तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, फ़रवरी 04, 2012

चलते रस्ते पंगा ले लिया अमीन खां ने


राजस्थान के वक्फ एवं अल्पसंख्यक मामलात के मंत्री अमीन खां ने गत दिवस अजमेर में चलते रस्ते पंगा मोल ले लिया। उनका मकसद और मंशा जो भी रही हो, जिसकी कि वे दुहाई देते नहीं थक रहे, मगर वह आम मुसलमान को तो नागवार गुजर रहा है। एक के बाद एक मुस्लिम संगठन उनके पीछे हाथ धो कर खड़े हो गए हैं।
असल में उन्होंने बयान दिया था कि जहां नमाज नहीं, वो मस्जिद नहीं। यह बयान देते ही तुरंत विरोध शुरू हो गया। कुछ लोग इस्लाम विरोधी एवं विवादित बयान पर अमीन खां के खिलाफ आलीमे दीन से शरिअत की रोशनी में फतवा मंगवाने की तैयारी कर रहे हैं। उनके बारे में राय बन रही है कि ऐसे नेता लोग मुसलमान तो होते हैं और उसी हैसियत से सियासत भी करते हैं, लैकिन मजहबी मालूमात की तंगदस्ती की वजह से इस तरह के बयान देकर मजहबी जज्बात को ठेस पहुंचा कर सियासत करते हैं। कांग्रेस विचारधारा के मुसलमानों ने इसे इस रूप में लिया है कि कांग्रेस से मुसलमानों के भटकने की वजह है, अमीन खां जैसे मुस्लिमों को तरजीह, जो मजहबी मामलात में जो मुहं में आता है बक देते हैं। महज चुनाव जीत लेना इस बात की जमानत नहीं है कि वे समाज में सर्वोपरि हैं।
इस मसले पर इस्लाम को जानने वाले मानते हैं कि मुसलमानों का मजहबी निजाम कानूने शरिअत, हदीसे नबवी, और मुकद्दस कुरआन के मुताबिक चलता है और इन मुकद्दस किताबों के हवाले से यह स्पष्ट है कि जो इमारत एक बार मस्जिद बन गई वो कयामत तक मस्जिद ही रहेगी, उसकी हैसियत कोई नही मिटा सकता। अल्लाह कुरआन में फरमाता है कि कुरआन और इबादतगाहों की हिफाजत ताकयामत हम करेंगे।
आम मुसलमान की तकलीफ ये है भी कि मस्जिदों के बारे में इस तरह की बयानबाजी से उन साम्प्रदायिक लोगों को बल मिलेगा, जिनका वजूद मस्जिद और मंदिर की राजनीति पर टिका हुआ है, जो हर लम्हा इसी जद्दोजहद में रहते हैं कि कैसे इन विवादित मुद्दों को छेड़ कर माहौल गर्माया जाए। वे इस तरह के बयानों को वह अन्य स्थानों पर नजीर के रूप में पेश करते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि इससे पूर्व अमीन खां राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटील के बारे में ऊलजलूल टिप्पणी के कारण मंत्री पद गंवा चुके हैं। तब उनकी कुर्सी जाने का मुस्लिम जमात को काफी मलाल था। उसी को खुश करने के लिए उन्हें फिर से मंत्री बनाया गया। आज वही मुस्मिम जमात उनसे खफा नजर आती है।
बहरहाल, अमीन खां की भले ही जुबान फिसली हो और उनका असल मकसद वो न हो, जो कि उनके बयान में दिखा रहा है, मगर अजमेर जैसे सांप्रदायिक सद्भाव वाले स्थल के साथ-साथ अति संवेदनशील शहर में ऐसी बयानबाजी करके उन्होंने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह और तीर्थराज पुष्कर की बदौलत दुनियाभर में सांप्रदायिक सौहाद्र्र की मिसाल के रूप में जानी जानी वाली यह ऐतिहासिक नगरी विचलित नहीं होगी।