हालांकि पिछले विधानसभा चुनाव के बाद राजस्थान के सभी बसपा विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने से बसपा को बड़ा भारी झटका लगा था, मगर अपने वोट बैंक के दम पर बसपा ने फिर से चुनाव मैदान में आने की तैयारियां शुरू कर दी हैं। बसपा सुप्रीमो मायावती को उम्मीद है कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए सतत प्रयत्नशील रहने के कारण बसपा के वोट बैंक में और इजाफा होगा, जिसे वे किसी भी सूरत में गंवाना नहीं चाहेंगी।
असल में बसपा ने अपना जनाधार तो बसपा के संस्थापक कांशीराम के जमाने में ही बना लिया था और कांगे्रेस से नाराज अनुसूचित जाति अनेक मतदाता बसपा के साथ जुड़ गए थे। स्वयं कांशीराम ने भी भरपूर कोशिश की, मगर अच्छे व प्रभावशाली प्रत्याशी नहीं मिल पाने के कारण उन्हें कुछ खास सफलता हासिल नहीं हो पाई। इसके बाद भी बसपा सक्रिय बनी रही और उसे पिछले चुनाव में छह विधायक चुने जाने पर उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई। मगर मायावती के उत्तरप्रदेश में व्यस्त होने के कारण वे राजस्थान में ध्यान नहीं दे पाईं। नतीजतन पार्टी के सभी छहों विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए और पार्टी को एक बड़ा झटका लग गया। असल में बसपा का मतदाता आज भी मौजूद है, मगर पार्टी को कोई दमदार राज्यस्तरीय चेहरा नहीं मिल पाने के कारण संगठनात्मक ढ़ांचा बन नहीं पा रहा। समझा जाता है कि उत्तरप्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद मायावती ने राजस्थान पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है। इस बार उन्हें कोई दमदार चेहरा यहां मिल पाता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर इतना जरूर तय है कि पार्टी पूरे जोश-खरोश से एक बार फिर चुनाव मैदान में जरूर उतरेगी। लक्ष्य यही है कि किसी भी प्रकार दस-बीस सीटें हासिल कर ली जाएं, ताकि बाद में सरकार के गठन के वक्त नेगासिएशन किया जा सके।
हालांकि अभी राजस्थान में बसपा की कोई गतिविधियां नहीं हैं, मगर उसका जनाधार तो है ही। वस्तुत: बसपा अपनी वोट बैंक की फसल को ठीक से काट नहीं पा रही है। बसपा का राजस्थान में कितना जनाधार है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में बसपा ने 199 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 53 सीटें ऐसी थीं, जिनमें बसपा ने 10 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। छह पर तो बाकायदा जीत दर्ज की और बाकी 47 सीटों पर परिणामों में काफी उलट-फेर कर दिया।
बेशक बसपा राजस्थान में अभी तीसरा विकल्प नहीं बन पाई है, मगर उसका ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। आपको ख्याल होगा कि बसपा ने राजस्थान में 1998 में खाता खोला था। तब पार्टी के 110 में से 2 प्रत्याशी बानसूर से जगत सिंह दायमा और नगर से मोहम्मद माहिर आजाद जीते थे। इसके बाद 2003 में 124 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, उनमें से बांदीकुई से मुरारीलाल मीणा और करौली से सुरेश मीणा विधानसभा पहुंचे। इसी प्राकर 2008 में 199 प्रत्याशियों में से 6 ने जीत दर्ज कर जता दिया कि बसपा धीरे-धीरे ही सही, तीसरे विकल्प की ओर बढ़ रही है। हालांकि उसके सभी विधायक कांग्रेस में चले गए, मगर इससे उसके वोट बैंक पर कोई असर पड़ा होगा, ऐसा समझा जाता है। प्रसंगवश बता दें कि 2008 में नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा, उदयपुरवाटी से राजेन्द्र सिंह गुढ़ा, बाडी से गिर्राज सिंह मलिंगा, सपोटरा से रमेश, दौसा से मुरारीलाल मीणा और गंगापुर से रामकेश ने जीत दर्ज की थी। इसके अतिरिक्त दस सीटों सादुलपुर, तिजारा, भरतपुर, नदबई, वैर, बयाना, करौली, महवा, खींवसर और सिवाना पर कड़ा संघर्ष करते हुए दूसरा स्थान हासिल किया था। वोटों के लिहाज से देखें तो पार्टी को सादुलपुर व करौली में चालीस हजार से ज्यादा वोट मिले। इसी प्रकार नदबई, खींवसर, हनुमानगढ़ व लूणी में तीस हजार से ज्यादा वोट मिले। तिजारा, भरतपुर, वैर, बयाना, महवा, सिवाना, करनपुर, रतनगढ़, सूरजगढ़, मंडावा, अलवर ग्रामीण, धौलपुर, मकराना, पीपलदा सूरतगढ़, संगरिया व हिंडौन में बीस हजार से ज्यादा वोट हासिल किए। कुल मिला आंकड़े यह साफ जाहिर करते हैं कि यहां बसपा का उल्लेखनीय जनाधार तो है, बस उसे ठीक मैनेज कर सीटों में तब्दील करने के लिए रणनीति बनाई जाए। जानकारी के अनुसार इस बार खुद मायावती इस ओर ध्यान दे रही हैं। उनकी रणनीति क्या होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
-तेजवानी गिरधर
असल में बसपा ने अपना जनाधार तो बसपा के संस्थापक कांशीराम के जमाने में ही बना लिया था और कांगे्रेस से नाराज अनुसूचित जाति अनेक मतदाता बसपा के साथ जुड़ गए थे। स्वयं कांशीराम ने भी भरपूर कोशिश की, मगर अच्छे व प्रभावशाली प्रत्याशी नहीं मिल पाने के कारण उन्हें कुछ खास सफलता हासिल नहीं हो पाई। इसके बाद भी बसपा सक्रिय बनी रही और उसे पिछले चुनाव में छह विधायक चुने जाने पर उल्लेखनीय सफलता हासिल हुई। मगर मायावती के उत्तरप्रदेश में व्यस्त होने के कारण वे राजस्थान में ध्यान नहीं दे पाईं। नतीजतन पार्टी के सभी छहों विधायक कांग्रेस में शामिल हो गए और पार्टी को एक बड़ा झटका लग गया। असल में बसपा का मतदाता आज भी मौजूद है, मगर पार्टी को कोई दमदार राज्यस्तरीय चेहरा नहीं मिल पाने के कारण संगठनात्मक ढ़ांचा बन नहीं पा रहा। समझा जाता है कि उत्तरप्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद मायावती ने राजस्थान पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है। इस बार उन्हें कोई दमदार चेहरा यहां मिल पाता है या नहीं, ये तो वक्त ही बताएगा, मगर इतना जरूर तय है कि पार्टी पूरे जोश-खरोश से एक बार फिर चुनाव मैदान में जरूर उतरेगी। लक्ष्य यही है कि किसी भी प्रकार दस-बीस सीटें हासिल कर ली जाएं, ताकि बाद में सरकार के गठन के वक्त नेगासिएशन किया जा सके।
हालांकि अभी राजस्थान में बसपा की कोई गतिविधियां नहीं हैं, मगर उसका जनाधार तो है ही। वस्तुत: बसपा अपनी वोट बैंक की फसल को ठीक से काट नहीं पा रही है। बसपा का राजस्थान में कितना जनाधार है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पिछले चुनाव में बसपा ने 199 प्रत्याशी मैदान में उतारे थे, जिनमें से 53 सीटें ऐसी थीं, जिनमें बसपा ने 10 हजार से अधिक वोट हासिल किए थे। छह पर तो बाकायदा जीत दर्ज की और बाकी 47 सीटों पर परिणामों में काफी उलट-फेर कर दिया।
बेशक बसपा राजस्थान में अभी तीसरा विकल्प नहीं बन पाई है, मगर उसका ग्राफ धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है। आपको ख्याल होगा कि बसपा ने राजस्थान में 1998 में खाता खोला था। तब पार्टी के 110 में से 2 प्रत्याशी बानसूर से जगत सिंह दायमा और नगर से मोहम्मद माहिर आजाद जीते थे। इसके बाद 2003 में 124 प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, उनमें से बांदीकुई से मुरारीलाल मीणा और करौली से सुरेश मीणा विधानसभा पहुंचे। इसी प्राकर 2008 में 199 प्रत्याशियों में से 6 ने जीत दर्ज कर जता दिया कि बसपा धीरे-धीरे ही सही, तीसरे विकल्प की ओर बढ़ रही है। हालांकि उसके सभी विधायक कांग्रेस में चले गए, मगर इससे उसके वोट बैंक पर कोई असर पड़ा होगा, ऐसा समझा जाता है। प्रसंगवश बता दें कि 2008 में नवलगढ़ से राजकुमार शर्मा, उदयपुरवाटी से राजेन्द्र सिंह गुढ़ा, बाडी से गिर्राज सिंह मलिंगा, सपोटरा से रमेश, दौसा से मुरारीलाल मीणा और गंगापुर से रामकेश ने जीत दर्ज की थी। इसके अतिरिक्त दस सीटों सादुलपुर, तिजारा, भरतपुर, नदबई, वैर, बयाना, करौली, महवा, खींवसर और सिवाना पर कड़ा संघर्ष करते हुए दूसरा स्थान हासिल किया था। वोटों के लिहाज से देखें तो पार्टी को सादुलपुर व करौली में चालीस हजार से ज्यादा वोट मिले। इसी प्रकार नदबई, खींवसर, हनुमानगढ़ व लूणी में तीस हजार से ज्यादा वोट मिले। तिजारा, भरतपुर, वैर, बयाना, महवा, सिवाना, करनपुर, रतनगढ़, सूरजगढ़, मंडावा, अलवर ग्रामीण, धौलपुर, मकराना, पीपलदा सूरतगढ़, संगरिया व हिंडौन में बीस हजार से ज्यादा वोट हासिल किए। कुल मिला आंकड़े यह साफ जाहिर करते हैं कि यहां बसपा का उल्लेखनीय जनाधार तो है, बस उसे ठीक मैनेज कर सीटों में तब्दील करने के लिए रणनीति बनाई जाए। जानकारी के अनुसार इस बार खुद मायावती इस ओर ध्यान दे रही हैं। उनकी रणनीति क्या होगी, यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा।
-तेजवानी गिरधर