तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

मंगलवार, जनवरी 18, 2011

जिस दर पर है बम फोडऩे का इल्जाम, उसी दर से है बरी होने की ख्वाहिश


दरगाह ख्वाजा साहब का दर भी कितना कमाल का दर है, जिस दर पर बम फोडऩे का इल्जाम है आरएसएस नेता इन्द्रेश कुमार पर, उसी दर से इल्तजा है बरी होने की। फौरी तौर पर भले ही यह लगता हो कि इन्द्रेश कुमार की सलामती की दुआ तो छत्तीसगढ़ हज कमेटी व मदरसा बोर्ड के सदर सलीम रजा ने मांगी है, मगर क्या इस बात पर यकीन किया जा सकता है इन्द्रेश कुमार को बताए बिना ही वे यहां दुआ मांगने आ गए होंगे। गर आए भी हैं तो क्या ये कम बात है कि उसी दर से उनके सलामत होने की उम्मीद की जा रही है, जिसे सलामत न रहने देने के लिए बम ब्लास्ट करने की कोशिश का उन पर इल्जाम लगा हुआ है। और अगर दुआ कबूल हो गई तो वाकई ये कमाल हो जाएगा। असल में ख्वाजा साहब की बारगाह के बारे में ऐसा यकीन है कि यहां अकीदत और शिद्दत से की गई हर दुआ कुबूल होती है। फिर भले ही वो इसी मुकाम पर बम फोडऩे के इल्जाम में क्यों न फंसा हो।
ये तो हुई रूहानी बात, मगर सलीम राज ने जिस मकसद से आस्ताना शरीफ पर चादर चढ़ाई है, उसके तौर-तरीके के पीछे क्या राज छिपा है, इसको लेकर कई तरह की सवाली अबाबीलें उडऩे लगी हैं। अव्वल तो ये नौटंकी नजर आती है। गर इन्द्रेश कुमार की सलामती की खातिर दुआ मांगने ही आए थे तो सिर्फ ख्वाजा साहब के सामने ही तो सवाल करना था, उसे सबके सामने इजहार करके सवाल क्यों खड़े कर गए? ये तो वो ही हुआ न कि तस्वीर बदले न बदले, हंगामा जरूर खड़ा होना चाहिए। क्या इससे ये शक नहीं होता कि राज को इन्द्रेश कुमार ने ही भेजा होगा, ताकि पूरे मुल्क में यह संदेश जाए कि मुस्लिमों को भी यकीन नहीं कि वे दरगाह में बम फोडऩे की हरकत करवा सकते हैं और उन पर लग रहा इल्जाम कुछ फीका पड़ जाए? या फिर राज ने यह सब महज दोस्ती की खातिर ही किया है? दुआ मंजूर हुई तो भले ही इन्द्रेश कुमार बरी हो जाएं, मगर राज की इस तरह की सियासी ख्वाहिश से खैरियत से बैठे चंद मुस्लिम नेता तो सवालों की गिरफ्त में आ ही गए हैं।
अव्वल तो जियारत करवाने वाले खादिम व कांग्रेस नेता शेखजादा जुल्फिकार चिश्ती की ही बोलती बंद है। उन्हें यह कह कर बचना पड़ रहा है कि उन्हें तो पता ही नहीं था कि सलीम राज इन्द्रेश कुमार की ओर से चादर पेश करने आए थे। उनकी बात पर यकीन हो भी जाए, मगर राज के साथ आए राजस्थान वक्फ बोर्ड के साबिक सदर व भाजपा नेता सलावत खां और कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के प्रदेश महामंत्री नईम खान तो ये कहने की हालत में भी नहीं हैं कि उन्हें क्या पता कि वे इन्द्रेश कुमार की सलामती के लिए चादर चढ़ाने आए हैं। और तो और जयपुर बैठे प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री मुमताज मसीह तक संदेह के दायरे में आ गए हैं कि उन्होंने राज को शानदार तरीके से जियारत करवाने के लिए सिफारिश करते हुए नईम खान को क्यों भेजा? क्या वे ये नहीं जानते थे कि सलीम राज किस मकसद से अजमेर शरीफ जा रहे हैं? और अगर वाकई इन सभी को धोखे में रख कर सलीम ने यहां चादर चढ़ाई है तो उनसे बड़ा सियासतदान मिलना मुश्किल है। वाकई वे दाद के काबिल हैं। ढ़ेर सारे सवाल खड़े कर जाने वाले ऐसे गुरू घंटाल से सिर्फ एक ही सवाल-उन्होंने अपने मकसद का खुलासा जियारत करने बाद क्यों किया? सवाल और भी मगर उसका जवाब वे खुद ही दे गए हैं, और वो ये कि अगर वे जोर दे कर कह रहे हैं कि इन्द्रेश कुमार संघ से जुड़े होते हुए भी हिंदू-मुस्लिम एकता का हिमायती हैं, माने.......माने, ऐसा कह कर उन्होंने जाने-अनजाने संघ के और नेताओं को तो हिंदू-मुस्लिम एकता के खिलाफ ठहरा ही दिया है।