तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

शनिवार, अप्रैल 04, 2020

बत्ती गुल : बेवकूफी या बुद्धिमत्ता

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैसे ही 5 अप्रैल की रात को 9 बजे 9 मिनट के लिए बिजली बंद करके दीये, मोमबत्ती या मोबाइल फोन की रोशनी में दुआ करने की अपील की है, पूरा सोशल मीडिया उनके समर्थन व विरोध की पोस्टों से अट गया है। कोई इसे उनकी अत्यंत बुद्धिमत्ता की संज्ञा दे कर अंक ज्योतिष के हिसाब से जस्टीफाई कर रहा है तो कोई इसे निरी मूर्खता बता रहा है। कुछ तो मानो तैयार ही बैठे थे, कि मोदी अपील करेंगे और वे तुरंत उनके समर्थन में धड़ाधड़ पोस्ट डालना शुरू करेंगे। खिल्ली भी खूब उड़ रही है। सवाल एक साथ पूरे देश में नौ मिनट के लिए बिजली बंद करने से इलैक्ट्रिसिटी ग्रिड सिस्टम के गड़बड़ा जाने को लेकर भी उठ रहे हैं। मोदी के समर्थक कह रहे हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ेगा, जबकि विरोधियों का मानना है कि असर पडऩे की पूरा अंदेशा है। दोनों के अपने-अपने तर्क हैं।
मोदी ने नजाने क्या सोच कर यह आयोजन करने का समय तय किया, ये वे ही जाने, मगर उसकी व्याख्या करने वालों को पता लग गया कि मोदी ने अमुक दिन व समय क्यों तय किया।
किशनगढ़ के जैन ज्योतिषाचार्य राहुल जैन पाटोदी ने इसकी व्याख्या की है कि मोदी ने 5 तारीख ही क्यों चुनी?
रविवार ही क्यों चुना?
9 बजे का वक्त ही क्यों चुना?
9 मिनट का समय ही क्यों चुना?
जब पूरा लॉक डाउन ही है तो शनिवार, शुक्रवार या सोमवार कोई भी चुनते क्या फर्क पड़ता? जिनको अंक शास्त्र की थोड़ी भी जानकारी होगी, उनको पता होगा कि 5 का अंक बुध का होता है। यह बीमारी गले व फेफड़े में ही ज्यादा फैलती है। मुख, गले, फेफड़े का कारक भी बुध ही होता है। बुध राजकुमार भी है। रविवार सूर्य का होता है। सूर्य ठहरे राजा साहब। दीपक या प्रकाश भी सूर्य का ही प्रतीक है।
9 अंक होता है मंगल.. सेनापति। रात या अंधकार होता है शनि का। अब रविवार 5 अप्रैल को, जो कि पूर्णिमा के नजदीक है, मतलब चन्द्र यानी रानी भी मजबूत, सभी प्रकाश बंद करके, रात के 9 बजे, 9 मिनट तक टॉर्च, दीपक, फ्लैश लाइट आदि से प्रकाश करना है। चौघडिय़ा अमृत रहेगी, होरा भी उस वक्त सूर्य का होगा। शनि के काल में सूर्य को जगाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। 9-9 करके सूर्य के साथ मंगल को भी जागृत करने का प्रयास है। मतलब शनि राहु रूपी अंधकार (महामारी) को उसी के शासनकाल में बुध, सूर्य, चन्द्र और मंगल मिल कर हराने का संकल्प लेंगे। जब किसी भी राज्य के राजा, रानी, राजकुमार व सेनापति सुरक्षित व सशक्त हैं, तो राज्य का कौन अनिष्ट कर सकता है।
एक और महाशय की अद्भुत वैज्ञानिक गणना देखिए:- एक मोमबत्ती 2 द्मष्ड्डद्य गर्मी देती है। एक मोबाइल फ्लैश 0.5 द्मष्ड्डद्य गर्मी, एक तिल के तेल का दिया 3 द्मष्ड्डद्य गर्मी देता है। मान लीजिए130 करोड़ में से 70 करोड़ लोगों ने भी इस आदेश का पालन किया और उसमें 35 करोड़ मोमबत्ती, 20 करोड़ फ्लैश और 15 करोड़ दिए जलाए गए तो 125 करोड़ द्मष्ड्डद्य गर्मी उत्पन्न होगी। ष्टशह्म्शठ्ठड्ड हृड्डड्डद्व ्यड्ड दरिंदा तो 10 द्मष्ड्डद्य गर्मी में ही मर जाता है। इसलिए 5 अप्रैल को सारे विषाणु मर सकते हैं। अगर हम मिल कर इस अभियान को सफल बनाएं। 5 अप्रैल को दीपावली समझ कर दिए अवश्य जलाएं।
अब आप मोदी के कदम की समाालोचना देखिए। एक ब्लॉगर, जो कि अमूमन मोदी के हर कदम की सराहना करते हैं, उन्होंने लिखा है कि 3 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने वीडियो संदेश के माध्यम से जो अपील की है, उसके मुताबिक यह बताने का पूरा प्रयास होगा कि देश नरेन्द्र मोदी के आव्हान पर एकजुट है। प्रधानमंत्री मोदी ने जो आव्हान किया है, उसका स्वागत भी हो रहा है, लेकिन सवाल उठता है कि पिछले दस दिनों से अपने घरों में कैद जनता आखिर प्रधानमंत्री से क्या सुनना चाहती थी? लोगों को उम्मीद थी कि लॉक डाउन में  राहत की कोई घोषणा होगी या फिर ऐसी जानकारी मिलेगी, जिससे मन को तसल्ली मिले, लेकिन 3 अप्रैल के प्रधानमंत्री के संदेश में ऐसा सुनने को नहीं मिला। माना कि पूरा देश कोरोना वायरस के प्रकोप की दहशत में है और सरकार हर संभव लोगों की जान बचाने का प्रयास कर रही है। दिहाड़ी मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए दानदाताओं पर निर्भर है तो यह मध्यमवर्गीय परिवार का भी जीना मुश्किल हो गया है। सबसे ज्यादा परेशानी व्यापारी वर्ग को हो रही है। फैक्ट्री, दुकान सहित होटल, रेस्टोरेंट आदि सब बंद पड़े हैं। जिन प्रगतिशील युवाओं ने बैंक से लोन लेकर कारोबार शुरू किया था, उनकी स्थिति तो मरने जैसी है।  लोग अब प्रधानमंत्री अथवा किसी राज्य के मुख्यमंत्री से सिर्फ राहत की बात सुनना चाहते हैं। सत्ता में बैठे लोगों को परेशान लोगों की भावनाओं को समझना चाहिए।
एक अन्य लेखक ने लिखा है कि आज फिर मुझे लिखने पर विवश होना पड़ा। प्रधानमंत्री जी ने जो निर्णय लिया वह काबिले तारीफ है, लेकिन ताली बजाना, थाली बजाना, टॉर्च दिखाना, इस तरह की बेवकूफी की गुंजाइश अभी इस वक्त समाज में नहीं दिखाई देनी चाहिए। अभी समय सख्त कार्रवाई करने का है और पूरा देश और देश के लोग इस वक्त अपनी सरकारों  को बहुत उम्मीदों से देख रहे हैं।
एक विद्वान का कहना है कि दिया जलाना कोई टोटका नही है। प्रधानमंत्री जी ने अगर कहा है कि 5 तारिख को 9 बजे 9 मिनट के लिए दिया जलाना है, तो इसका एक कारण है। इस दिन आमद एकादशी है। जब मेघनाथ का वध नहीं हो पा रहा था तो इसी आमद एकादशी को भगवान राम ने घी के दीपक जला कर उर्जा पुंज का निर्माण किया था और मेघनाथ का वध किया था। इसलिए आप सभी दीपक जलाएं, टॉर्च, मोमबत्ती, मोबाइल जो भी सुविधा आपके पास है, वो जलायें और उर्जा पुंज का निर्माण करें।
जहां तक विद्युत सिस्टम पर असर पडऩे का सवाल है, भले ही ये कहा जा रहा हो कि इसका कोई असर नहीं पड़ेगा, मगर विशेषज्ञ मानते हैं कि असर तो पड़ेगा, मगर उपाय किए जाएंगे तो सुरक्षा भी की जा सकती है। जानकारी तो ये है कि जैसे ही इस मुद्दे पर सवाल उठाए गए, विद्युत व्यवस्था को मॉनीटर करने वाले विशेषज्ञों ने तुरंत वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग कर समस्या का समाधान करने पर चर्चा की। अर्थात समस्या को आ बैल मुझको मार की तरह न्यौता दे दिया गया। विशेषज्ञों दावा है कि अतिरिक्त निगरानी रखेंगे और स्थिति को कंट्रोल कर लेंगे। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या प्रधानमंत्री ने अपनी आदत के मुताबिक बिना विशेषज्ञों की राय लिए बिजली बंद करने की अपील जारी कर दी, जैसा नोटबंदी व जीएसटी के दौरान किया?
इस बीच एक दिलचस्प पोस्ट भी खूब वायरल हो रही है। वो ये कि दरअसल 6 अप्रैल भाजपा के स्थापना दिवस पर लॉक डाउन की वजह से भाजपा कोई बड़ी रैली या जनसभा नहीं कर सकती। इसलिये भाजपा ने पूर्व संध्या पर कोरोना के नाम पर दिवाली मनाने का फैसला किया है। लेकिन दिवाली मनाने का यह समय अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है, क्योंकि भारत समेत पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है। यह समय, उत्सव मनाने का नहीं बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने का है।
-तेजवानी गिरधर
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