प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर एक प्रतिकूल टिप्पणी करने को जैसे ही पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने लपका, राज्यपाल मारग्रेट अल्वा को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की मौजूदगी में कहना पड़ गया कि राजस्थान में इस समय राजनीतिक यात्राएं निकल रही हैं, इनमें भाजपा और कांग्रेस दोनों ओर से क्रॉस फायर हो रहे हैं, लेकिन इसमें मुझे नहीं घसीटा जाए। मुझे लेकर किसी तरह की टिप्पणियां नहीं होनी चाहिए।
बेशक राज्यपाल का पद गरिमामय होता है और उन पर टिप्पणी करना राजनीतिक मर्यादा के विपरीत है, मगर वसुंधरा ने तो मात्र उनकी टिप्पणी का ही उल्लेख किया था, जो कि सरकार के खिलाफ पड़ती थी। ज्ञातव्य है कि राज्यपाल ने गत दिवस सीआईआई और इंडियन ग्रीन बिल्डिंग कौंसिल के ग्रीन बिल्डिंग एंड रिन्युएबल एनर्जी सेमिनार में कहा कि अधिकारी योजनाएं तो खूब बनाते हैं, घोषणाएं भी बहुत होती हैं, लेकिन क्रियान्विति नहीं होती। यही आरोप तो वसुंधरा पिछले एक माह से अपनी सुराज संकल्प यात्रा के दौरान लगा रही हैं। मीडिया भी यही कहता रहा है कि गहलोत सरकार के पास गिनाने को तो बहुत जनोपयोगी व लोककल्याणकारी योजनाएं हैं, मगर न तो ठीक से उनकी क्रियान्विति हो पा रही हैं और न ही उनकी उचित मॉनीटरिंग होती है। इस सिलसिले में नि:शुल्क दवा योजना को प्रमुख रूप से गिनाया जाता है, जिस पर न तो प्रशासनिक तंत्र ने ठीक से अमल किया है और न ही आम आदमी को पूरा लाभ मिल पा रहा है। चिकित्सकीय स्टाफ द्वारा मुफ्त दवाई घर ले जाने अथवा बाजार में बिकने के अनेक मामले सामने आ चुके हैं। जैसे ही योजनाओं के क्रियान्वयन की खामी को लेकर राज्यपाल ने भी बयान दिया तो वसुंधरा ने उसे तुरंत लपक कर कह दिया कि अब तो राज्यपाल भी वही कह रही हैं, जो कि हम कह रहे थे। इसमें मर्यादा के हनन जैसा तो कुछ है नहीं। मगर चूंकि राज्यपाल के बयान से भाजपा के आरोप की पुष्टि हो रही थी, इस कारण मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से जवाब देते नहीं बन रहा। सो अब कह रहे हैं कि राज्यपाल को मुद्दा बनाना दुर्भाग्यपूर्ण है। गहलोत का कहना है कि राज्यपाल ने पहले भी सरकारों के प्रति नाराजगी जाहिर की। पूर्व राज्यपाल मदनलाल खुराना ने तो भूख से मौतों को लेकर क्या कुछ नहीं कहा। वे खुद दौरा करने गए थे। तब तो प्रदेश में हमारी सरकार नहीं थी। हम राज्यपाल को राजनीतिक मुद्दा बनाएं, उन्हें लेकर टिप्पणियां करें, यह उनकी गरिमा के अनुकूल नहीं है। माना कि गहलोत ठीक कह रहे हैं, मगर इससे योजनाओं की क्रियान्विति ठीक से नहीं होने के आरोप से तो कत्तई मुक्त नहीं हो पाएंगे।
बहरहाल, गहलोत को घिरा देख कर राज्यपाल को भी लगा कि उनका सामान्य तौर पर दिए गए बयान ने राजनीतिक रंग ले लिया है तो उन्हें यह कहने को मजबूर होना पड़ा कि वर्तमान सरकार से मेरी कोई नाराजगी नहीं है। ऐसा भी नहीं है कि वे सरकार के कामकाज से नाखुश हैं। जो भी मुद्दे अथवा समस्याएं उनके सामने आती हैं, उनके बारे में वे अपने सुझाव सरकार को समय-समय पर भेजती रहती हैं। सरकार उन पर अमल भी करती है।
अपुन ने पहले ही लिख दिया था कि संभव है वसुंधरा के हमले के बाद मारेग्रेट अल्वा को ख्याल आया हो कि चुनावी साल में उन्होंने क्या कह दिया और वह सच निकल गया। राज्यपाल व मुख्यमंत्री, दोनों को सफाई देनी पड़ गई। अपना तो अब भी मानना है कि इन सफाइयों व मर्यादाओं के पाठ से गहलोत इस आरोप से तो मुक्ति नहीं पा सकेंगे कि अफसरशाही हावी है और वे अपने मन के मुताबिक अच्छी योजनाओं को ठीक से अमल करवा पाने में नाकामयाब रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर