इसमें कोई दोराय नहीं कि लोकसभा चुनाव में मिशन 25 को पूरा करने के लिए राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने पार्टी की ओर से नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार घोषित किए जाने के निर्णय को पूरा सम्मान दिया, अपितु अपनी ओर से भी एडी-चोटी का जोर लगा दिया। भाजपा की इस ऐतिहासिक जीत में जितनी भूमिका मोदी लहर की रही, उतनी ही वसुंधरा की रणनीति भी रही। चतुराई से टिकट वितरण के साथ ही कुछ कमजोर सीटों पर जिस प्रकार उन्होंने कांग्रेस की घेराबंदी की, उसके अपेक्षित परिणाम भी आए। यानि कि मोदी-वसुंधरा के तालमेल ने चमत्कार कर दिखाया, मगर जैसे ही मोदी ने अपने मंत्रीमंडल का गठन किया तो इस बात का अनुमान साफ-साफ लगने लगा कि दोनों के बीच सबकुछ ठीकठाक नहीं है।
जानकार सूत्रों के अनुसार मंत्रीमंडल की सूची फाइनल होने के आखिरी क्षण तक राजस्थान के एक भी सांसद का नाम मंत्री के रूप में नहीं था। कुछ न्यूज चैनलों पर तो यह खबर ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल भी गई। और ये भी कि वसुंधरा ने सभी सांसदों की बैठक में तसल्ली रखने को कहा। दूसरी ओर उन्होंने मोदी पर दबाव भी बनाया और उसी के बाद श्रीगंगानगर के सांसद निहाल चंद का नाम सूची में जोड़ा गया। बताया जाता है कि निहाल चंद का नाम वसुंधरा की पहली पसंद के रूप में नहीं था, यानि कि इसमें भी मोदी ने वसुंधरा को कोई खास भाव नहीं दिया। मतलब साफ है। मोदी व वसुंधरा के बीच ट्यूनिंग में कहीं न कहीं गड़बड़ है। इस बात की पुष्टि कुछ चर्चाओं से हो रही है।
आपको याद होगा कि वसुंधरा ने अपनी पंसद से कर्नल सोनाराम को कांग्रेस से ला कर भाजपा का टिकट दिलवाया और पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री जसवंत नाराज हो बागी हो गए, तो उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, उन्हीं का आशीर्वाद लेने के लिए मोदी ने पत्र लिख दिया। मीडिया में चर्चा यहां तक है कि उन्हें तमिलनाडू का राज्यपाल बनाया जा सकता है। इसी प्रकार चर्चा है कि वसुंधरा राजे के धुर विरोधी घनश्याम तिवाड़ी को मोदी अहम जिम्मेदारी दिलवाना चाहते हैं। इसी प्रकार राजे दरबार से निकाले गए ओम प्रकाश माथुर की चर्चा तो भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने वाली सूची में है। अध्यक्ष वे बनवा पाएं, अथवा नहीं, मगर यह तय है कि उन्हें भी खास जिम्मेदारी दी जा सकती है। कुल मिला कर यह साफ है कि मोदी सोची समझी रणनीति के तहत वसुंधरा विरोधियों पर हाथ रखना चाहते हैं। ताकि... ताकि वसुंधरा अपने सूबे में स्वतंत्र क्षत्रप की तरह व्यवहार न करने लगें। रहा सवाल वसुंधरा के मिजाज का तो सब जानते हैं कि जब वे विपक्ष में थीं, तब भी भाजपा हाईकमान के नियंत्रण में नहीं आ रही थीं। अधिसंख्य विधायक उनके कब्जे में थे। हाईकमान का दबाव था कि वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद छोड़े, मगर उन्होंने साफ इंकार कर दिया। काफी जद्दोजहद के बाद तब जा कर पद छोड़ा, जब उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। उस पर भी तुर्रा ये कि तकरीबन एक साल तक किसी और को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने दिया। अपने पक्ष में विधायकों के इस्तीफे का नाटक सबने देखा। आखिरकार हाईकमान को मजबूर हो कर उन्हें फिर से नेता प्रतिपक्ष बनाना पड़ा। इससे समझा जा सकता है कि उन्होंने हाईकमान व संघ को कितना गांठा। हाईकमान उनके सामने इतना बौना हो गया था कि उन्हें ही विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रोजेक्ट करना पड़ा। उन्होंने पूरे प्रदेश में सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर भाजपा के पक्ष में अलख जगाई। हालांकि तब तक नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार घोषित हो चुके थे, इस कारण उनकी भी हवा चली और भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल हो गया। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने मिशन पच्चीस पूरा कर दिया। भला ऐसे में वे कैसे हाईकमान से दबने वाली हैं। उनका मिजाज भी इसकी इजाजत नहीं देता। स्वाभाविक है कि वे राजस्थान में स्वतंत्र रूप से काम करना चाहती हैं, मगर कुछ घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी की राजस्थान में टांग फंसा कर रखने की मंशा है। मोदी आज भाजपा की सुपर पावर हैं। यदि ये कहें कि वे पूरी भाजपा पर हावी हो गए हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे वसुंधरा को पहले की तरह छुट्टा छोडऩे वाले नहीं हैं। ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कब्जे में रखती थीं। एक वरिष्ठ लेखक डॉ. जुगल किशोर गर्ग ने तो व्यक्तिगत चर्चा में उन्हें इंदिरा गांधी का भाजपाई संस्करण करार दिया है। उधर महारानी वसुंधरा भी कम नहीं हैं। ऐसे में टकराव अवश्यम्भावी नजर आता है।
-तेजवानी गिरधर
जानकार सूत्रों के अनुसार मंत्रीमंडल की सूची फाइनल होने के आखिरी क्षण तक राजस्थान के एक भी सांसद का नाम मंत्री के रूप में नहीं था। कुछ न्यूज चैनलों पर तो यह खबर ब्रेकिंग न्यूज की तरह चल भी गई। और ये भी कि वसुंधरा ने सभी सांसदों की बैठक में तसल्ली रखने को कहा। दूसरी ओर उन्होंने मोदी पर दबाव भी बनाया और उसी के बाद श्रीगंगानगर के सांसद निहाल चंद का नाम सूची में जोड़ा गया। बताया जाता है कि निहाल चंद का नाम वसुंधरा की पहली पसंद के रूप में नहीं था, यानि कि इसमें भी मोदी ने वसुंधरा को कोई खास भाव नहीं दिया। मतलब साफ है। मोदी व वसुंधरा के बीच ट्यूनिंग में कहीं न कहीं गड़बड़ है। इस बात की पुष्टि कुछ चर्चाओं से हो रही है।
आपको याद होगा कि वसुंधरा ने अपनी पंसद से कर्नल सोनाराम को कांग्रेस से ला कर भाजपा का टिकट दिलवाया और पूर्व केन्द्रीय विदेश मंत्री जसवंत नाराज हो बागी हो गए, तो उन्हें हराने के लिए पूरी ताकत झोंक दी, उन्हीं का आशीर्वाद लेने के लिए मोदी ने पत्र लिख दिया। मीडिया में चर्चा यहां तक है कि उन्हें तमिलनाडू का राज्यपाल बनाया जा सकता है। इसी प्रकार चर्चा है कि वसुंधरा राजे के धुर विरोधी घनश्याम तिवाड़ी को मोदी अहम जिम्मेदारी दिलवाना चाहते हैं। इसी प्रकार राजे दरबार से निकाले गए ओम प्रकाश माथुर की चर्चा तो भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने वाली सूची में है। अध्यक्ष वे बनवा पाएं, अथवा नहीं, मगर यह तय है कि उन्हें भी खास जिम्मेदारी दी जा सकती है। कुल मिला कर यह साफ है कि मोदी सोची समझी रणनीति के तहत वसुंधरा विरोधियों पर हाथ रखना चाहते हैं। ताकि... ताकि वसुंधरा अपने सूबे में स्वतंत्र क्षत्रप की तरह व्यवहार न करने लगें। रहा सवाल वसुंधरा के मिजाज का तो सब जानते हैं कि जब वे विपक्ष में थीं, तब भी भाजपा हाईकमान के नियंत्रण में नहीं आ रही थीं। अधिसंख्य विधायक उनके कब्जे में थे। हाईकमान का दबाव था कि वे विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष पद छोड़े, मगर उन्होंने साफ इंकार कर दिया। काफी जद्दोजहद के बाद तब जा कर पद छोड़ा, जब उन्हें राष्ट्रीय महासचिव बनाया गया। उस पर भी तुर्रा ये कि तकरीबन एक साल तक किसी और को नेता प्रतिपक्ष नहीं बनने दिया। अपने पक्ष में विधायकों के इस्तीफे का नाटक सबने देखा। आखिरकार हाईकमान को मजबूर हो कर उन्हें फिर से नेता प्रतिपक्ष बनाना पड़ा। इससे समझा जा सकता है कि उन्होंने हाईकमान व संघ को कितना गांठा। हाईकमान उनके सामने इतना बौना हो गया था कि उन्हें ही विधानसभा चुनाव में मुख्यमंत्री प्रत्याशी के रूप में प्रोजेक्ट करना पड़ा। उन्होंने पूरे प्रदेश में सुराज संकल्प यात्रा निकाल कर भाजपा के पक्ष में अलख जगाई। हालांकि तब तक नरेन्द्र मोदी भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार घोषित हो चुके थे, इस कारण उनकी भी हवा चली और भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल हो गया। लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने मिशन पच्चीस पूरा कर दिया। भला ऐसे में वे कैसे हाईकमान से दबने वाली हैं। उनका मिजाज भी इसकी इजाजत नहीं देता। स्वाभाविक है कि वे राजस्थान में स्वतंत्र रूप से काम करना चाहती हैं, मगर कुछ घटनाओं से ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी की राजस्थान में टांग फंसा कर रखने की मंशा है। मोदी आज भाजपा की सुपर पावर हैं। यदि ये कहें कि वे पूरी भाजपा पर हावी हो गए हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। वे वसुंधरा को पहले की तरह छुट्टा छोडऩे वाले नहीं हैं। ठीक उसी तरह जैसे पूर्व प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों को कब्जे में रखती थीं। एक वरिष्ठ लेखक डॉ. जुगल किशोर गर्ग ने तो व्यक्तिगत चर्चा में उन्हें इंदिरा गांधी का भाजपाई संस्करण करार दिया है। उधर महारानी वसुंधरा भी कम नहीं हैं। ऐसे में टकराव अवश्यम्भावी नजर आता है।
-तेजवानी गिरधर