मान्यता है कि गंगा नदी में नहाने से पाप धुल जाते हैं। जो भी बुरे कर्म किए हैं, उनसे मुक्ति मिल जाती है। बेषक गंगा में नहाने से पुण्य तो मिल सकता है, नई उर्जा का संचार तो हो सकता है, मगर किए हुए कर्मों से मुक्ति कैसे मिल सकती है, जबकि सिद्धांत यह है कि आदमी को कर्मों का फल भोगना ही होता है, तत्काल या देर से। आप देखिए न, अपने कर्मों के फल से तो गंगा के पुत्र भीष्म भी नहीं बच पाए थे। उन्हें भी षर षैया पर लेटना पडा था। गंगा स्वयं अपने पुत्र तक को कर्म के बंधन से मुक्त नहीं कर पाई थी। असल में होना यह चाहिए कि हम बुरे कर्म करें ही नहीं कि पाप धोने के लिए गंगा में स्नान करना पडे। मगर हम बहुत चालाक हैं, पहले बुरे कर्म धडल्ले से करते हैं और फिर पाप धोने के लिए गंगा नहाने चले जाते हैं।