-तेजवानी गिरधर-
राजनीति में शुचिता व भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस का आदर्श स्थापित करने का लुभावना वादा कर कांग्रेस का तख्ता पलट करने वाली भाजपा कालाधन खत्म करने के लिए नोटबंदी लागू करने का उद्घोष करने वाली भाजपा सरकार के मुंह पर रिजर्व बैंक ने ताला जड़ दिया है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से अब यह पूरी तरह साफ हो गया है कि जिस मकसद से नोटबंदी लागू की गई, वह पूरी तरह से नाकामयाब हो गया। अफसोसनाक बात ये कि इसकी वजह से चौपट हुई अर्थव्यवस्था ने आम आदमी का जीवन इतना दूभर कर दिया है, जिससे वह आज तक नहीं उबर पाया है। रही सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी।
आपको याद होगा कि काला धन व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने इतनी बड़ी मुहिम चलाई कि तत्कालीन कांग्रेस नीत सरकार बुरी तरह से घिर गई। चूंकि अन्ना के पास कोई राजनीतिक विकल्प नहीं था, इस कारण तब भाजपा ने इस मुद्दे को तत्काल लपक लिया और नरेन्द्र मोदी की ब्रांडिंग के साथ सत्ता पर कब्जा कर लिया। सत्ता हासिल करने के लिए मोदी ने अब तक का सबसे बड़ा व लुभावना सपना दिखाया कि यदि काला धन समाप्त किया जाए तो हर भारतीय के बैंक खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा कराए जा सकते हैं। उसी काले धन को नष्ट करने के लिए मोदी ने यकायक बिना किसी कार्ययोजना के नोटबंदी लागू कर दी। पूरा देश हिल गया। करोड़ों लोग बैंकों के आगे भिखारियों की तरह लाइन में लग गए। कितनों की जान गई। हालात इतने बेकाबू हो गए कि सरकार नित नए आदेश जारी करने लगी, मगर समस्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गई। नकद राशि के अभाव में कई युवाओं की शादियां टल गईं। तरल धन की कमी के चलते निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों को उनका भुगतान तक नहीं कर पाए। हजारों लोग बेरोजगार हो गए। लघु उद्योग तो पूरी तरह से चौपट हो गए। सच तो ये है कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था पंगु हो गई थी। मौका देख कर बैंक कर्मियों ने भी जम कर लूट मचाई। समझा जाता है कि बैंकों इतिहास में पहली बार इस प्रकार कर खुला भ्रष्टाचार हुआ। बदतर हालात देख कर मोदी समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया कि अगर बैंक वाले बेईमानी पर नहीं उतरते तो नोटबंदी कामयाब हो जाती।
नोटबंदी लागू होते ही आम जनता की दुश्वारियां बढ़ीं तो हालात सामान्य होने के लिए पचास दिन की मोहलत मांगी। लोगों ने यह सोच कर सब्र रखा कि मोदी को एक बार काम करने का मौका दिया जाना चाहिए। आम आदमी परेशान तो था, मगर उसे खुशी थी कि मोदी पैसे वालों की आंतडिय़ां फाड़ कर काला धन लाने वाले हैं। मगर चंद दिन में ही यह अंदेशा हो गया था कि नोटबंदी बेकार होने वाली है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कहा था कि ढाई साल में 1.2 लाख करोड़ रु. कालाधन बाहर आया। 3-4 लाख करोड़ और आएगा। मगर हुआ ये कि 99.3 प्रतिशत पुराने नोट वापस आ चुके हैं। जो 10,720 करोड़ रु. नहीं आए, उन्हें भी सरकार पूरी तरह कालाधन नहीं मान रही।
इसी प्रकार मोदी का दावा था कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए नोटबंदी लागू की जा रही है, मगर हुआ ये कि पहले भ्रष्ट देशों में भारत 2016 में 79 नंबर पर था। अब 2017 में 81 पर पहुंच गया।
सरकार ने नोटबंदी की वजह से हो रही परेशानी से ध्यान बंटाने के लिए यह पैंतरा चला कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। यह बात लोगों के गले भी उतरी। मगर सच्चाई ये है कि यह जुमला मात्र ही रहा। तथ्य ये है कि 8 नवंबर 2015 से नवंबर 2016 तक 155 आतंकी घटनाएं हुईं। इसके बाद 2017 तक 184 व 31 जुलाई 2018 तक 191 घटनाएं हुईं।
यदि सरकार को कोई सफलता हासिल भी हुई तो ये कि 2016 के मुकाबले 2017 में डिजिटल पेमेंट की राशि 40 प्रतिशत तक बढ़ी है। जुलाई 2018 तक 5 गुणा बढ़ोतरी।
कुल मिला कर यह साबित हो चुका है कि नोटबंदी लागू करने की एवज में जो फायदे गिनाए गए थे, वे पूरी तरह से फ्लाप साबित हुए हैं। न तो आतंकवाद में कमी आई है और न ही भ्रष्टाचार कम हुआ है।
सवाल ये उठता है कि क्या रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के बाद सरकार आम जन से माफी मांगेगी?
राजनीति में शुचिता व भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टोलरेंस का आदर्श स्थापित करने का लुभावना वादा कर कांग्रेस का तख्ता पलट करने वाली भाजपा कालाधन खत्म करने के लिए नोटबंदी लागू करने का उद्घोष करने वाली भाजपा सरकार के मुंह पर रिजर्व बैंक ने ताला जड़ दिया है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट से अब यह पूरी तरह साफ हो गया है कि जिस मकसद से नोटबंदी लागू की गई, वह पूरी तरह से नाकामयाब हो गया। अफसोसनाक बात ये कि इसकी वजह से चौपट हुई अर्थव्यवस्था ने आम आदमी का जीवन इतना दूभर कर दिया है, जिससे वह आज तक नहीं उबर पाया है। रही सही कसर जीएसटी ने पूरी कर दी।
आपको याद होगा कि काला धन व भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने इतनी बड़ी मुहिम चलाई कि तत्कालीन कांग्रेस नीत सरकार बुरी तरह से घिर गई। चूंकि अन्ना के पास कोई राजनीतिक विकल्प नहीं था, इस कारण तब भाजपा ने इस मुद्दे को तत्काल लपक लिया और नरेन्द्र मोदी की ब्रांडिंग के साथ सत्ता पर कब्जा कर लिया। सत्ता हासिल करने के लिए मोदी ने अब तक का सबसे बड़ा व लुभावना सपना दिखाया कि यदि काला धन समाप्त किया जाए तो हर भारतीय के बैंक खाते में पंद्रह लाख रुपए जमा कराए जा सकते हैं। उसी काले धन को नष्ट करने के लिए मोदी ने यकायक बिना किसी कार्ययोजना के नोटबंदी लागू कर दी। पूरा देश हिल गया। करोड़ों लोग बैंकों के आगे भिखारियों की तरह लाइन में लग गए। कितनों की जान गई। हालात इतने बेकाबू हो गए कि सरकार नित नए आदेश जारी करने लगी, मगर समस्या सुरसा के मुंह की तरह बढ़ती ही गई। नकद राशि के अभाव में कई युवाओं की शादियां टल गईं। तरल धन की कमी के चलते निर्माण कार्य करने वाले मजदूरों को उनका भुगतान तक नहीं कर पाए। हजारों लोग बेरोजगार हो गए। लघु उद्योग तो पूरी तरह से चौपट हो गए। सच तो ये है कि देश की पूरी अर्थव्यवस्था पंगु हो गई थी। मौका देख कर बैंक कर्मियों ने भी जम कर लूट मचाई। समझा जाता है कि बैंकों इतिहास में पहली बार इस प्रकार कर खुला भ्रष्टाचार हुआ। बदतर हालात देख कर मोदी समर्थकों ने कहना शुरू कर दिया कि अगर बैंक वाले बेईमानी पर नहीं उतरते तो नोटबंदी कामयाब हो जाती।
नोटबंदी लागू होते ही आम जनता की दुश्वारियां बढ़ीं तो हालात सामान्य होने के लिए पचास दिन की मोहलत मांगी। लोगों ने यह सोच कर सब्र रखा कि मोदी को एक बार काम करने का मौका दिया जाना चाहिए। आम आदमी परेशान तो था, मगर उसे खुशी थी कि मोदी पैसे वालों की आंतडिय़ां फाड़ कर काला धन लाने वाले हैं। मगर चंद दिन में ही यह अंदेशा हो गया था कि नोटबंदी बेकार होने वाली है।
ताजा रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने कहा था कि ढाई साल में 1.2 लाख करोड़ रु. कालाधन बाहर आया। 3-4 लाख करोड़ और आएगा। मगर हुआ ये कि 99.3 प्रतिशत पुराने नोट वापस आ चुके हैं। जो 10,720 करोड़ रु. नहीं आए, उन्हें भी सरकार पूरी तरह कालाधन नहीं मान रही।
इसी प्रकार मोदी का दावा था कि भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए नोटबंदी लागू की जा रही है, मगर हुआ ये कि पहले भ्रष्ट देशों में भारत 2016 में 79 नंबर पर था। अब 2017 में 81 पर पहुंच गया।
सरकार ने नोटबंदी की वजह से हो रही परेशानी से ध्यान बंटाने के लिए यह पैंतरा चला कि नोटबंदी से आतंकवाद की कमर टूट जाएगी। यह बात लोगों के गले भी उतरी। मगर सच्चाई ये है कि यह जुमला मात्र ही रहा। तथ्य ये है कि 8 नवंबर 2015 से नवंबर 2016 तक 155 आतंकी घटनाएं हुईं। इसके बाद 2017 तक 184 व 31 जुलाई 2018 तक 191 घटनाएं हुईं।
यदि सरकार को कोई सफलता हासिल भी हुई तो ये कि 2016 के मुकाबले 2017 में डिजिटल पेमेंट की राशि 40 प्रतिशत तक बढ़ी है। जुलाई 2018 तक 5 गुणा बढ़ोतरी।
कुल मिला कर यह साबित हो चुका है कि नोटबंदी लागू करने की एवज में जो फायदे गिनाए गए थे, वे पूरी तरह से फ्लाप साबित हुए हैं। न तो आतंकवाद में कमी आई है और न ही भ्रष्टाचार कम हुआ है।
सवाल ये उठता है कि क्या रिजर्व बैंक की रिपोर्ट के बाद सरकार आम जन से माफी मांगेगी?