पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और उनके दौर व नीतियों को लगभग भुला चुकी भाजपा भले ही अब गुजरात में मुख्यमंत्री की अगुवाई में हिंदूवादी एजेंडे पर चलने को कृतसंकल्प है, लेकिन अब भी उसे वाजपेयी की उपयोगिता नजर आती है। वह उनके नाम को भी भुनाने के चक्कर में है। कदाचित यही वजह है भाजपा की प्रचार समिति के प्रमुख नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में गठित बहुप्रतिक्षित इलेक्शन कमेटी में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी, सुषमा स्वराज और डॉ. मुरली मनोहर जोशी के साथ अटल बिहारी वाजपेयी को भी शामिल किया गया है। इसी तरह कुल बीस समितियों की समीक्षा का काम भी मोदी के नेतृत्व में पार्टी अध्यक्ष राजनाथ सिंह, लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी करेंगे। कैसी विचित्र बात है कि अटल बिहारी वाजपेयी का स्वास्थ्य बेहद खराब है और पिछले कुछ महीनों से घर से तो क्या कमरे से बाहर नहीं निकले हैं। लेकिन पार्टी ने उनके नाम को मोदी की समिति में बनाकर रखा है। साफ है कि वह उनके नाम का इस्तेमाल चुनाव के दौरान भी करना चाहती है। यानि कि भाजपा को जितनी उपयोगिता हिंदूवादी वोटों को खींचने केलिए मोदी की लगती है, उतनी उपयोगिता उसे अल्पसंख्यकों को रिझाने के लिए सर्वमान्य नेता वाजपेयी की भी नजर आती है। ऐसा प्रतीत होता है भाजपा का रिमोट कंट्रोल राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ मोदी को आगे करने के बाद लगातार हो रहे विवाद और वोटों के धु्रवीकरण की संभावना को देखते हुए मोदी को फ्रीहैंड देने में झिझक रही है और साथ ही अटल-आडवाणी युग की छाया को साथ रखते हुए वाजपेयी को भी आइकन बनाना चाहता है। उसके इस अंतर्विरोध का चुनाव परिणाम पर क्या असर होगा, ये तो पता नहीं, मगर भाजपा कार्यकर्ता जरूर दिग्भ्रमित हो सकता है।
-तेजवानी गिरधर
-तेजवानी गिरधर