तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, फ़रवरी 25, 2013

लो अब भाभड़ा ने भी बदला अपना सुर

vasu-bhabhadaअब जब कि प्रदेश के सारे वसुंधरा विरोधी भाजपा नेताओं को यह साफ दिख गया है कि वे ही पार्टी की वर्तमान और भविष्य हैं तो वे मौके की नजाकत देख कर अपना सुर बदलने लगे हैं। पहले वसुंधरा के धुर विरोधी वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवार ने अपना मूड, माइंड व सुर बदल कर उन्हें भावी मुख्यमंत्री स्वीकार किया और अब पुराने दिग्गज हरिशंकर भाभड़ा ने भी अपना सुर बदल कर न केवल उन्हें जीतने का आशीर्वाद दिया, अपितु यह भी कहा कि वे पहले भी वसुंधरा राजे के साथ थे, आज भी हैं और आगे भी साथ रहेंगे। 2008 के चुनाव के बाद हमारी वसुंधरा राजे से कभी कोई शिकायत नहीं रही। हमारी शिकायत तो पार्टी हाईकमान से थी। ज्ञातव्य है कि पार्टी में अपने राजनीतिक विरोधियों को मनाने की कवायद के तहत प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वसुंधरा राजे ने हाल ही जयपुर के मालवीय नगर में पूर्व उप मुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा से मिलने उनके आवास पर गईं। यहां वसुंधराराजे की भाभड़ा से पौने घंटे बातचीत हुई।
आपको याद दिला दें कि इससे पहले भास्कर के वरिष्ठ संवाददाता त्रिभुवन को एक साक्षात्कार में भाभड़ा ने कहा था कि अब भाजपा को भी कांग्रेस की तरह समझने लगे हैं। दोनों का अंतर कम हो गया। लोग भ्रमित हैं कि किसे वोट दें। पहले राजाओं का वर्चस्व था। अब पैसे और सत्ता के बल पर नए जागीरदार पैदा हो गए। उन्हीं की घणी-खम्मां हो रही है। अघोषित राजतंत्र है। अपने कुटुंब को आगे बढ़ाते हैं। टिकट भी उनको, पद भी उनको। सब पार्टियों में यही हाल है। जिस वसुंधरा के कारण आज वे खंडहर की माफिक हो गए हैं, उनके बारे में उनकी क्या धारणा रही, इसका खुलासा होता है उनके तब दिए इस बयान से हो जाता है कि जनता ने राजा-रानियों को एक मौका तो दिया, लेकिन कुछ नहीं किया तो दूसरा मौका नहीं दिया। साथ ही कहा था कि वसुंधरा बहुत काबिल हैं। उनकी हर विषय पर पकड़ है। उन्हें भाषा की कठिनाई नहीं है। वसुंधरा की प्रशासन पर पकड़ अच्छी थी, लेकिन कुछ एलीमेंट तो ऐसे होते ही हैं, जिन पर कोई कंट्रोल नहीं कर सकता! उन्होंने ये भी कहा था कि भाजपा और कांग्रेस को खतरा एक-दूसरे से नहीं, अपने आपके भीतर पैदा हो चुके विरोधियों से है। भाजपा के दोनों गुटों की अपनी महत्वाकांक्षाएं हैं। एक गुटबाजी करेगा तो दूसरा भी करेगा। एक गुटबाजी के लिए जिम्मेदार होता है, दूसरा तो प्रतिक्रिया करता है। जब उनसे पूछा गया कि इसके लिए जिम्मेदार कौन है तो यह कह कर मन की बात छिपाने की कोशिश करते हैं कि जिसने गुटबाजी शुरू की। जब पूछा गया कि किसने शुरुआत की तो यह कह कर बचने की कोशिश भी करते हैं कि यह खोज का विषय है। वसुंधरा के परिपेक्ष्य में उन्होंने कहा था कि हम मर्यादा रखते थे। शेखावत को नेता माना तो माना। उनसे हम आपत्ति रखते थे तो वे जायज चीजें तुरंत मान लेते थे। वे जिद्दी नहीं थे। इससे झगड़ा नहीं होता था।
जब ये पूछा गया था कि वसुंधरा राजे को मुख्यमंत्री पद का दावेदार मान कर चुनाव लडने के मुद्दे पर उनके क्या विचार हैं तो बोले थे कि जरूरी नहीं कि किसी को लोकतंत्र में चुनाव से पहले नेता घोषित किया जाए। किसी एक आदमी को नेता तब घोषित किया जाता है, जब उसका नाम घोषित होने से लाभ होता हो। यह गंभीर प्रश्न है कि नेता घोषित हो कि नहीं! यह विषय केंद्रीय चुनाव समिति तय करती है। वह फायदे और नुकसान देखे। . .भैरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री रहे, लेकिन उन्हें कभी मुख्यमंत्री घोषित थोड़े किया गया था। आज यह तो तय है कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? साथ ही जोड़ा कि आप बात तो लोकतंत्र की करते हैं तो किसी को मुख्यमंत्री पहले कैसे घोषित कर सकते हैं। आप चुने हुए विधायकों के अधिकार की अवहेलना कैसे कर सकते हैं। कई बार नेता घोषित करने के दुष्परिणाम भी होते हैं। महत्वाकांक्षाएं जब सीमा पार कर जाती हैं तो वे पार्टी के लिए घातक होती हैं। जब वसुंधरा की लोकप्रियता का पार्टी को लाभ मिलने का सवाल किया गया तो बोले कि भाजपा में टीम वर्क रहा है। कभी उन्होंने किसी व्यक्ति पर अपने आपको आश्रित नहीं किया।
कुल मिला कर भाभड़ा के हृदय परिवर्तन से यह साफ हो गया है कि वे धरातल के सच और हालात को समझ चुके हैं और वसुंधरा के आगे नतमस्तक हैं।
-तेजवानी गिरधर

वसुंधरा ने फिर शुरू की खंडहरों को सलामी की कवायद

vasu-kailashvasu-bhabhadaहालांकि प्रदेश भाजपा अध्यक्ष बनने और मुख्यमंत्री पद की दावेदार के रूप में स्थापित हो चुकी श्रीमती वसुंधरा जानती हैं कि अब अधिसंख्य पुराने नेता भी उनका नेतृत्व स्वीकार कर रहे हैं, फिर भी उनका सम्मान रखने की खातिर अब उनसे मिल कर नाराजगी को सदा के लिए समाप्त करने की कवायद में फिर जुट गई हैं। हालांकि इससे पहले भी उन्होंने यह अभियान चलाया था और पुराने नेताओं से मिल कर उनका दिल जीतने की कोशिश की थी, मगर राष्ट्रीय अध्यक्ष का मसला नहीं सुलझ पाने के कारण उसे स्थगित कर दिया था। अब जब कि उन्हें लगभग फ्री हैंड सा मिल गया है, वे पूरे जोश-खरोश के साथ अपने अभियान में फिर जुट गई हैं। इसका एक बड़ा फायदा ये हो रहा है कि एक ओर जहां नेताओं की नाराजगी दूर हो रही है, वहीं उनके वसुंधरा को भावी मुख्यमंत्री स्वीकार करने के बयानों से पार्टी स्तर पर मजबूती भी मिल रही है। इससे यह संदेश जा रहा है कि अब वसुंधरा की दावेदारी में कोई कसर बाकी नहीं रह गई है।
सबसे पहले उन्होंने अपने धुर विरोधी दिग्गज कैलाश मेघवाल को अपने निवास पर आमंत्रित कर गिले-शिकवे दूर किए तो मेघवाल ने भी उनको भावी मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने की ऐलान कर दिया। इसके बाद उन्होंने पूर्व उपमुख्यमंत्री हरिशंकर भाभड़ा के निवास स्थान पर जा कर उनकी आशीर्वाद लिया। इसके एवज में भाभड़ा ने पुरानी सारी बातें भूलते हुए कहा कि वे पहले भी वसुंधरा राजे के साथ थे, आज भी हैं और आगे भी साथ रहेंगे। जानकारी है कि वे जल्द ही कटे-कटे से चल रहे घनश्याम तिवाड़ी को भी मनाने की कोशिश करने वाली हैं।
vs1vs2ज्ञातव्य है प्रदेश भाजपा में सुलह से पहले भी वसुंधरा ने कुशलक्षेम पूछने के बहाने कोटा में बुजुर्ग नेताओं से मुलाकात की और इन नेताओं के अगले विधानसभा चुनाव में कामयाबी का आशीर्वाद मांगा था। उन्होंने वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं तक से भेंट की थी। तब पत्रकारों ने जब यह सवाल किया था कि इस दौरे के क्या मायने हैं तो उन्होंने कहा था कि राज को राज रहने दो। तब उन्होंने वरिष्ठ नेता पूर्व मंत्री के के गोयल, पूर्व सांसद रघुवीरसिंह कौशल, पूर्व केंद्रीय मंत्री भुवनेश चतुर्वेदी, जुझारसिंह और रामकिशन वर्मा के घर पहुंच कर उनकी कुशलक्षेम पूछी। वे साहित्यकार वयोवृद्ध भाजपा नेता गजेंद्रसिंह सोलंकी की कुशलक्षेम पूछने भी गई थीं। वरिष्ठ नेता भाभडा की कुशलक्षेम उन्होंने अपने इस दौरे में भी पूछी थी। वसुंधरा के इस दौरे को अगले विधानसभा चुनाव की तैयारी के लिए कूटनीति की जाजम बिछाने के रूप में भी देखा जा गया था।
-तेजवानी गिरधर