वर्तमान में सर्वाधिक सशक्त व चर्चित हिंदूवादी चेहरे की बदोलत भाजपा में प्रधानमंत्री पद के सशक्त दावेदार गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी छवि के विपरीत एक ऐसी पहल की है, जिसने राजनीतिक हलके को तो भौंचक्का किया ही है, विश्लेषकों को भी असमंजस में डाल दिया है। अकेले गुजरात दंगों के आरोप की वजह से भाजपा के धर्मनिरपेक्ष सहयोगियों के लिए अछूत बने नरेन्द्र मोदी की सरकार ने तय किया है कि वह नरोड़ा पाटिया में दोषी करार दिये गये उन दोषियों के लिए सजा-ए-मौत मांगेगी, जो अभी विभिन्न विभिन्न सजाओं के तहत जेलों में बंद हैं। ज्ञातव्य है कि नरोडा पाटिया नरसंहार के लिए बाबू बजरंगी को आजीवन कारावास मिला था, जबकि माया कोडनानी को 28 साल के जेल की सजा सुनाई गई थी। गुजरात सरकार ने तय किया है कि वह माया और बजरंगी सहित सभी दसों आरोपियों के लिए फांसी की सजा के लिए हाईकोर्ट जाएगी और अन्य 22 दोषियों के लिए सजा बढ़ाने की मांग करेगी। असल में पहल एसआईटी ने की है, मगर जिस तरह राज्य के कानून विभाग ने इसे मंजूरी दी है, उससे यह समझ में नहीं आ रहा है कि ऐसा उसने मजबूरी में किया है अथवा जानबूझकर सोची-समझी रणनीति के तहत। मोदी सरकार की ओर से गठित तीन सदस्यीय वकीलों का पैनल सारी तैयारी पूरी करने के बाद अगले हफ्ते गुजरात हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर सकता है।
दरअसल सन् 2002 दंगों के बारे में जब तहलका ने स्टिंग ऑपरेशन किया था तो बाबू बजरंगी ने साफ कहा था कि नरेन्द्र मोदी के कहने पर ही ऐसा हुआ हुआ था। बजरंगी ने मोदी को मर्द बताते हुए दावा किया था कि वे उनको बचा लेंगे। वे मोदी के इतने कट्टर व अंध भक्त थे कि यह तक कह दिया कि हिंदू हित के लिए नरेन्द्र भाई कहेंगे तो वे अपने शरीर पर बम बांध कर विस्फोट कर देंगे। बाद में हालात बदले और कोर्ट में यही स्टिंग ऑपरेशन बतौर सबूत पेश किया गया, नतीजतन नरोडा पाटिया नरसंहार में अभियुक्त दोषी साबित किए जा सके। ऐसे में यह सवाल कौंधना स्वाभाविक है कि ऐसे अनन्य भक्त बजरंगी और उनकी ही सरकार में मंत्री रही माया कोडनानी के लिए फांसी की सजा मांगने के लिए तैयार कैसे हो गई? हालांकि अब तक हिंदूवादी संगठनों की ओर से इस पर कुछ खास प्रतिक्रिया नहीं आई है, मगर मोदी के राजनीतिक गुरु रहे शंकर सिंह वाघेला ने जरूर इसे सियासी स्टंट बताया है। उन्होंने कहा है कि 2002 में मुसलमानों के कत्लेआम के बाद अब मोदी को समझ आ रहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यकों के बगैर नहीं जीता जा सकता, इसलिए अपनी छवि ठीक करने के लिए मोदी ऐसा करने जा रहे हैं। संभव है वाघेला की बात सही हो। लगातार सांप्रदायिकता का आरोप ढ़ो रहे और अकेले इसी वजह से बहस का मुद्दा बने मोदी को फिलवक्त इसी की जरूरत है कि वे अपने आपको सर्वस्वीकार्य बनाएं। अब देखना ये है कि मोदी के इस कदम को हिंदूवादी किस रूप में लेते हैं। मगर इतना तय है कि यह कदम बिना सोचे-समझे नहीं उठाया जा रहा।
-तेजवानी गिरधर