांकि पूर्व उपप्रधानमंत्री लाल कृष्ण आडवाणी सिंधी हैं, मगर वे अकेले सिंधी समाज के नेता नहीं हैं, वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पृष्ठभूमि के होने की वजह से हिंदुत्व में ज्यादा यकीन रखते हैं। असल में वे सिंधी समाज से कहीं ऊपर उठ कर हिंदुत्व का प्रतिनिधित्व करते हैं। बावजूद इसके सिंधी समाज उन्हें अपना नेता मानता है। इतना मानता है कि एक बार जब उन्होंने कह दिया कि सिंधी पुरुषार्थी हैं और उन्हें आरक्षण की जरूरत नहीं है तो उसके बाद सिंधी समाज ने कभी इस मांग पर जोर नहीं दिया। आज जब वे बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सीबीआई की अपील पर फिर से आपराधिक साजिश के आरोपी बन गए हैं तो सिंधी समाज में गुस्सा है। गुस्सा इस वजह से है कि भाजपा में हाशिये पर धकेल दिए जाने के बाद पहली बार राष्ट्रपति पद के प्रबल दावेदार बने तो ताजा मामला आड़े आता दिखाई दे रहा है।
यूं तो पिछले कुछ माह से सिंधियों के कुछ संगठन सोशल मीडिया पर आडवाणी को राष्ट्रपति बनाए जाने की मुहिम छेड़े हुए हैं ही, मगर ताजा हालात में वह मुहिम गुस्से में तब्दील होने लगी है। चूंकि सोशल मीडिया बेलगाम है, इस कारण यूं तो कई प्रकार की आपत्तिजनक टिप्पणियां पसरी पड़ी हैं, मगर उनका निचोड़ इन चंद लाइनों में पेश है:-
आडवाणी ने अपनी जान की परवाह न करते हुए देशभर में राम रथ यात्रा की और उसका परिणाम ये है कि जिस पार्टी की संसद में केवल दो ही सीटें थीं, वह तीन सौ तक पहुंच गई। जब प्रधानमंत्री बनने की बारी आई तो कट्टर हिंदुत्व का चेहरा आड़े आ गया और अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बन गए। गोधरा कांड में जब वाजपेयी ने नरेन्द्र मोदी को राजधर्म का पालन करने की नसीहत दी तो आडवाणी ने उनको बचाया। मगर आज वही मोदी अहसान फरामोश हो कर आडवाणी के राष्ट्रपति बनने में आड़े आ रहे हैं। उनके इशारे पर ही सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर बाबरी मामले की फिर से सुनवाई के आदेश जारी करवा दिए। कैसी विडंबना है कि जिस शख्स ने पार्टी को खड़ा किया, आज वही अपनी पार्टी के शासन में अपराधी कर श्रेणी में खड़ा है, जबकि यूपीए के शासन काल में ऐसा नहीं हुआ।
सिंधी समाज आडवाणी को अपना आइकन मानता है। उनकी ही वजह से आज बहुसंख्यक सिंधी भाजपा के साथ जुड़ा हुआ है, मगर भाजपा ने सिंधियों का इस्तेमाल केवल सत्ता हासिल करने के लिए किया है। सिंधी समाज को चाहिए कि वह मोदी व भाजपा को सबक सिखाए, ताकि उनकी अक्ल ठिकाने आए।
हालांकि सिंधी समाज का कोई सशक्त राष्ट्रीय संगठन नहीं है और अगर हैं तो भी वे कहीं न कहीं संघ या भाजपा विधारधारा के ही नजदीक हैं। ऐसे में कोई भी मोदी के विपरीत जा कर सांगठनिक रूप से आडवाणी के लिए दबाव नहीं बना पाएगा, मगर इस प्रकार की मुहिम आम सिंधियों की भावना को तो प्रदर्शित करती ही है। यह बाद दीगर है कि ऐसी मुहिम के कामयाब होने की संभावना कम ही है।
-तेजवानी गिरधर
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