तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, दिसंबर 15, 2024

क्या उम्र बढ़ाई जा सकती है?

मौत अंतिम सत्य है, यह हर आदमी जानता है, मगर मरना कोई नहीं चाहता। मौत से बचना चाहता है। रोज लोगों को मरते देखता है, मगर खुद के मरने की कल्पना तक नहीं करता। इसी से जुड़ा एक सत्य ये भी है कि हर व्यक्ति लंबी उम्र चाहता है। यही जिजीविषा उसे ऊर्जावान बनाए रखती है। दिलचस्प बात ये है कि जन्मदिन पर हमें पता होता है कि हमारी निर्धारित उम्र, यदि है तो, में एक और साल की कमी हो गई है, मगर फिर भी खुशी मनाते हैं। समझ ही नहीं आता कि किस बात की खुशी मनाई जाती है? क्या इस बात की कि इसी दिन हम इस जमीन पर पैदा हुए थे? पैदा तो लाखों-करोड़ों लोग हो रहे हैं, मर भी रहे हैं, उसमें नया या उल्लेखनीय क्या है? मेरा नजरिया ये है कि अगर वाकई हमने इस संसार में आ कर कुछ उल्लेखनीय किया है तो समझ भी आता है कि लोग हमारा जन्मदिन मनाएं, वरना सामान्य जिंदगी में जन्मदिन मनाने जैसा क्या है? या फिर ये भी हो सकता है कि तनाव भरी जिंदगी में जन्मदिन के बहाने हम खुशी का आयोजन करते हैं। इस मौके पर सभी लोग हमारी लंबी उम्र की दुआ करते हैं। सवाल ये उठता है कि क्या वाकई ऐसी दुआओं से उम्र लंबी होती है? यदि हम मानते हैं कि हर आदमी एक निर्धारित उम्र लेकर पैदा हुआ है तो फिर हमारी अधिक जीने की इच्छा या दुआ से क्या हो जाएगा? मन बहलाने से अधिक इसका क्या महत्व है? 

किसी व्यक्ति विशेष की उम्र बढ़ाई जा सकती है या नहीं, यह अलग विषय है, मगर यह सच है कि आयुर्वेद सहित जितने भी विज्ञान हैं, वे सार्वजनिक रूप से इस प्रयास में जुटे हैं कि निरोगी रहते हुए उम्र को बढ़ाया जाए। औसत आयु बढ़ी भी है। शिशु मृत्यु दर घटाई जा सकी है। विज्ञान मानता है कि आदमी 14 मैच्योरिटी पीरियड्स तक जी सकता है। एक मैच्योरिटी पीरियड में तकरीबन 20 से 25 साल माने जाते हैं। अर्थात आदमी अधिकतम 350 साल जी सकता है। यह एक बेहद आदर्श स्थिति है। हालांकि हमारी वैदिक परंपरा के अनुसार आदमी की उम्र एक सौ साल मानी जाती है, बावजूद इसके ऐसे अनेक लोग हैं जो एक सौ साल से भी तीस-पैंतीस साल अधिक जीये। आज भी हम सुनते हैं कि अमुख शहर में अमुक व्यक्ति एक सौ पच्चीस साल में उम्र में मरा। यानि शतायु की अवधारणा औसत आयु के रूप में की गई है। यही वजह है कि शतायु होने की दुआ की जाती है।

अब बात करते हैं इस पर कि क्या हम अपनी आयु को बढ़ा सकते हैं? यह एक मौलिक तथ्य है कि अमूमन आदमी की मौत किसी बीमारी की वजह से होती है। या फिर बूढ़े होने के कारण शरीर के विभिन्न अंगों के शिथिल होने पर आदमी अंततरू मृत्यु को प्राप्त हो जाता है। यदि स्वास्थ्य बरकरार रखा जा सके या बुढ़ापे को रोका जा सके तो और अधिक जीया जा सकता है। 

विज्ञान मानता है कि उम्र बढऩे के साथ सेंससेंट सेल बढ़ते हैं। यदि इनको शरीर से हटाया जा सके तो आयु को बढ़ाया जा सकता है। केवल इतना ही काफी नहीं है। उसके लिए यह भी जरूरी है कि विशेष प्रकार का प्रोटीन, जो स्वस्थ सेल में होता है. वह शरीर में बढ़ाया जाए।

धरातल कर सच ये है कि लगभग पचास साल के बाद अमूमन ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कैंसर जैसी बीमारियां घेरने लगती हैं। हार्ट अटैक व ब्रेन हैमरेज के कारण अचानक मौत हो जाती है। इन बीमारियां से बचने के लिए आदर्श जीवन पद्धति अपनाने की सीख दी जाती है। शुद्ध जलवायु पर जोर दिया जाता है। शुद्ध जल का पान करने की सलाह दी जाती है, क्योंकि लगभग 70 प्रतिशत रोग जल की अशुद्धता से ही होते हैं। इसी शुद्ध वायु की भी महिमा है। वायु प्रदूषण से बचने को कहा जाता है। प्राणायाम करने को कहा जाता है। अच्छी नींद भी स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक मानी जाती है। अच्छे स्वास्थ्य के लिए ध्यान की भी महिमा बताई गई है। 

ध्यान की बात आई तो एक बहुत महत्वपूर्ण बात याद आ गई। आपने सुना होगा कि अमुक ऋषि डेढ़ सौ साल जीये। तीन सौ साल तक जीने की भी किंवदंतियां है। वह कैसे संभव हो सका? जानकारों का मानना है कि भले ही हमारी तथाकथित निर्धारित उम्र वर्षों में गिनी जाती हो, मगर सच ये है कि जन्म के समय ही यह तय हो जाता है कि अमुक व्यक्ति का शरीर कितनी सांसें लेकर मृत्यु को प्राप्त होगा। अर्थात सांस लेने व छोडऩे की अवधि को बढ़ा कर भी उम्र बढ़ाई जा सकती है। जैसे मान लो हम एक मिनट में दस बार सांस लेते हैं, लेकिन यदि एक मिनट में एक ही बार सांस लें तो हमने नौ सांसें बचा लीं। यानि हमारी उम्र नौ सांस बढ़ गई। प्राणायाम में सांस को बाहर या भीतर रोका जाता है। इन दोनों प्रक्रियाओं के पृथक-पृथक लाभ हैं, मगर दोनों में ही एक लाभ ये भी होता है कि सांसों का बचाव हो जाता है व उतनी ही उम्र बढ़ जाती है। हमारे ऋषि-मुनियों-योगियों ने प्राणायाम से ही अपनी उम्र बढ़ाई है। आपको पता होगा कि कछुए व व्हेल मछली की उम्र बहुत अधिक होती है, उसका कारण ये है कि उनकी श्वांस लेने और छोडऩे की गति आदमी से बहुत कम है। वृक्षों में पीपल व बड़ के साथ भी ऐसा ही है। उनकी सांस की गति काफी धीमी है, इसी कारण उनकी उम्र अधिक होती है।

कुल जमा निष्कर्ष ये निकलता है कि प्रकृति हमारी उम्र की गणना दिनों या वर्षों में नहीं करती, बल्कि वह उसका निर्धारण सांसों की गिनती से करती है। योगी बताते हैं कि जब भी हम सांस को रोकते हैं तो उस अवधि में समय स्थिर हो जाता है। रुक जाता है। अर्थात भौतिक उपायों के अतिरिक्त यदि हम नियमित प्राणायाम करें तो अपनी उम्र को बढ़ा सकते हैं।

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