तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, अक्तूबर 25, 2014

सोशल मीडिया ने तो बना दिया ओम प्रकाश माथुर को मुख्यमंत्री

एक ओर जहां राज्य मंत्रीमंडल के विस्तार की कवायद चल रही है, वहीं दूसरी ओर सोशल मीडिया ने भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ओम प्रकाश माथुर को मुख्यमंत्री बना दिया है और अब बस औपचारिक घोषणा का इंतजार है।
हालांकि ये बात सही है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बीच ट्यूनिंग नहीं बैठने और असंतुष्ठ लॉबी के सक्रिय होने के कारण यह लग रहा है कि वसुंधरा राजे अब मुख्यमंत्री पद पर ज्यादा दिन नहीं रह पाएंगी। गोपनीय स्तर पर मुख्यमंत्री को हटाए जाने की कवायद भी चल रही है, जिसे मोदी का संरक्षण हासिल बताया जाता है। इस सनसनीखेज साजिश का खुलासा अपुन पहले ही कर चुके हैं। तब तक यही माना जा रहा था कि मोदी के खासमखास ओम प्रकाश माथुर की ताजपोशी होगी, मगर जैसे ही महाराष्ट्र के बाद उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाया गया यह कयास लगाया जाना लगा कि शायद उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का विचार त्याग दिया गया है, इसी कारण फिर नई जिम्मेदारी दे दी गई है। इसमें कुछ लोगों का तर्क ये है कि एक तो उन्हें प्रशासनिक तंत्र को हैंडल करने का अनुभव नहीं है, दूसरा विधायकों के बीच वे आसानी से स्वीकार्य नहीं हैं। ऐसे में अगर वसुंधरा को हटाया भी गया तो गुलाब चंद कटारिया का नंबर आ सकता है।
जहां तक सोशल मीडिया पर माथुर की खबर चलने का सवाल है, उसका मजमून कुछ इस प्रकार है:-
ब्रेकिंग न्यूज- ओमप्रकाश माथुर होंगे राजस्थान के नये मुख्यमंत्री
जल्द ही राजस्थान को तानाशाही मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया से मुक्ति मिलने की सम्भावना है। सूत्र बताते हैं कि वरिष्ठ कार्यकर्ताओं की अनदेखी, अपने विधायकों पर तानाशाही रवैया रखने, 10 महीने में कुछ भी काम न हो पाना तथा केंद्र की वित्तीय सुविधाओं का उपयोग न कर पाने के कारण केन्द्रीय नेतृत्व ने उनको बदलने का फैसला कर लिया है। ऐसे में ओमप्रकाश माथुर का नाम प्रबल दावेदारों में सबसे ऊपर है।
जाहिर तौर पर राजस्थान की राजनीति से गायब हो चुके ओम प्रकाश माथुर चर्चा में आए तो उनके व्यक्तित्व की भी चर्चा होने लगी है। इस बारे में सोशल मीडिया पर अजमेर के वरिष्ठ पत्रकार एस पी मित्तल की एक टिप्पणी भी चल रही है। वो इस प्रकार है:-
ओम प्रकाश माथुर ने अपनी लाइन बड़ी की
सब जानते हैं कि भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री ओम प्रकाश माथुर और मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे में छत्तीस का आंकड़ा है। राजनीतिक विवाद के चलते ही माथुर ने राजस्थान की राजनीति को छोड़ दिया। यदि माथुर वसुंधरा राजे के साथ विवादों में ही उलझते रहते तो शायद आज  इतने बड़ मुकाम पर नहीं पहुंचते। माथुर ने वसुंधरा राजे की लाइन को छोटा करने के बजाए स्वयं की लाइन को बड़ा करने की रणनीति अपनाई। माथुर ने पहले गुजरात में और फिर महाराष्ट्र के विधानसभा चुनाव में अपनी राजनीतिक कुशलता का परिचय दिया। यही वजह रही कि इस बार माथुर को देश में सबसे बड़े उत्तर प्रदेश राज्य का प्रभारी बनाया गया है। आज माथुर जिस मुकाम पर खड़े हैं, वह राजस्थान की राजनीति से बहुत बड़ा है। माथुर की कामयाबी से राजस्थान के भाजपा नेताओं को सबक लेना चाहिए।
खैर, जो कुछ भी हो यह कहना कत्तई गलत नहीं होगा इस बार प्रचंड बहुमत से सरकार बनाने वाली वसुंधरा उम्मीद के विपरीत कमजोर साबित हुई हैं। उनके मोदी से संबंध न होने की बात को इस कारण भी बल मिला क्योंकि यह चर्चा जबरदस्त रही कि पिछले दिनों एक सभा में उन्होंने यहां तक कह दिया कि किसी एक व्यक्ति के दम पर चुनाव नहीं जीता जाता, जीत में सभी का सहयोग होता है। जाहिर है उनका ये बयान सुन कर मोदी की जुबान का स्वाद खराब हुआ ही होगा। ऐसे में अगर वे उन्हें निशाने पर लेते हैं, तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए।
-तेजवानी गिरधर

शुक्रवार, अक्तूबर 24, 2014

राज्य मंत्रीमंडल का विस्तार हर हालत में 27 तक होगा

राज्य मंत्रीमंडल के लंबे समय से प्रतीक्षित विस्तार का आखिर समय आ ही गया। कई बार चर्चा हुई कि विस्तार अब होगा, अब होगा, मगर हर बार किसी न किसी वजह से वह टलता ही रहा, मगर अब स्थिति यहां तक आ गई है कि मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को आगामी 27 अक्टूबर तक विस्तार करना ही होगा।
असल में यूं तो वसुंधरा राजे के पास आगामी 15 नवंबर तक का समय था। तब नसीराबाद से विधायक बनने के बाद इस्तीफा देकर सांसद बने प्रो. सांवरलाल जाट के बिना विधायक रहते मंत्री बने रहने को छह माह पूरे होने हैं। इस बात की कोई संभावना भी नहीं थी कि उन्हें फिर से विधानसभा का चुनाव लडय़ा जाए। अगर विधायक रखना ही था तो इस्तीफा ही क्यों दिलवाते। खैर, चूंकि 15 नवंबर तक जाट को इस्तीफा देना ही होगा और उनके इस्तीफा देते ही न्यूनमत 12 मंत्रियों की बाध्यता आ जाएगी, यानि कि तब तक उन्हें मंत्रीमंडल का विस्तार करना ही होगा। मगर इस बीच समस्या ये आ गई कि राज्य में कुछ स्थानीय निकायों के चुनाव के लिए आचार संहिता 28 अक्टूबर को लागू हो जाएगी और तब वे मंत्रीमंडल का विस्तार नहीं कर पाएंगी, इस कारण अब यह लगभग पक्का ही है कि 27 अक्टूबर तक किसी भी सूरत में जाट का इस्तीफा और मंत्रीमंडल का विस्तार कर दिया जाएगा। इसमें भी एक पेच बताया जा रहा है। भाजपा हाईकमान की इच्छा है कि फिलहाल जाट के इस्तीफा देने के साथ सिर्फ एक-दो नए मंत्री बना दिए जाएं और पूरा विस्तार बाद में किया जाए, मगर जानकारी ये है कि वसुंधरा ठीक से विस्तार करना चाहती हैं। अब देखना ये है कि क्या हाईकमान वसुंधरा राजे को अपनी बात मानने में कामयाब हो जाता है या फिर वसुंधरा की इच्छा को पूरा किया जाता है।
कुल मिला कर मंत्रीमंडल विस्तार के लिए उलटी गिनती शुरू होने के साथ मंत्री बनने के इच्छुक विधायकों में हलचल तेज हो गई है। बनने में कौन कामयाब होगा, ये तो वक्त ही बताएगा।
-तेजवानी गिरधर