हालांकि यह लगभग तय है कि राजस्थान में भाजपा पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे को आगे रख कर ही चुनाव लडऩे को मजबूर है, मगर पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर राजनाथ सिंह के काबिज होने के बाद समीकरणों में कुछ बदलाव आया है। लगता यही है कि वसुंधरा को संघ के साथ समझौते में जिनती आसानी नितिन गडकरी के रहते होती, उतनी राजनाथ सिंह के रहते नहीं होगी। यानि कि संघ लॉबी अब बंटवारे में पहले से कहीं अधिक सीटें हासिल कर सकती है।
वस्तुत: राजनाथ सिंह व वसुंधरा राजे के संबंध कुछ खास अच्छे नहीं रहे हैं। आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय होने की जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर ने तो इस्तीफा दे दिया, लेकिन नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे की बात आई तो वसुंधरा ने इससे इंकार कर दिया था। तब राजनाथ सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उन्होंने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था। आखिरकार वसुंधरा को पद छोडऩा पड़ा था। यह बात दीगर है कि उसके बाद तकरीबन एक साल तक यह पद खाली पड़ा रहा और उसे फिर से वसुंधरा को ही सौंपना पड़ा। लब्बोलुआब वसुंधरा के प्रति जितना सॉफ्टकोर्नर गडकरी का रहा, उतना राजनाथ सिंह का नहीं रहेगा। राजनाथ सिंह व वसुंधरा के संबंधों पर रामदास अग्रवाल का यह बयान काफी मायने रखता है कि सिंह में पार्टी हित में कठोर निर्णय लेने की क्षमता है। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष से वसुंधरा राजे का इस्तीफा ले लिया था। गलती पर जसवंत सिंह तक को बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं हिचके।
राजनाथ सिंह के दरबार में वसुंधरा की कितनी अहमियत है, इसका अंदाजा इस बात से भी होता है कि एक ओर जहां वे औपचारिक रूप से उनसे मिलने और पदग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद जल्द ही जयपुर लौट आईं, जबकि संघ लॉबी के रामदास अग्रवाल, घनश्याम तिवाड़ी और अरुण चतुर्वेदी दिल्ली में ही डटे रहे।
इसके अतिरिक्त राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने से प्रदेश में भाजपा संगठन और संघ से जुड़े नेता और मजबूत होंगे। राजनाथ सिंह के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी से कैसे संबंध हैं, इसका अंदाजा उनके इस बयान से लगाया जा सकता है कि उन्होंने ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया। वे युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब कार्यकारिणी में उन्हें लिया था। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष संघनिष्ठ खेमे का बनना तय माना जा रहा है। हां, इतना जरूर संभव है कि सिंह के लिए यह मजबूरी हो कि सत्ता में आने के लिए वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने पर मजबूर होना पड़े।
भाजपा का सत्ता में आना कुछ आसान
राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने एक असर ये भी होता दिखाई दे रहा है कि यहां भाजपा के लिए सत्ता की सीढ़ी चढऩा कुछ आसान हो सकता है। इसकी वजह ये है कि किरोड़ी लाल मीणा से सिंह के अच्छे संबंध रहे हैं। और इसी कारण माना ये जा रहा है कि वसुंधरा की गलती से भाजपा से दूर हुए मीणा विधानसभा चुनाव होने से पार्टी में वापस लाए जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए काफी सुखद होगा। यहां यह कहने की जरूरत नहीं है कि वसुंधरा की हार की वजूआत में एक प्रमुख वजह मीणा की नाराजगी भी थी।
-तेजवानी गिरधर
वस्तुत: राजनाथ सिंह व वसुंधरा राजे के संबंध कुछ खास अच्छे नहीं रहे हैं। आपको याद होगा कि पिछले विधानसभा चुनाव में पार्टी की पराजय होने की जिम्मेदारी लेते हुए तत्कालीन प्रदेश भाजपा अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर ने तो इस्तीफा दे दिया, लेकिन नेता प्रतिपक्ष पद से इस्तीफे की बात आई तो वसुंधरा ने इससे इंकार कर दिया था। तब राजनाथ सिंह राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और उन्होंने कड़ा रुख अख्तियार कर लिया था। आखिरकार वसुंधरा को पद छोडऩा पड़ा था। यह बात दीगर है कि उसके बाद तकरीबन एक साल तक यह पद खाली पड़ा रहा और उसे फिर से वसुंधरा को ही सौंपना पड़ा। लब्बोलुआब वसुंधरा के प्रति जितना सॉफ्टकोर्नर गडकरी का रहा, उतना राजनाथ सिंह का नहीं रहेगा। राजनाथ सिंह व वसुंधरा के संबंधों पर रामदास अग्रवाल का यह बयान काफी मायने रखता है कि सिंह में पार्टी हित में कठोर निर्णय लेने की क्षमता है। उन्होंने नेता प्रतिपक्ष से वसुंधरा राजे का इस्तीफा ले लिया था। गलती पर जसवंत सिंह तक को बाहर का रास्ता दिखाने से नहीं हिचके।
राजनाथ सिंह के दरबार में वसुंधरा की कितनी अहमियत है, इसका अंदाजा इस बात से भी होता है कि एक ओर जहां वे औपचारिक रूप से उनसे मिलने और पदग्रहण समारोह में शामिल होने के बाद जल्द ही जयपुर लौट आईं, जबकि संघ लॉबी के रामदास अग्रवाल, घनश्याम तिवाड़ी और अरुण चतुर्वेदी दिल्ली में ही डटे रहे।
इसके अतिरिक्त राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजनाथ सिंह के अध्यक्ष बनने से प्रदेश में भाजपा संगठन और संघ से जुड़े नेता और मजबूत होंगे। राजनाथ सिंह के प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी से कैसे संबंध हैं, इसका अंदाजा उनके इस बयान से लगाया जा सकता है कि उन्होंने ही उन्हें प्रदेश अध्यक्ष बनाया। वे युवा मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, तब कार्यकारिणी में उन्हें लिया था। ऐसे में प्रदेश अध्यक्ष संघनिष्ठ खेमे का बनना तय माना जा रहा है। हां, इतना जरूर संभव है कि सिंह के लिए यह मजबूरी हो कि सत्ता में आने के लिए वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने पर मजबूर होना पड़े।
भाजपा का सत्ता में आना कुछ आसान
राजनाथ सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने एक असर ये भी होता दिखाई दे रहा है कि यहां भाजपा के लिए सत्ता की सीढ़ी चढऩा कुछ आसान हो सकता है। इसकी वजह ये है कि किरोड़ी लाल मीणा से सिंह के अच्छे संबंध रहे हैं। और इसी कारण माना ये जा रहा है कि वसुंधरा की गलती से भाजपा से दूर हुए मीणा विधानसभा चुनाव होने से पार्टी में वापस लाए जा सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो यह भाजपा के लिए काफी सुखद होगा। यहां यह कहने की जरूरत नहीं है कि वसुंधरा की हार की वजूआत में एक प्रमुख वजह मीणा की नाराजगी भी थी।
-तेजवानी गिरधर