तेजवानी गिरधर |
ऐसा नहीं कि अकेले मोदी फैक्टर की वजह से ही वसुंधरा हारीं। उनकी सरकार की भी कमजोरियां थीं। कई मोर्चों पर नाकामियां रहीं। राजपूत वोट बैंक खिलाफ हो गया। आखिर में तो कर्मचारी भी नाराज हो गए। मगर आम मतदाता मूल रूप से मोदी की आर्थिक अराजकता के कारण गुस्से में थी। राजस्थान में भी निष्प्राण प्राय: हो चुकी कांग्रेस को प्रदेश अध्यक्ष सचिन पायलट ने जीवित करने का प्रयास किया तो उन्होंने स्वाभाविक रूप से वसुंधरा सरकार पर ही हमले बोले। उधर संघ निष्ट भाजपाइयों ने भी सुनियोजित तरीके से यह नारा चला दिया कि मोदी से तेरे से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं। अर्थात वसुंधरा के प्रति नाराजगी दिखाते हुए भी वे मोदी के नाम पर वोट मांग रहे थे। वे यह जानते थे कि जनता में असल में मोदी की नोटबंदी, जीएसटी व महंगाई की वजह से रोष है, लेकिन अगर यही मुद्दे उभर कर आए तो आगामी लोकसभा चुनाव के लिए सुरक्षित मोदी ब्रांड को खतरा उत्पन्न हो जाएगा, इस कारण गुस्से को वसुंधरा की ओर डाइवर्ट कर दिया गया। एक बारगी तो ऐसा माहौल बना दिया गया कि अगर वसुंधरा को नहीं हटाया गया तो भाजपा बुरी तरह से पराजित हो जाएगी। इसके लिए लोकसभा उपचुनाव में जानबूझ कर संघ ने असहयोग किया, ताकि सारा दोष वसुंधरा पर मढ़ा जाए। वसुंधरा को हटाने व कमजोर करने की कोशिशें भी कम नहीं हुईं, मगर चूंकि वे मजबूत थीं, इस कारण हाईकमान चाह कर भी ऐसा नहीं कर पाया। अगर जबरन हटाने की कोशिश होती तो पार्टी दो फाड़ भी हो सकती थी। प्रदेश अध्यक्ष बदले जाने के दौरान जो कुछ हुआ, वह सर्वविदित ही है। हालत ये हो गई कि उसे वसुंधरा को ही आगे रख कर चुनाव लडऩा पड़ा। हालांकि यह सही है कि अगर भाजपा अपना चेहरा बदलती तो उसका उसे कुछ फायदा होता। उसी ने लगभग साल भर पहले वसुंधरा के खिलाफ माहौल बनाना शुरू कर दिया था। उसे उम्मीद थी कि ऐसा करने से वसुंधरा की जगह किसी और चेहरे पर चुनाव लड़ा जा सकेगा। यदि चेहरा नहीं भी मिला तो मोदी के नाम पर वोट मांगे जाएंगे।
भाजपा हाईकमान जानता था कि महंगाई कम करने का वादा तो पूरा हुआ नहीं, उलटे बढ़ गई, जिससे आम जनता त्रस्त थी। कहां तो बड़े पैमाने पर रोजगार देने का सपना दिखाया गया था और कहां नोटबंदी के चलते बाजार में मंदी आ गई व बेरोजगारी और अधिक बढ़ गई। रही सही कसर जीएसटी ने की। आमतौर पर भाजपा के साथ रहने वाला व्यापारी तबका भी बेहद त्रस्त रहा। गुस्सा इतना अधिक था कि आखिर में मोदी व अमित शाह की ताबड़तोड़ सभाएं भी कुछ नहीं कर पायीं। जमीनी हकीकत यही है। जनता को ये कत्तई भान नहींं था कि वसुंधरा ने अच्छा काम किया या नहीं। अब चूंकि चुनाव राज्य सरकार का था तो स्वाभाविक रूप से मतदाता का रोष वसुंधरा के खिलाफ गिना गया। गिना क्या गया, जानबूझ कर भाजपा खेमे से ऐसा ही गिनवाया गया। भाजपा के नीति निर्धारकों को वसुंधरा के शहीद होने की चिंता नहीं थी, एक राज्य चला भी जाए तो कोई बात नहीं, उन्हें तो फिक्र थी मोदी ब्रांड की, जो यदि डाउन हुआ तो लोकसभा चुनाव में सत्ता में वापस लौटना मुश्किल हो जाएगा।
खैर, अब जबकि यह मान ही लिया गया है कि वसुंधरा राजे की ही वजह से भाजपा पराजित हुई है, समझा जाता है कि उन्हें लोकसभा चुनाव लड़वा कर राजस्थान से रुखसत किया जाएगा। हालांकि यह भी तभी होगा, जबकि वसुंधरा खुद इसके लिए राजी होंगी। वैसे यह पक्का है कि लोकसभा चुनाव में मोदी का चेहरा ही अहम भूमिका में होगा, मगर राजस्थान में वसुंधरा की मौजूदगी समाप्त करने पर विचार किया जा सकता है।
-तेजवानी गिरधर
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