तेजवानी गिरधर |
जो कुछ भी हो, मगर जो व्यक्ति भाजपा का कद्दावर नेता हो, उससे अगर उसी की पार्टी की सरकार के रहते राज्य में कार्यकर्ता दूरी रखने को मजबूर हों तो वह चौंकाता है। खुद माथुर जब राजस्थान आते हैं तो उन्हें लगता होगा कि ये कौन सी दुनिया में आ गए। जिस पार्टी के वे कद्दावर नेता हैं, उसी के कार्यकर्ता मुंह फेर रहे हैं। पिछले दिनों उनके पुष्कर आगमन पर यही स्थिति हुई। हालांकि कहने भर को जरूर यह बात कही गई कि उनके आने की कोई सूचना नहीं थी, मगर सच ये है कि सब को पता था कि वे आने वाले हैं। अजमेर नगर निगम के पूर्व सभापति सुरेन्द्र सिंह शेखावत जरूर अपने साथी हितेश वर्मा के साथ आए, मगर इसलिए नहीं कि वे अभी भाजपा में हैं ही नहीं।
राज्य में यह स्थिति पहली बार नहीं आई है। इससे पहले राजस्थान के एक ही सिंह कहलाने वाले भैरोंसिंह शेखावत भी जब उपराष्ट्रपति पद से निवृत्त हो कर राजस्थान लौटे तो तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने उनकी पूरी जाजम समेट कर ताक पर रख दी थी। उनकी भी हालत ये हो गई थी कि वे राज्य में जहां कहीं भी जाते तो अपने स्वागत के लिए कार्यकर्ताओं को तरस जाते थे। लंबी और कठोर साधना के बाद हासिल मुकाम का यकायक खो जाना जीतेजी मरने के समान है। राजस्थान में आने के बाद काफी दिन तक तो शेखावत सार्वजनिक रूप से नजर ही नहीं आए। और आए तो वसुंधरा के डर से भाजपा के कार्यकर्ता उनसे दूर दूर ही रहते थे। स्थिति ये हो गई कि शेखावत अपनी ही सरकार को घेरने लग गए। इसी के साथ उनका राजनीतिक अवसान हो गया। इतना ही नहीं नरपत सिंह राजवी को भी केवल इसी कारण वसुंधरा राजे की टेड़ी नजर का शिकार होना पड़ा कि वे शेखावत के दामाद थे। इससे समझा जा सकता है कि वसुंधरा राजे किस शैली की राजनीतिज्ञ हैं। अपने इर्द गिर्द वे किसी को पनपने नहीं देतीं।
पिछले कुछ दिनों से भले ही इस प्रकार की अफवाह फैल रही है कि वसुंधरा को हटा कर माथुर को मुख्यमंत्री बनाया जाएगा, मगर फिलवक्त तो यही लगता है कि भाजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं में वसुंधरा का ही दबदबा है।
-तेजवानी गिरधर
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