तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, अगस्त 10, 2017

कोई टपोरी ही श्रीकृष्ण को दुनिया का सबसे बड़ा डॉन बता सकता है

आगामी 15 अगस्त को महायोगी, सर्वगुणसंपन्न भगवान श्रीकृष्ण की जन्माष्ठमी है। उसे मनाने के लिए तैयारियां शुरू हो गई हैं। उसी सिलसिले में  कुछ सिरफिरे एक पोस्ट सोशल मीडिया पर कट-पेस्ट कर रहे हैं।
आइये, पहले वह पोस्ट देख लें:-
15-08-2017 तारीख को  दुनिया के सबसे
बड़े डॉन का बर्थडे है!

कोई ऐसा गुनाह नहीं, जो उन्होंने नहीं किया हो.....
जेल में जन्म.....
मां-बाप की हेराफेरी...
बचपन से लड़कियों का चक्कर.....
नाग देवता को भी मार दिया......
कंकर मार कर लड़कियों को छेडऩा....
16108 लफड़ा........
दो-दो बीवियां......
अपने मामू का मर्डर......
मथुरा से तड़ीपार.......
फिर भी भाई कभी पकड़े नहीं गए...
इसलिए तो उसे मैं भगवान् मानता हूं

जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं
जय श्रीकृष्ण

आप देखिए, भगवान श्रीकृष्ण की जय भी कर रहे हैं, उनके जन्म की शुभकामनाएं भी दे रहे हैं, यानि कि उनके प्रति श्रद्धा भी है, फिर भी कैसी उपमाएं दी हैं? निश्चित ही यह काम किसी टपोरी का है। उसे श्रीकृष्ण की लीलाओं में सांसारिक कृत्य नजर आ रहे हैं। अर्थात जैसा वह है, या होना चाहता है, वैसा ही श्रीकृष्ण को देख रहा है। जैसे हम मानव ईश्वर की कल्पना महामानव के रूप में करते हैं, ठीक वैसे ही टपोरी उसे महाटपोरी मान रहा है। नैतिकता का पतन देखिए कि वह ऐसा कह कर अपने कृकृत्यों को जायज करार दे रहा है। ...कि उसने किया या अब करे तो क्या हुआ, श्रीकृष्ण भी तो ऐसा करते थे। ऐसा भ्रष्ट बुद्धि की वजह से ही हो सकता है। मगर अफसोस जिस महान संस्कृति ही हम दुहाई देते हैं, हमारे जिन महापुरुषों की बदोलत भारत को विश्व गुरू मानते हैं, उसी संस्कृति में ऐसे लोग भी हैं, जो कुसंस्कृत होने का प्रमाण दे रहे हैं। ऐसा नहीं है कि उनकी श्रीकृष्ण के प्रति अश्रद्धा होगी, वे भी श्रीकृष्ण की मूर्ति के आगे वैसे ही नतमस्तक होते होंगे, जैसे आम श्रद्धालु, मगर उन्हें अपने ही भगवान की मजाक बनाने में तनिक भी शर्म नहीं आती। चलो, उनकी श्रद्धा न सही, मगर वे इतने बेखौफ हैं कि उन्हें अन्य की श्रद्धा का भी डर नहीं। ऐसा अन्य धर्मों में नहीं। चाहे मुसलमान हों या ईसाई, बौद्ध हों या जैन, किसी को भी अपने भगवान या ईष्ट के प्रति ऐसी घटिया टिप्पणी करते नहीं देखा होगा। अव्वल तो कोई ऐसा करता ही नहीं, खुदानखास्ता गलती से कर भी दे तो समझो उसकी खैर नहीं। मगर हिंदू धर्म को मानने वालों में ऐसे भ्रष्टबुद्धि लोग मौजूद हैं, जो कि न केवल बेहद शर्मनाक है, अपितु असहनीय है। केवल भगवान श्रीकृष्ण ही क्यों, जिनकी मति मारी हुई है, वे भगवान राम, माता सीता, हनुमान जैसे देवी देवताओं तक पर चुटकले बनाते हैं। राजनीतिक कारणों से महात्मा गांधी पर भी अभद्र टिप्पणियां करने से लोग बाज नहीं आते। और तो और गणेश चतुर्थी, नवरात्र आदि के जुलूस या कावड़ यात्रा के दौरान मद्यपान व अन्य मादक पदार्थों का सेवन किए हुए लोग मिल जाएंगे। आस्था व नैतिकता का यह हृास बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है। फिर भी यदि हम फिर विश्व गुरू बनने का ख्वाब देखते हैं तो यह कोरी कल्पना ही है।
ऐसा नहीं कि टपोरियों की पोस्ट को लेकर सज्जन चिंतित नहीं, वे खूब अपील करते हैं कि जन्माष्टमी आ रही है, सभी से विनम्र निवेदन है कि भगवान श्रीकृष्ण के बारे में उलटे-सीधे मेसेज पोस्ट न करें और कोई भी गलत पोस्ट करके धर्म का अपमान न करे, मगर उनकी सुनता कौन है?
-तेजवानी गिरधर
7742067000

बुधवार, अगस्त 02, 2017

साधु-संत भी लोकेषणा से मुक्त नहीं

इसमें कोई शक नहीं कि साधु-संत हमारे लिए सम्माननीय हैं। वे समाज का मार्गदर्शन करते हैं और आमजन में धर्म के प्रति आस्था कायम रखे हुए हैं और उसी वजह से इस अर्थ प्रधान व मतलबी दुनिया में संस्कार व नैतिक जीवन मूल्य मौजूद हैं, मगर वे भी वैसी ही लोकेषणा रखते हैं, जैसी कि हम लोग रखते हैं। इसका नजारा हाल ही जयपुर में देखने को मिला, जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के आगमन पर साधु-संतों का सम्मेलन किया गया।
इस मौके पर अमित शाह व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सहित अन्य नेताओं ने उनसे आशीर्वाद लिया। न केवल मीडिया ने ऐसे क्षणों को कैमरे में कैद कर यह दिखाया कि देखो किस प्रकार सत्ताधीश साधुओं के आगे नतमस्तक होते हैं, अपितु कुछ संतों ने भी अमित शाह व वसुंधरा को आशीर्वाद देते हुए खींचे गए फोटो सोशल मीडिया पर जारी किए। मीडिया की तो चलो ड्यूटी है कि वह समाज में जो कुछ चल रहा है, उसकी रिपोर्ट करे, मगर यदि संत भी ऐसे फोटोज का प्रचार-प्रसार करते हैं, तो इसका अर्थ ये है कि वे भी हमारी तरह लोकेषणा से मुक्त नहीं हैं। लोकेषणा भी ऐसी कि देखो कैसे सत्ता के शिखर पर बैठे नेता हमारे आगे शीश नवा रहे हैं। यानि कि जितना बड़ा नेता आशीर्वाद ले रहा है, उतना ही संत का स्टेटस बढ़ जाता है, कद बढ़ जाता है। अर्थात बड़े नेता को आशीर्वाद देना भी ब्रॉन्डिंग  के काम आता है। इसका अनुमान इस प्रकार लगाया जा सकता है कि भविष्य में वे ही फोटोज आप संतों के ड्राइंग रूप में टंगे मिलेंगे। उनके शिष्य भी ऐसे फोटोज का प्रचार-प्रसार करते हैं कि देखो, अमुक बड़ा नेता हमारे गुरू के आगे झुक रहा है।
इसके विपरीत जैसी कि हमारी संस्कृति है, वह यह दर्शाती है कि हमारे साधु-संत सभी प्रकार की एषणाओं से मुक्त हैं। वे इसी कारण हमारे लिए सम्मानीय हैं कि हम सभी तरह की एषणाओं से घिरे हुए हैं, जबकि हमारे आदर्श विरक्त हैं। उनके लिए छोटा-बड़ा एक समान है। सभी पर एक जैसी कृपा बरसाते हैं।
रहा सवाल राजनीतिज्ञों का तो वे इस कारण शीश झुकाते हैं क्यों कि या तो वाकई उनकी संतों के प्रति श्रद्धा है या फिर जनता को संदेश दे रहे होते हैं कि आप भी संतों का सम्मान करें। जबकि साइलेंट एजेंडा ये होता है जिस भी संत के आगे वे झुकें, उसके फॉलोअर्स में उनकी लोकप्रियता बढ़े। इसी कारण नेता लोग हर संत के आगमन पर भरी सभा में जा कर आशीर्वाद लेते हैं। यानि वोटों की खातिर यह प्रहसन किया जाता है। सच तो ये है कि कई बार संतों के ही शिष्य नेताओं से संपर्क कर उनसे आग्रह करते हैं कि उनके गुरू की सभा में आ कर आशीर्वाद लें। ऐसे शिष्यों में विशेष रूप से वे होते हैं, जो कि किसी न किसी राजनीतिक दल अथवा नेता के अनुयायी होते हैं और  ये जताते हैं कि देखो अमुक संत और नेता तक उनकी पहुंच है।
लब्बोलुआब नेताओं की लोकेषणा तो समझ में आती है, मगर साधु-संत भी इससे मुक्त नहीं तो इसका ये अर्थ है कि वे भी संसार में रस ले रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि नेता ने सफेद कपड़े पहन रखे हैं और साधु ने गेरुआ।  और चूंकि गेरुआ रंग हमारी श्रद्धा का प्रतीक है, इस कारण हम हर उस जगह झुक जाते हैं, जहां गेरुआ रंग होता है। मन में श्रद्धा हो न हो, हम भी इस वजह से झुक जाते हैं, क्योंकि हमारे इर्द-गिर्द अन्य झुक रहे होते हैं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000