तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

बुधवार, दिसंबर 11, 2024

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर क्यों बैठते हैं?

मंदिर में दर्शन के बाद बाहर सीढ़ी पर थोड़ी देर क्यों बैठा जाता है? यह सवाल मेरे जेहन में अरसे से है। इसका जवाब जानने की बहुत कोशिश की, मगर अब तक उसका ठीक ठीक कारण नहीं जान पाया हूं। भले ही आज वास्तविक कारण का हमें पता न हो, मगर यह परंपरा जरूर कोई न कोई राज लिए हुए है।

मुझे मोटे तौर यह समझ में आता है कि मंदिर के आध्यात्मिक माहौल को आत्मसात करने के बाद बाहर आने पर एक झटके में भौतिक जगत से जो सामना होता है, वह कहीं एक झटके में ही आध्यात्मिक भाव को नष्ट न कर दे। मंदिर के भीतर हमने जो ऊर्जा हासिल की है, वह बाहर आते ही भौतिक वातावरण में तिरोहित न हो जाए, इसलिए कुछ क्षण बैठ कर उसे भीतर गहरे बैठाने की कोशिश की जाती है।

हाल ही मेरे वरिष्ठ मित्र हाल दिल्ली निवासी श्री शिव शंकर गोयल, जो कि जाने-माने व्यंग्य लेखक हैं, ने इससे संबंधित पोस्ट वाट्स ऐप पर भेजी।  उसे हूबहू आपके सम्मुख प्रस्तुत कर रहा हूं, उसे पढऩे के बाद हम विचार करेंगे कि क्या वाकई हमें अपने सवाल का जवाब मिला या नहीं-

परम्परा है कि किसी भी मंदिर में दर्शन के बाद बाहर आकर मंदिर की पैड़ी या अटले पर थोड़ी देर बैठना। क्या आप जानते हैं इस परंपरा का क्या कारण है? आजकल तो लोग मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर अपने घर / व्यापार / राजनीति इत्यादि की चर्चा करते हैं, परंतु यह प्राचीन परंपरा एक विशेष उद्देश्य के लिए बनाई गई है। वास्तव में मंदिर की पैड़ी पर बैठ कर एक श्लोक बोलना चाहिए। यह श्लोक आजकल के लोग भूल गए हैं। इस श्लोक को मनन करें और आने वाली पीढ़ी को भी बताएं। श्लोक इस प्रकार है-

अनायासेन मरण

बिना देन्येन जीवन

देहान्त तव सान्निध्य

देहि मे परमेश्वर

इस श्लोक का अर्थ है

अनायासेन मरणम् अर्थात् बिना तकलीफ के हमारी मृत्यु हो और कभी भी बीमार होकर बिस्तर पर न पड़ें, कष्ट उठा कर मृत्यु को प्राप्त न हो। चलते फिरते ही हमारे प्राण निकल जाएं।

बिना देन्येन जीवनम् अर्थात् परवशता का जीवन न हो। कभी किसी के सहारे न रहना पड़े। जैसे कि लकवा हो जाने पर व्यक्ति दूसरे पर आश्रित हो जाता है, वैसे परवश या बेबस न हों। ठाकुर जी की कृपा से बिना भीख के ही जीवन बसर हो सकें।

देहांते तव सान्निध्यम् अर्थात् जब भी मृत्यु हो तब भगवान के सम्मुख हो। जैसे भीष्म पितामह की मृत्यु के समय स्वयं ठाकुर (कृष्ण जी) उनके सम्मुख जाकर खड़े हो गए। उनके दर्शन करते हुए प्राण निकले।

देहि में परमेशवरम् अर्थात् हे परमेश्वर ऐसा वरदान हमें देना।

भगवान से प्रार्थना करते हुए उपरोक्त श्लोक का पाठ करें। 

गाडी, लाडी, लड़का, लड़की, पति, पत्नी, घर, धन इत्यादि (अर्थात् संसार) नहीं मांगना है, यह तो भगवान आप की पात्रता के हिसाब से खुद आपको देते हैं। इसीलिए दर्शन करने के बाद बैठ कर यह प्रार्थना अवश्य करनी चाहिए। यह प्रार्थना है, याचना नहीं है। याचना सांसारिक पदार्थों के लिए होती है। जैसे कि घर, व्यापार,नौकरी, पुत्र, पुत्री, सांसारिक सुख, धन या अन्य बातों के लिए जो मांग की जाती है, वह याचना है, वह भीख है।

प्रार्थना शब्द के प्र का अर्थ होता है विशेष अर्थात् विशिष्ट, श्रेष्ठ और अर्थना अर्थात् निवेदन। प्रार्थना का अर्थ हुआ विशेष निवेदन।

मंदिर में भगवान का दर्शन सदैव खुली आंखों से करना चाहिए, निहारना चाहिए। कुछ लोग वहां आंखें बंद करके खड़े रहते हैं। आंखें बंद क्यों करना, हम तो दर्शन करने आए हैं। भगवान के स्वरूप का, श्री चरणों का, मुखारविंद का, शृंगार का, संपूर्ण आनंद लें, आंखों में भर ले निज-स्वरूप को।

दर्शन के बाद जब बाहर आकर बैठें, तब नेत्र बंद करके जो दर्शन किया है, उस स्वरूप का ध्यान करें। मंदिर से बाहर आने के बाद, पैड़ी पर बैठ कर स्वयं की आत्मा का ध्यान करें, तब नेत्र बंद करें और अगर निज आत्मस्वरूप ध्यान में भगवान नहीं आए तो दोबारा मंदिर में जाएं और पुनः दर्शन करें।

इस पोस्ट में मंदिर के बाहर सीढ़ी पर बैठने के बाद क्या करना है, ये तो बहुत अच्छे तरीके से बताया गया है। साथ ही ऐसा करने का प्रयोजन भी आखिर में बताया गया है। वो यह कि भीतर जो दर्शन किया है, उसे सीढ़ी पर बैठ कर एक बार आत्मसात कर लें, ताकि वह चिरस्थाई हो जाए। जैसे पढ़ाई करते वक्त पढ़े हुए पाठ को याद रखने के लिए रिवीजन किया जाता है। 

बेशक एक कारण ये हो सकता है, हालांकि लोग तो इस कारण को जाने बिना ही केवल औपचारिक रूप से ऐसा करते हैं। एक वजह सम्मान की भी हो सकती है। मंदिर से बाहर निकलते वक्त हमारी पीठ मूर्ति की ओर होती है, जो कि उचित नहीं। अतः मूर्ति के देवता के प्रति आदर व आभार प्रकट करने के लिए सीढ़ी पर कुछ क्षण बैठा जाता होगा। मेरी खोज जारी है, यदि कोई और कारण भी जानकारी में आया तो आपसे शेयर जरूर करूंगा।


गधे के बायीं ओर से गुजरना शुभ क्यों?

दोस्तो, नमस्कार। हमारे यहां अनेक अनोखी मान्यताएं हैं, जिनके वैज्ञानिक आधार की हमें जानकारी नहीं है। कदाचित किसी समय में जानकारी रही हो, मगर अभी वह मौजूद नहीं है। वह परंपरा मात्र है। क्या आपको जानकारी है कि एक मान्यता के अनुसार हम कहीं जा रहे हों और सामने से गधा आ जाए तो उसके बायीं ओर से गुजरा जाए तो जिस काम केलिए हम जा रहे होते हैं, वह पूर्ण होता है। यानि गधा हमारे बायीं ओर हो तो वह शुभ होता है। इसका ताल्लुक शुभ-अशुभ सगुन ज्ञान से है। गूगल के जेमिनी प्लेटफार्म के अनुसार प्राचीन समय में, जानवरों को अक्सर देवताओं या प्राकृतिक शक्तियों का प्रतीक माना जाता था। हो सकता है कि गधे को किसी विशेष देवता या शक्ति से जोड़ा जाता हो और उसकी बायीं ओर से जाना किसी तरह का अभिनंदन या सम्मान माना जाता हो। कई संस्कृतियों में दिशाओं को शुभ और अशुभ माना जाता है। हो सकता है कि गधे के बायीं ओर जाने से कोई विशेष दिशा की ओर संकेत मिलता हो, जो शुभ मानी जाती हो। कई लोक कथाओं और किवदंतियों में जानवरों के साथ जुड़े शुभ-अशुभ संकेतों का उल्लेख मिलता है। हो सकता है कि यह मान्यता भी किसी ऐसी ही कहानी से जुड़ी हो।

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उबासी आने पर चुटकी क्यों ली जाती है?

उबासी व जम्हाई एक सामान्य शारीरिक क्रिया है। हर किसी को आती है उबासी। उसके अपने कारण हैं, लेकिन कई लोग उबासी आने पर होंठों के आगे चुटकी बजाते हैं। संभव है, इसकी आपको भी जानकारी हो। आप भी चुटकी बजाते हों। मगर ये चुटकी क्यों ली जाती है, उसका ठीक-ठीक क्या कारण है, यह ठीक से नहीं पता। जाहिर तौर पर उबासी ऊब, थकावट या नीरसता अनुभव होने का संकेत है। हो सकता है ऊब मिटाने के लिए चुटकी ली जाती हो। यह भी हो सकता है कि ऐसा इसलिए भी किया जाता हो कि उबासी के दौरान मुंह खुला रहने के दौरान कोई मक्खी-मच्छर श्वास के साथ भीतर न प्रवेश कर जाए।

बहरहाल उबासी के दौरान चुटकी लेने का एक प्रसंग रामायण में आता है। जरा इस पर बात कर लेते हैं।

वस्तुतः भक्त हनुमान द्वारा भगवान राम की निरंतर सेवा से सीता जी, भरत, लक्ष्मण आदि ईर्ष्या करने लगे थे। भगवान राम के राज्याभिषेक के बाद सब कुछ आनंद से चल रहा था। हनुमान जी भी अयोध्या में ही रह कर भगवान राम की सेवा करते थे। हर वक्त, यहां तक कि शयन कक्ष में भी हनुमान सेवा में उपस्थित रहते थे। ईर्ष्यावश सीता जी, भरत व लक्ष्मण ने एक योजना बनाई, ताकि हनुमान को सेवा से दूर रखा जा सके। राम दरबार में भरत ने राम की ओर से एक आदेश सुनाया। इसके तहत उन्होंने शयन कक्ष में सिर्फ सीता जी के, दरबार में भरत जी के और भोजन और भ्रमण के दौरान लक्ष्मण जी ने सेवा के अधिकार ले लिए। हालांकि भगवान राम ने हनुमान के लिए सेवा के लिए कुछ न छोडऩे पर संशय किया था, मगर सब टाल गए। अपने लिए सेवा का अवसर न बचने पर हनुमान हनुमान गढ़ी में दुखी हो कर रोने लगे। अपनी सेवा में हनुमान जी को न पाकर श्रीराम का भी मन नहीं लगा, तब उन्होंने हनुमान का पता करवाया और उनको बुलावा भेजा। हनुमान के दुख का कारण जान कर भगवान राम ने उनसे सेवा को कोई मौका मांगने को कहा। चतुर हनुमान ने भगवान राम को उबासी आने पर चुटकी बजाने की सेवा मांगी। भगवान राम ने स्वीकृति दे दी। हनुमान से ईर्ष्या करने वाली मंडली को यह बहुत ही सामान्य सी सेवा लगी, सो उन्होंने कोई ऐतराज नहीं किया। लेकिन इस सेवा के बहाने हनुमान हर पल भगवान राम के साथ ही रहने लगे। पता नहीं कब उबासी आ जाए और उन्हें चुटकी बजानी पड़े। एक दिन रात में सीता जी ने हनुमान को शयन कक्ष से बाहर भेज दिया। भगवान राम ने उबासी ली, और उनका मुंह खुला का खुला रह गया। यह स्थिति देख कर सभी घबरा गए। किसी को कुछ नहीं समझ आया कि क्या किया जाए। इस पर हनुमान को बुलवाया गया। उनके चुटकी बजाते ही भगवान राम सामान्य हो गए। है न दिलचस्प प्रसंग।

खैर, उबासी आती क्यों है, इस पर विदुषी निशी खंडेलवाल ने एक विस्तृत आलेख लिखा है। आइये, उसके कुछ अंश जान लेते हैं। 

जानकारी ये है कि हम ही नहीं, बल्कि गर्भस्थ शिशु भी उबासी लेता है। अल्ट्रा साउंड निरीक्षण के दौरान 20 सप्ताह के शिशुओं की गर्भ में उबासिया रिकार्ड की गई हैं। इससे तो ऐसा लगता है कि उबासी का आना हमारे लिए काफी महत्वपूर्ण है और इस पर नियंत्रण कर पाना सम्भव नहीं। रात को सोने से पहले, सुबह उठने के बाद, किसी काम को लगातार करते रहने से, बहुत ज्यादा थकान महसूस होने जाने आदि-आदि परिस्थितियों में सभी के उबासी लेने के अनुभव हैं।

उबासी क्यों आती है, इसका पता लगाने और किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए बहुत-से अध्ययन किए गए हैं। सन् 1986 में महाविद्यालय के कुछ छात्रों पर किए गए प्रयोगों में पाया कि उस समय उबासी ज्यादा आती है, जब छात्रों को बोरियत महसूस होती है। 

ऐसा माना जाता है कि थके होने पर उबासी ज्यादा आती है। यह देखा जाता है कि अक्सर उबासी नींद आने की स्थिति में आती है। सबसे ज्यादा उबासी सोने से पहले और सो कर उठने के समय आती है, क्योंकि इस समय सक्रियता का स्तर बहुत कम होता है। परन्तुु बाद में हुए कुछ प्रयोगों से यह पता चला कि सतर्कता का स्तर अक्सर उबासी के बाद नहीं, उससे पहले बढ़ जाता है और सतर्कता के अन्य सम्भावित कारण भी पाए गए। तो यह परिकल्पना भी बहुत सटीक साबित नहीं हुई।

दिलचस्प बात है कि कई जानवर उबासी लेते हैं - शेर-बिल्ली, कुत्ते-भेड़िए, बन्दर-वानर, सांप, मछली, चूहे, घोड़े, तोते, पेंग्विन, उल्लू आदि। मनुष्यों की तरह सामाजिक समूहों में रहने वाले जानवरों में किसी को उबासी लेते हुए देख कर अन्य को भी उबासी आ जाती है। इनमें चिम्पैन्ज़ी और तोते शामिल हैं। शोध से यही पता चला है कि कुत्ते अपने मालिक को उबासी लेते देख खुद उबासी लेने लगते हैं। अर्थात उबासी एक प्रजाति से दूसरी प्रजाति में भी फैल सकती है।

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