चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद इसरो प्रमुख सीवन की पीठ पर हाथ रख कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का यह कहना कि विज्ञान में कभी असफलतायें नहीं होती, विज्ञान में सिर्फ प्रयोग और प्रयास किये जाते हैं, बिलकुल सही है। ऐसा करके उन्होंने न केवल इसरो के वैज्ञानिकों को निराश न होने की सीख दी है, अपितु हौसला अफजाई का काम किया है। प्रधानमंत्री रूप में उनका यह रुख बेशक सराहनीय है। मगर दुर्भाग्य से हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जहां हर चीज को राजनीति से जोड़ कर देखा जाने लगा है। हर सफलता-अफलता के साथ मोदी का नाम जोड़ा जा रहा है। चूक तकनीकी की है, मगर उसे मोदी भक्तों ने अपने दिल पर ले लिया है। अरे भाई, मोदी को असफल कह कौन रहा है? समझ नहीं आता कि वे आखिर किस मानसिकता से गुजर रहे हैं?
सीधी से बात है कि हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी ईमानदारी व मेहनत से काम किया, उसमें वे तनिक विफल हो गए तो इसमें मोदी का क्या दोष है? इसे मोदी से जोड़ कर देखना ही बेवकूफी है। अगर जिम्मेदार ठहराया जाना जरूरी हो तो वो हैं, हमारे वैज्ञानिकों की टीम, जिससे कहीं चूक रह गई होगी। या ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपरिहार्य गड़बड़ी हो गई होगी। जानबूझ कर तो किसी ने लापरवाही की नहीं होगी। कम से कम इस मामले में प्रधानमंत्री तो कत्तई जिम्मेदार नहीं हैं। यह एक वैज्ञानिक प्रयोग था, जो कि किसी चूक की वजह से कोई और प्रधानमंत्री होता तो भी विफल हो सकता था। इसमें मोदी है तो मुमकिन है, वाला राजनीतिक जुमला लागू नहीं होता।
चूंकि यह मामला ऐसा था ही नहीं कि मोदी की आलोचना की जाती, लिहाजा विपक्ष की ओर से कोई प्रतिक्रिया आई भी नहीं। सोशल मीडिया पर किसी इक्का-दुक्का ने मसखरापन किया हो अलग बात है। शायद उसी पर एक वाट्स ऐपिये ने प्रतिक्रिया दी कि भारत में कुछ लोग मोदीजी की गलती का इंतजार ऐसे करते हैं, जैसे ढ़ाबे के बाहर बैठा कुत्ता जूठी प्लेट का इंतजार करता है। मगर सवाल उठता है कि इस मामले में मोदी जी गलती है ही कहां?
पता नहीं ये नेरेटिव कैसे हो गया है कि देश के हर मसले के केन्द्र में मोदी को रख दिया जाता है। एक प्रतिक्रिया देखिए:-
चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद जहां पूरा देश इसरो के साथ खड़ा है, वहीं कुछ टुच्चे कांग्रेसी इसमें मोदी जी को कोसने का मौका ढूंढ़ रहे हैं। ये लोग वही हैं, जो अपने भाई की भी मौत पर सिर्फ इसलिए खुश होते है कि चलो भाई मरा तो गम नहीं, कम से कम भाभी तो विधवा हुई।
दूसरी प्रतिक्रिया देखिए:- चंद्रयान की सफलता या असफलता को मोदी से जोड़ कर देखने वाले लोग मात्र मनोरोगी ही हो सकते हैं। इसरो के लिए केंद्र में बैठी सरकार मात्र इतने ही मतलब की है कि वो उनके किसी प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग करने में दिलचस्पी दिखाती है या नहीं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। यह प्रतिक्रिया सटीक व सही है। मगर सवाल उठता है कि चंद्रयान की असफलता को मोदी से जोड़ कर देख कौन रहा है?
कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, जो इसरो की हौसला अफजाई करती हैं। यदि ये भी किसी साइलेंट प्रोजेक्ट के तहत एक मुहिम की तरह चलाई जा रही हैं तो भी कोई गिला नहीं।
यथा-
चंद्रयान 2 की कुल लागत लगभग 900 करोड़। देश मे 100 करोड़ देशभक्त हैं। सिर्फ 9-9 रुपये हिस्से में आये। इसरो हम आपके साथ हैं। फिर से जुट जाओ और फिर से चंद्रयान को तैयार करो। देशभक्त धन की कमी नहीं होने देंगे। भारतमाता की जय।
नासा ने ग्यारहवीं बार में सफलता हासिल की थी। ओर इसरो सिर्फ 2 बार में ही 99.99 प्रतिशत सफलता हासिल की है। बधाई हो इसरो।
जिस मिशन पर अमेरिका ने 100 बिलियन डॉलर्स खर्च किये, वही काम हमारे वैज्ञानिकों ने महज 140 मिलियन में कर दिखाया।
मोदी जी से अनुरोध। इसरो के नाम पर एक अकाउंट खुलवा दो। 978 करोड़ तो बहुत छोटी रकम पड़ जाएगी। हमारे देश वासी उस अकाउंट को भर देंगे।
लाखों किलोमीटर का सफर तय करके मैं अपनी गाड़ी से गंतव्य तक तो पहुंचा, लेकिन मुझे पार्किंग नहीं मिली और मैं गाड़ी को पार्क नहीं कर सका तो क्या मेरा सफर अधूरा रह गया? तो क्या मैं गंतव्य तक नहीं पहुंचा? तो क्या मैं फेल हो गया? नहीं, बिलकुल नहीं।
आपकी बेटी या बेटा परीक्षा की कड़ी तैयारी कर 98 प्रतिशत अंक लाए और 2 प्रतिशत अंक नहीं ला पाए तो आप उसे सफल कहेंगे या असफल? बधाई हो। ये वैज्ञानिकों के साथ हर भारतवासी की सफलता है। यात्रा जारी रखिए।
इसरो के मिशन की असफलता अपनी जगह है, मगर उसमें भी मोदी के महिमामंडन को कैसे तलाशा जा रहा है, ये प्रतिक्रियाएं देखिए:-
आज से पहले कभी आपने देखा या सुना था कि कोई प्रधानमंत्री देर रात को अपने वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन के लिए उनके साथ बैठा हो?
36 घंटे की रूस यात्रा के बाद। जब चन्द्रयान का संपर्क टूटा, तो कोई और नेता होता तो वहां से चला जाता, पर मोदी जी वहीं रहे, बच्चों से बात की, वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया। ये भारत में एक अप्रत्याशित बात है। और ये सिर्फ मोदीजी ही कर सकते हैं।
चन्द्रयान-2 ने आज एक चमत्कारिक दृश्य दिखाया है। शीर्ष राजनीतिक और शीर्ष वैज्ञानिक पदों पर आसीन व्यक्ति के बीच हमने तीव्र भावनात्मक सम्बन्ध देखा। दोनों ऐसे गले मिले, मानो एकाकार हो गए हों। सत्ता ने विज्ञान की पीठ थपथपाई। सत्ता ने विज्ञान के कंधे सहलाए। सत्ता ने विज्ञान को भरोसा दिया।
सफलता के सौ बाप होते हैं, असफलता अनाथ होती है। प्रधानमंत्री मोदी भारत के रॉकस्टार हैं। रात भर खुद कंट्रोल रूम में बैठ मिशन देखा और मिशन के अंतिम फेस के असफल होने पर वह सारा दोष वैज्ञानिकों पर छोड़ भाग नहीं गए। उनका साथ दिया।
आज मोदी जी का इसरो को भाषण सुन के बहुत गर्व हुआ है, अपने आप पर कि मैंने देश की कमान एक अच्छे लीडर के हाथ मे दी है क्योंकि अच्छा लीडर वही होता है, जो अपनी टीम का मनोबल टूटने नहीं देता। अगर इसकी जगह कोई कांग्रेसी होता तो मुंह छुपाते घूमता। हमे आप पर गर्व है मोदी जी।
किसी कांग्रेसी ने प्रतिक्रिया दी हो या नहीं, मगर फिर भी कांग्रेस पर हमले जारी रहे। देखिए:-
70 साल हरामखोर अलगाववादियों, पत्थरबाजों, अब्दुल्ला-मुफ्ती फैमिली को मुफ्तखोरी कराने से तो चंद्रयान पर कम ही खर्च आया है।
आज असफल हुआ तो एक दिन सफल भी होगा। ये चंद्रयान-2 है यार कोई राहुल गांधी नहीं।
अगर कांग्रेस की सरकार होती तो विक्रम कभी क्रैश नहीं करता, क्योंकि तब विक्रम के प्रक्षेपण से पहले ही 2-4 वैज्ञानिकों को जहन्नुम प्रक्षेपित कर दिया जाता और मिशन का डब्बा बन्द हो जाता। फिर न विक्रम उड़ता, न क्रैश करता।
चंद्रयान लैंडर के संपर्क टूटने से वही लोग खुश हो रहे हैं, जो गलती से इस धरती पर पड़ोसियों की मदद से लैंड कर गए हैं।
चंद्रयान सफल नहीं हो पाया तो मोदी विरोधी हंस रहे हैं। अब इनको देख कर ये समझ नहीं आता है कि ये मोदी विरोधी हैं या देश विरोधी?
असल में मोदी मौके पर वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए गए थे। प्रतीत ये भी होता है कि अगर मिशन कामयाब हो जाता तो पूरे देश में मोदी के जयकारे से आसमान सिर पर उठा लिया जाता। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं। विपक्ष ने कुछ कहा ही नहीं फिर भी मोदी भक्तों को लगा कि कहीं मोदी को ट्रोल न कर दिया जाए, लिहाजा उन्होंने उन्हें डिफेंड करने की मुहिम छेड़ दी, जिसकी कत्तई जरूरत नहीं थी।
चूंकि इस संदर्भ में एक प्रतिक्रिया किसी मोदी विरोधी भी नजर आई, तो उसे भी शेयर किए देते हैं, ताकि सनद रहे:-
चन्द्रयान के जिन महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षणों में इसरो विज्ञानियों का सारा ध्यान अपने मिशन पर केंद्रित होना चाहिए था, तभी वहां मोदी द अंडरटेकर जा धमके। इसरो प्रमुख उनकी आगवानी को लपके। निष्ठावान वैज्ञानियों का ध्यान बंटा। बाहर से आए सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक वैज्ञानिकों की चेकिंग करनी शुरू कर दी। जरा सोचिए, अपने काम में व्यस्त वैज्ञानिकों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा होगा। भोंपू चैनल पहले ही भीषण मनोवैज्ञानिक दबाव क्रिएट कर चुके थे। तोपों की तरह कैमरे तने थे। अन्यथा मिशन सफल था। यान अपने अंतिम गन्तव्य को छू चुका था। उसे प्रचार प्रियता के हल्केपन ने असफल किया। जटिल ऑपरेशन कर रहे किसी सर्जन की बगल में कोई सेल्फी बाज जा खड़ा हो जाये, तो परिणाम क्या होगा?
-तेजवानी गिरधर
7742067000
सीधी से बात है कि हमारे वैज्ञानिकों ने पूरी ईमानदारी व मेहनत से काम किया, उसमें वे तनिक विफल हो गए तो इसमें मोदी का क्या दोष है? इसे मोदी से जोड़ कर देखना ही बेवकूफी है। अगर जिम्मेदार ठहराया जाना जरूरी हो तो वो हैं, हमारे वैज्ञानिकों की टीम, जिससे कहीं चूक रह गई होगी। या ऐसा भी हो सकता है कि कोई अपरिहार्य गड़बड़ी हो गई होगी। जानबूझ कर तो किसी ने लापरवाही की नहीं होगी। कम से कम इस मामले में प्रधानमंत्री तो कत्तई जिम्मेदार नहीं हैं। यह एक वैज्ञानिक प्रयोग था, जो कि किसी चूक की वजह से कोई और प्रधानमंत्री होता तो भी विफल हो सकता था। इसमें मोदी है तो मुमकिन है, वाला राजनीतिक जुमला लागू नहीं होता।
तेजवानी गिरधर |
पता नहीं ये नेरेटिव कैसे हो गया है कि देश के हर मसले के केन्द्र में मोदी को रख दिया जाता है। एक प्रतिक्रिया देखिए:-
चंद्रयान 2 से संपर्क टूटने के बाद जहां पूरा देश इसरो के साथ खड़ा है, वहीं कुछ टुच्चे कांग्रेसी इसमें मोदी जी को कोसने का मौका ढूंढ़ रहे हैं। ये लोग वही हैं, जो अपने भाई की भी मौत पर सिर्फ इसलिए खुश होते है कि चलो भाई मरा तो गम नहीं, कम से कम भाभी तो विधवा हुई।
दूसरी प्रतिक्रिया देखिए:- चंद्रयान की सफलता या असफलता को मोदी से जोड़ कर देखने वाले लोग मात्र मनोरोगी ही हो सकते हैं। इसरो के लिए केंद्र में बैठी सरकार मात्र इतने ही मतलब की है कि वो उनके किसी प्रोजेक्ट के लिए फंडिंग करने में दिलचस्पी दिखाती है या नहीं। इससे ज्यादा कुछ नहीं। यह प्रतिक्रिया सटीक व सही है। मगर सवाल उठता है कि चंद्रयान की असफलता को मोदी से जोड़ कर देख कौन रहा है?
कुछ ऐसी प्रतिक्रियाएं भी आई हैं, जो इसरो की हौसला अफजाई करती हैं। यदि ये भी किसी साइलेंट प्रोजेक्ट के तहत एक मुहिम की तरह चलाई जा रही हैं तो भी कोई गिला नहीं।
यथा-
चंद्रयान 2 की कुल लागत लगभग 900 करोड़। देश मे 100 करोड़ देशभक्त हैं। सिर्फ 9-9 रुपये हिस्से में आये। इसरो हम आपके साथ हैं। फिर से जुट जाओ और फिर से चंद्रयान को तैयार करो। देशभक्त धन की कमी नहीं होने देंगे। भारतमाता की जय।
नासा ने ग्यारहवीं बार में सफलता हासिल की थी। ओर इसरो सिर्फ 2 बार में ही 99.99 प्रतिशत सफलता हासिल की है। बधाई हो इसरो।
जिस मिशन पर अमेरिका ने 100 बिलियन डॉलर्स खर्च किये, वही काम हमारे वैज्ञानिकों ने महज 140 मिलियन में कर दिखाया।
मोदी जी से अनुरोध। इसरो के नाम पर एक अकाउंट खुलवा दो। 978 करोड़ तो बहुत छोटी रकम पड़ जाएगी। हमारे देश वासी उस अकाउंट को भर देंगे।
लाखों किलोमीटर का सफर तय करके मैं अपनी गाड़ी से गंतव्य तक तो पहुंचा, लेकिन मुझे पार्किंग नहीं मिली और मैं गाड़ी को पार्क नहीं कर सका तो क्या मेरा सफर अधूरा रह गया? तो क्या मैं गंतव्य तक नहीं पहुंचा? तो क्या मैं फेल हो गया? नहीं, बिलकुल नहीं।
आपकी बेटी या बेटा परीक्षा की कड़ी तैयारी कर 98 प्रतिशत अंक लाए और 2 प्रतिशत अंक नहीं ला पाए तो आप उसे सफल कहेंगे या असफल? बधाई हो। ये वैज्ञानिकों के साथ हर भारतवासी की सफलता है। यात्रा जारी रखिए।
इसरो के मिशन की असफलता अपनी जगह है, मगर उसमें भी मोदी के महिमामंडन को कैसे तलाशा जा रहा है, ये प्रतिक्रियाएं देखिए:-
आज से पहले कभी आपने देखा या सुना था कि कोई प्रधानमंत्री देर रात को अपने वैज्ञानिकों के प्रोत्साहन के लिए उनके साथ बैठा हो?
36 घंटे की रूस यात्रा के बाद। जब चन्द्रयान का संपर्क टूटा, तो कोई और नेता होता तो वहां से चला जाता, पर मोदी जी वहीं रहे, बच्चों से बात की, वैज्ञानिकों का हौसला बढ़ाया। ये भारत में एक अप्रत्याशित बात है। और ये सिर्फ मोदीजी ही कर सकते हैं।
चन्द्रयान-2 ने आज एक चमत्कारिक दृश्य दिखाया है। शीर्ष राजनीतिक और शीर्ष वैज्ञानिक पदों पर आसीन व्यक्ति के बीच हमने तीव्र भावनात्मक सम्बन्ध देखा। दोनों ऐसे गले मिले, मानो एकाकार हो गए हों। सत्ता ने विज्ञान की पीठ थपथपाई। सत्ता ने विज्ञान के कंधे सहलाए। सत्ता ने विज्ञान को भरोसा दिया।
सफलता के सौ बाप होते हैं, असफलता अनाथ होती है। प्रधानमंत्री मोदी भारत के रॉकस्टार हैं। रात भर खुद कंट्रोल रूम में बैठ मिशन देखा और मिशन के अंतिम फेस के असफल होने पर वह सारा दोष वैज्ञानिकों पर छोड़ भाग नहीं गए। उनका साथ दिया।
आज मोदी जी का इसरो को भाषण सुन के बहुत गर्व हुआ है, अपने आप पर कि मैंने देश की कमान एक अच्छे लीडर के हाथ मे दी है क्योंकि अच्छा लीडर वही होता है, जो अपनी टीम का मनोबल टूटने नहीं देता। अगर इसकी जगह कोई कांग्रेसी होता तो मुंह छुपाते घूमता। हमे आप पर गर्व है मोदी जी।
किसी कांग्रेसी ने प्रतिक्रिया दी हो या नहीं, मगर फिर भी कांग्रेस पर हमले जारी रहे। देखिए:-
70 साल हरामखोर अलगाववादियों, पत्थरबाजों, अब्दुल्ला-मुफ्ती फैमिली को मुफ्तखोरी कराने से तो चंद्रयान पर कम ही खर्च आया है।
आज असफल हुआ तो एक दिन सफल भी होगा। ये चंद्रयान-2 है यार कोई राहुल गांधी नहीं।
अगर कांग्रेस की सरकार होती तो विक्रम कभी क्रैश नहीं करता, क्योंकि तब विक्रम के प्रक्षेपण से पहले ही 2-4 वैज्ञानिकों को जहन्नुम प्रक्षेपित कर दिया जाता और मिशन का डब्बा बन्द हो जाता। फिर न विक्रम उड़ता, न क्रैश करता।
चंद्रयान लैंडर के संपर्क टूटने से वही लोग खुश हो रहे हैं, जो गलती से इस धरती पर पड़ोसियों की मदद से लैंड कर गए हैं।
चंद्रयान सफल नहीं हो पाया तो मोदी विरोधी हंस रहे हैं। अब इनको देख कर ये समझ नहीं आता है कि ये मोदी विरोधी हैं या देश विरोधी?
असल में मोदी मौके पर वैज्ञानिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए गए थे। प्रतीत ये भी होता है कि अगर मिशन कामयाब हो जाता तो पूरे देश में मोदी के जयकारे से आसमान सिर पर उठा लिया जाता। दुर्भाग्य से ऐसा हो नहीं। विपक्ष ने कुछ कहा ही नहीं फिर भी मोदी भक्तों को लगा कि कहीं मोदी को ट्रोल न कर दिया जाए, लिहाजा उन्होंने उन्हें डिफेंड करने की मुहिम छेड़ दी, जिसकी कत्तई जरूरत नहीं थी।
चूंकि इस संदर्भ में एक प्रतिक्रिया किसी मोदी विरोधी भी नजर आई, तो उसे भी शेयर किए देते हैं, ताकि सनद रहे:-
चन्द्रयान के जिन महत्वपूर्ण और संवेदनशील क्षणों में इसरो विज्ञानियों का सारा ध्यान अपने मिशन पर केंद्रित होना चाहिए था, तभी वहां मोदी द अंडरटेकर जा धमके। इसरो प्रमुख उनकी आगवानी को लपके। निष्ठावान वैज्ञानियों का ध्यान बंटा। बाहर से आए सुरक्षाकर्मियों ने सुरक्षा की दृष्टि से प्रत्येक वैज्ञानिकों की चेकिंग करनी शुरू कर दी। जरा सोचिए, अपने काम में व्यस्त वैज्ञानिकों के ऊपर क्या प्रभाव पड़ा होगा। भोंपू चैनल पहले ही भीषण मनोवैज्ञानिक दबाव क्रिएट कर चुके थे। तोपों की तरह कैमरे तने थे। अन्यथा मिशन सफल था। यान अपने अंतिम गन्तव्य को छू चुका था। उसे प्रचार प्रियता के हल्केपन ने असफल किया। जटिल ऑपरेशन कर रहे किसी सर्जन की बगल में कोई सेल्फी बाज जा खड़ा हो जाये, तो परिणाम क्या होगा?
-तेजवानी गिरधर
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