तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, मार्च 23, 2017

आगे चल कर मोदी के लिए समस्या बन सकते हैं योगी?

उत्तर प्रदेश में बंपर बहुमत के बाद जिस नाटकीय ढंग से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर योगी आदित्यनाथ काबिज हुए हैं, उसको लेकर इस आशंका का बीजारोपण हो गया है कि आगे चल कर योगी मोदी के लिए परेशानी का कारण बन सकते हैं। यह सवाल इसलिए मौजूं हैं क्योंकि मोदी एक तानाशाह की तरह काम कर रहे हैं, जो कि फिलहाल भाजपा के लिए मुफीद है, मगर मोदी स्टाइल का दूसरा फायर ब्रांड स्थापित होता है तो वह मोदी के लिए दिक्कत पैदा कर सकता है। हालांकि मोदी अपनी जिस तूफानी लहर पर सवार हो कर प्रधानमंत्री बने हैं और अब भी उनके नाम का जलवा कायम है, मगर योगी के मुख्यमंत्री बनते ही जिस प्रकार उन्हें युवा हिंदू सम्राट के नाम से विभूषित किया जा रहा है, जिस प्रकार कट्टर हिंदूवादी भावना हिलोरें ले रही है, वह इस आशंका को जन्म देती है कि अगर उन्होंने राम मंदिर के अतिरिक्त हिंदू हित पर कुछ अतिरिक्त करके दिखा दिया तो बहुसंख्यक हिंदू समाज में उनकी प्रतिष्ठा मोदी से भी कहीं अधिक न हो जाए।
बात अगर मुख्यमंत्री के चयन को लेकर हो रही कवायद की करें तो मीडिया में यह आमराय थी कि मोदी ने मनोज सिन्हा के नाम पर हरी झंडी दे दी थी। नाम तय होने के साथ ही जिस प्रकार उनका गर्मजोशी के साथ स्वागत हो रहा था, वह इस बात की पुष्टि करता है। जानकारी के अनुसार इस बीच योगी यकायक सक्रिय हो गए। जीत कर आए भाजपा विधायकों का एक समूह भी दबाव बनाने लगा, जिसे टालना असंभव प्रतीत हो रहा था। संघ ने भी उन्हीं के पक्ष में वीटो जारी कर दिया। ऐसे में मोदी न चाह कर भी योगी के नाम पर सहमति देने को मजबूर हो गए। इस सिलसिले में योगी के शपथग्रहण समारोह में मोदी के चेहरे पर पसरे तनाव को नोटिस किया गया है। बताते हैं कि वे आम दिनों में जिस तरह लोगों से गर्मजोशी के साथ मिलते हैं, वह गर्मजोशी काफूर थी। उलटे होना तो यह चाहिए था कि वे और अधिक उत्साहित होते, क्योंकि उन्हीं की कथित सुनामी पर सवार हो कर भाजपा प्रचंड बहुमत से उत्तरप्रदेश पर काबिज हुई।
बताया जाता है कि मोदी खेमे की ओर से अध्यक्ष अमित शाह का तर्क था कि योगी आक्रामक शैली के कट्टर हिंदूवादी नेता हैं, जो कि मोदी के सबका साथ, सबका विकास के नारे के अनुकूल नहीं है। इस पर संघ की ओर से दलील आई कि छवि तो मोदी की भी गुजरात का मुख्यमंत्री रहते कट्टर हिंदूवादी की थी, फिर भी दूरगामी सोच रख कर उनको प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट किया गया। ऐसे में योगी की छवि पर सवाल करना बेमानी है। समझा जाता है कि संघ ने सोची समझी रणनीति के तहत योगी को मुख्यमंत्री पद पर सुशोभित करवाया है। यह संघ के हिंदूवादी बनाम राष्ट्रवादी एजेंडे का हिस्सा है। राजनीतिक विचारकों का मानना है कि ऐसा इसलिए भी किया गया कि अगर मोदी संघ पर हावी होते हैं तो उनका विकल्प पहले से तैयार कर लिया जाए। इसके अतिरिक्त जिन नारों की बदोलत मोदी प्रधानमंत्री बने हैं, वे पूरे होने असंभव हैं, ऐसे में अगर आगामी लोकसभा चुनाव में मोदी की चमक कम होने लगी तो कट्टर हिंदूवादी चेहरे के मालिक योगी को बहुसंख्यक हिंदुओं को लामबंद आगे ला कर दुबारा चुनाव जीता जा सकता है। कुल मिला कर ऐसा प्रतीत होता है कि मोदी की योगी नामक संतति पिता से भी अधिक शौर्यवान निकली, जिसे कि कुछ लोग भस्मासुर तक की संज्ञा दे रहे हैं, जिस प्रकार भस्मासुर वरदान प्राप्त करने के बाद शिवजी को ही भस्म करने पर उतारु हो गया था।
योगी का मोदी के पहली पसंद न होने की बात से नाइत्तफाकी रखने वाले राजनीतिक विश्लेषक हालांकि यहीं कहते हैं कि भाजपा, संघ व मोदी एक लाइन पर ही काम कर रहे हैं और कोई अंतरविरोध नहीं है, मगर वे भी यह बात तो स्वीकार करते ही हैं कि योगी का अभिषेक दीर्घकालिक एजेंडे के तहत दक्षिणपंथी राजनीति का एक बड़ा खिलाड़ी तैयार करना है, जो 2024 में मोदी का उपयुक्त उत्तराधिकारी बन सके। वस्तुत: मोदी ब्रांड के नाम पर फिलहाल भाजपा ने जो इमारत खड़ी की है, उसकी मजबूरी है कि सबका साथ, सबका विकास मंत्र ले कर ही कायम रह पाएगी। मोदी की भूमिका सिर्फ यहीं तक है। हिंदूवाद के अगले लक्ष्य हिंदू राष्ट के लिए योगी जैसा चेहरा ही काम आएगा। जिस प्रकार दो के अंक से दहाई के अंक तक भाजपा को लाने वाले लालकृष्ण आडवाणी को भूमिका पूरी होने के बाद हाशिये पर रख दिया गया, ठीक वैसे ही मोदी की भूमिका समाप्त होने के बाद उन्हें भी हाशिये पर टांग दिया जाए तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए। असल में संघ की नजर अपने दर्शन पर रहती है, व्यक्ति उसके लिए गौण होता है, वह साधन मात्र होता है।
तेजवानी गिरधर
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