बेशक क्रिकेट एसोसिएशन के चुनाव में भी राजनीति का बड़ा दखल होता है, मगर उससे राजनीति की दिशा तय होती हो, ऐसा नहीं है। हां, इतना जरूर है कि क्रिकेट की राजनीति इशारा जरूर करती है कि राजनीति का तापमान कैसा है? आरसीए के चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ।
इसमें कोई दोराय नहीं कि प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सी पी जोशी राजनीति के बड़े चतुर खिलाड़ी हैं, मगर उन्हें आरसीए अध्यक्ष बनने की जो कामयाबी हाथ लगी, उसमें कहीं न कहीं भाजपा के अंदरूनी अंतरविरोध ने अपनी भूमिका अदा की। पिछले दिनों जब इस चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी तो इशारे यही थे कि सी पी जोशी का पलड़ा भारी है, मगर समीक्षकों की नजर इस बात पर थी कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की रुचि कैसी है? माना यही जा रहा था कि चूंकि भाजपा यह नहीं चाहती कि राजस्थान क्रिकेट की राजनीति पर आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी हावी रहें, इस कारण मोदी के पुत्र रुचि मोदी को सत्तारूढ़ दल का साथ मिला होने पर संदेह था। फिर भी चूंकि सारा गेम भाजपा के अंदरखाने चल रहा था, इस कारण समीक्षक यह जानते हुए भी कि जोशी ही जीतेंगे, उनके जीतने पर सवालिया निशान छोड़ रहे थे।
चुनावी गणित कैसा था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि समीक्षक यह भाषा बोल रहे थे- जो रुझान मिल रहे हैं, उनके अनुसार जीत कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी की होगी, लेकिन यह तभी संभव है, जब उनके प्रतिद्वंद्वी और आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी के बेटे रुचिर को सरकार का सहयोग नहीं मिला होगा। राजस्थान में ललित मोदी किसके करीबी हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। यदि केन्द्रीय भाजपा की रुचि रुचिर में नहीं थी, इसका सीधा सा अर्थ है कि वह ललित मोदी के बहाने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मजबूत होते नहीं देखना चाहती। इसी कारण इस चुनाव से जुड़ा सरकारी तंत्र असंमस में था। उसने रुचिर का पूरा साथ नहीं दिया और जोशी जीत गए।
यह तो हुई भाजपा की बात। अब अगर इस परिणाम के कांग्रेस में असर पर नजर डालें तो इतना तो कहा ही जा सकता है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की सत्ता होने के बाद भी अगर एक पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष आरसीए का अध्यक्ष बनता है तो इसका प्रभाव कांग्रेस कार्यकर्ता के मनोबल पर भी पड़ता है। वह दिखाई भी दे रहा है। यह भी तय है कि इससे पूर्वोत्तर के दस राज्यों में कांग्रेस का प्रभार संभालने के कारण राजस्थान की राजनीति से कुछ कटे हुए जोशी फिर ताकतवर हुए हैं। वे इस बहाने राजस्थान में अपनी जड़ों को फिर से सींचेंगे। स्वाभाविक रूप से इसका असर कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति पर भी पड़ेगा। निश्चित रूप से कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की भी इस चुनाव पर नजर रही होगी। उन्हें अब कांग्रेस हाईकमान के निर्देशों के अनुरूप नए सिरे से माथापच्ची करनी होगी। हालांकि जोशी इस जीत के आधार पर कोई बड़ा उलटफेर करने की स्थिति में नहीं होंगे, मगर इतना जरूर है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए उनके पक्के समर्थकों का उम्मीदें कुछ बढ़ जाएंगी। और अगर राजस्थान से ध्यान हटा कर गुजरात की जिम्मेदारी निभा रहे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों का भी साथ मिला तो वे नया समीकरण बनाने की कोशिश करेंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
इसमें कोई दोराय नहीं कि प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सी पी जोशी राजनीति के बड़े चतुर खिलाड़ी हैं, मगर उन्हें आरसीए अध्यक्ष बनने की जो कामयाबी हाथ लगी, उसमें कहीं न कहीं भाजपा के अंदरूनी अंतरविरोध ने अपनी भूमिका अदा की। पिछले दिनों जब इस चुनाव के लिए वोटिंग हो चुकी तो इशारे यही थे कि सी पी जोशी का पलड़ा भारी है, मगर समीक्षकों की नजर इस बात पर थी कि केन्द्र में सत्तारूढ़ भाजपा की रुचि कैसी है? माना यही जा रहा था कि चूंकि भाजपा यह नहीं चाहती कि राजस्थान क्रिकेट की राजनीति पर आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी हावी रहें, इस कारण मोदी के पुत्र रुचि मोदी को सत्तारूढ़ दल का साथ मिला होने पर संदेह था। फिर भी चूंकि सारा गेम भाजपा के अंदरखाने चल रहा था, इस कारण समीक्षक यह जानते हुए भी कि जोशी ही जीतेंगे, उनके जीतने पर सवालिया निशान छोड़ रहे थे।
चुनावी गणित कैसा था, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि समीक्षक यह भाषा बोल रहे थे- जो रुझान मिल रहे हैं, उनके अनुसार जीत कांग्रेस के दिग्गज नेता सीपी जोशी की होगी, लेकिन यह तभी संभव है, जब उनके प्रतिद्वंद्वी और आईपीएल के पूर्व चेयरमैन ललित मोदी के बेटे रुचिर को सरकार का सहयोग नहीं मिला होगा। राजस्थान में ललित मोदी किसके करीबी हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। यदि केन्द्रीय भाजपा की रुचि रुचिर में नहीं थी, इसका सीधा सा अर्थ है कि वह ललित मोदी के बहाने मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को मजबूत होते नहीं देखना चाहती। इसी कारण इस चुनाव से जुड़ा सरकारी तंत्र असंमस में था। उसने रुचिर का पूरा साथ नहीं दिया और जोशी जीत गए।
यह तो हुई भाजपा की बात। अब अगर इस परिणाम के कांग्रेस में असर पर नजर डालें तो इतना तो कहा ही जा सकता है कि केन्द्र व राज्य में भाजपा की सत्ता होने के बाद भी अगर एक पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष आरसीए का अध्यक्ष बनता है तो इसका प्रभाव कांग्रेस कार्यकर्ता के मनोबल पर भी पड़ता है। वह दिखाई भी दे रहा है। यह भी तय है कि इससे पूर्वोत्तर के दस राज्यों में कांग्रेस का प्रभार संभालने के कारण राजस्थान की राजनीति से कुछ कटे हुए जोशी फिर ताकतवर हुए हैं। वे इस बहाने राजस्थान में अपनी जड़ों को फिर से सींचेंगे। स्वाभाविक रूप से इसका असर कांग्रेस की अंदरुनी राजनीति पर भी पड़ेगा। निश्चित रूप से कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी अविनाश पांडे की भी इस चुनाव पर नजर रही होगी। उन्हें अब कांग्रेस हाईकमान के निर्देशों के अनुरूप नए सिरे से माथापच्ची करनी होगी। हालांकि जोशी इस जीत के आधार पर कोई बड़ा उलटफेर करने की स्थिति में नहीं होंगे, मगर इतना जरूर है कि आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए उनके पक्के समर्थकों का उम्मीदें कुछ बढ़ जाएंगी। और अगर राजस्थान से ध्यान हटा कर गुजरात की जिम्मेदारी निभा रहे पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के समर्थकों का भी साथ मिला तो वे नया समीकरण बनाने की कोशिश करेंगे।
-तेजवानी गिरधर
7742067000