तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, जून 27, 2019

अफसोस कि पत्रकारिता के इतने निकृष्ट दौर का मैं गवाह हूं

गुुरुवार को एबीपी न्यूज चैनल पर चल रही एक बहस देखी। उसे देख कर बहस की एंकर रुबिका पर तो दया आई, मगर खुद आत्मग्लानी से भर गया। पत्रकारिता का इतना मर्यादाविहीन और निकृष्ट स्वरूप देख कर सहसा विश्वास ही नहीं हुआ कि एक प्रतिष्ठित न्यूज चैनल पर अनुभवहीन युवति को कैसे एंकर बना दिया गया है। अपने आप से घृणा होने लगी कि क्यों कर मैने इस पत्रकार जमात में अपनी जिंदगी बर्बाद कर ली। 
असल में बहस इस बात पर हो रही थी कि जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष कन्हैया कुमार पर पुलिस ने देशद्रोह के मामले में चार्जशीट पेश की है। ज्ञातव्य है कि तकरीबन तीन साल बाद यह चार्जशीट पेश की गई है। अब अदालत में बाकायदा मुकदमा चलेगा और वही तय करेगी कि कन्हैया कुमार देशद्रोही है या नहीं। पूरी बहस के दौरान एंकर रुबिका इस तरह चिल्ला चिल्ला कर टिप्पणियां कर रही थीं, मानो कन्हैया को देशद्रोही करार दे दिया गया है। अपने स्टैंड के पक्ष में वे उत्तेजित हो कर लगातार कुतर्क दे रही थीं।  उनका तर्क था कि चार्जशीट को बनाने में क्यों कि तीन साल लगे हैं, इसका मतलब ये है कि उसमें जो चार्ज लगाए गए हैं, वे सही हैं। उन्होंने यहां तक कह दिया कि एक देशद्रोही कैसे हीरो बन गया और सीपीआई ने उसे लोकसभा चुनाव का टिकट तक दे दिया। उन्होंने इस बात पर बहुत अफसोस जताया कि कोई देशद्रोही कैसे चुनाव लड़ सकता है? कन्हैया कुमार का पक्ष ले रहे एक राजनीतिक समीक्षक कह रहे थे कि किसी के खिलाफ चार्जशीट पेश होने पर आप उसे कैसे देशद्रोही कह सकती हैं, मगर रुबिका उनकी एक नहीं सुन रही थीं। उलटे उन्हें कन्हैया कुमार का अंधभक्त कह कर उन पर पिल पड़ीं। उनकी बॉडी लैंग्वेज ऐसी थी मानो वे ही सबसे बड़ी देशभक्त है और उनका जोर चले तो कन्हैया का पक्ष ले रहे पेनलिस्ट के कपड़े फाड़ दें।
दूसरी ओर जाहिर तौर पर कन्हैया कुमार के खिलाफ वकालत कर रही एक महिला वकील व भाजपा के प्रवक्ता रुबिका के सुर में सुर मिला रहे थे। मगर बहस में बुलाए गए जाने-माने वरिष्ठ पत्रकार अभय दुबे की रुबिका ने जो हालत की, उसे देख कर बहुत अफसोस हुआ कि वे क्यों कर एक नौसीखिया एंकर के सामने पैनलिस्ट बन कर गए। क्यों अपनी इज्जत का फलूदा बनवाने वहां पहुंचे? वे स्पष्ट रूप से कह रहे थे कि इस बहस को आप कोर्ट न बनाइये, यहां न तो कोई जज बैठा है और न ही कोई सबूत पेश किए जा रहे हैं। आप केवल चार्जशीट के आधार पर किसी को द्रेशद्रोही नहीं कह सकते, यह काम कोर्ट को करने दीजिए। यह सुन कर रुबिका को बहुत बुरा लगा कि वे जिस एजेंडे को चला रही हैं, उसी पर कोई कैसे सवाल खड़ा कर सकता है। वे और ज्यादा भिनक गईं। उन्होंने दुबे जी को बोलने ही नहीं दिया। सवाल ये भी कि एंकर केवल एंकर का ही धर्म क्यों नहीं पालती! पेनलिस्ट को अपनी अपनी राय देने दीजिए, दर्शक खुद फैसला कर लेगा। एकंर खुद ही पार्टी बन रही है, कमाल है।
मुझे तो पत्रकारिता की जो सीख दी गई है उसमें ये सिखाया गया है कि अगर कोई चोरी के आरोप में पकडा जाए तो उसे चोर न लिखें या कोई हत्या के आरोप में पकडा जाए तो उसे हत्यारा पकडा गया ये न लिखें. मगर आज के पत्रकारों को पत्रकारिता के मूलभूत नियम तक का ज्ञान नहीं है, उलटे वे चीख चीख कर पत्रकारिता के कायदों को तार तार कर रहे हैं।
इस बहस को देख कर मन वितृष्णा से भर गया कि आज मैं पत्रकारिता के कैसे विकृत स्वरूप का गवाह बन कर जिंदा हूं। हमने तो पत्रकारिता जी ली, जैसी भी जी, कोई बहुत बड़े झंडे नहीं गाड़े, मगर कभी मर्यादा व निष्पक्षता का दामन नहीं छोड़ा। आज दो-दो कौड़ी के पत्रकारों के हाथ में पत्रकारिता की कमान आ गई है।
सच तो ये है कि वर्तमान में पत्रकारिता का जो दौर चल रहा है, उसमें कोई टिप्पणी ही नहीं करनी चाहिए। कुछ कहना ही नहीं चाहिए। विकृत पत्रकारिता का राक्षस इतना बड़ा व शक्तिशाली हो गया है कि मेरे जैसे पत्रकार को जुबान सिल ही लेनी चाहिए। अपने आपको बहुत रोका, मगर नहीं रोक पाया। मेरी इस टिप्पणी से किसी का मन दुख रहा हो तो मैं क्षमाप्रार्थी हूं।
-तेजवानी गिरधर
7742067000

रविवार, जून 16, 2019

इन्हीं महारानी ने कभी बाबोसा को भी हाशिये पर खड़ा कर दिया था

ऐसी जानकारी है कि रविवार, 16 जनवरी को जयपुर में हुई प्रदेश भाजपा कार्यसमिति की बैठक में पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे की भूमिका अन्य नेताओं की तुलना में कमतर नजर आई। हालांकि वे अब राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दी गई हैं, मगर ऐसा प्रतीत हुआ, मानो वे हाशिये की ओर धकेली जा रही हों। उनमें वो जोश व जज्बा नजर नहीं आया, जैसा कि मुख्यमंत्री पद पर रहते देखा जाता था।
बड़े-बजुर्ग ठीक ही कह गए हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है। वसुंधरा की ताजा हालत कहीं न कहीं इस कहावत से मेल खाती है। ये वही वसुंधरा हैं, जो राजस्थान में सिंहनी की भूमिका में थीं। उनके इशारे के बिना प्रदेश भाजपा में पत्ता भी नहीं हिलता था। कुछ ऐसा ही राजस्थान का एक ही सिंह, भैरोंसिंह भैरोंसिंह का भी रुतबा रहा है। वे जब स्वयं उपराष्ट्रपति बन कर दिल्ली गए तो प्रदेश की चाबी वसुंधरा को सौंप गए, मगर वे जब रिटायर हो कर लौटे तो उनकी पूरी जमीन वसुंधरा ने खिसका ली थी। राजस्थान का यह सिंह अपने ही प्रदेश में बेगाना सा हो गया। कुछ माह तो घर से निकले ही नहीं। और जब हिम्मत करके बाहर निकले तो उनके कदमों में लौटने वाले भाजपाई ही उन्हें अछूत समझ कर उनसे दूर बने रहे। वसुंधरा का भाजपाइयों में इतना खौफ था कि वे जहां भी जाते, इक्का-दुक्का को छोड़ कर अधिसंख्यक भाजपाई उनके पास फटकते तक नहीं थे। वसुंधरा का आभा मंडल इतना प्रखर था कि उसके आगे संघ लॉबी के नेताओं की रोशनी टिमटिमाती थी। उन्होंने हरिशंकर भाभड़ा सरीखे अनेक नेताओं को खंडहर बता कर टांड पर रख दिया था। राजस्थान में संघ उनके साथ समझौता करके ही काम चला रहा था। एक बार टकराव बढ़ा तो वसुंधरा ने नई पार्टी ही बना लेने की तैयारी कर ली, नतीजतन हाईकमान को झुकना पड़ा।
जब 2014 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का दौर आया तो भी वे झुकने का तैयार नहीं हुईं। पूरे पांच साल खींचतान में ही निकले। विधानसभा चुनाव आए तो एक नारा आया कि मोदी से तेरे से बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं। बताया जाता है कि यह नारा संघ ने  ही दिया था। नतीजा सामने है। आज जब ये कहा जाता है कि भाजपा वसुंधरा के चेहरे के कारण हारी तो इसे समझना चाहिए कि इस चेहरे को बदनाम करने का काम भी भाजपाइयों ने ही किया। यदि ये कहा जाए कि मोदी के कहने पर संघ ने ही वसुंधरा को नकारा करार दिया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी, जबकि वे इतनी भी बुरी मुख्यमंत्री नहीं थीं। वस्तुत: मोदी जिस मिशन पर लगे थे, उसमें उनको एक भी क्षत्रप बर्दाश्त नहीं था। तो वसुंधरा को निपटा कर ही दम लिया।
जाहिर तौर पर सिंहनी वर्तमान में बहुत कसमसा रहीं होगी, मगर उनके मन में क्या चल रहा है, किसी को जानकारी नहीं है। जानकार मानते हैं कि अब भी वसुंधरा में दम-खम कम नहीं हुआ है, मगर मोदी का कद इतना बड़ा हो चुका है कि वसुंधरा का फिर से उठना नामुमकिन ही लगता है। वसुंधरा की तो बिसात ही क्या है, भाजपा के सारे के सारे दिग्गज नेता मोदी शरणम गच्छामी हो गए हैं। सच तो ये है कि मोदी ने भाजपा को हाईजैक कर लिया है। भाजपा कहने भर को भाजपा है, मगर वह अब अमित शाह के सहयोग से तानाशाह मोदी की सेना में तब्दील हो चुकी है। अगर वसुंधरा हथियार डाल देती हैं तो हद से हद किसी राज्य की राज्यपाल बनाई जा सकती हैं, मगर शायद उनकी इच्छा अब अपने बेटे दुष्यंत सिंह को ढ़ंग की जगह दिलाना होगी, मगर मोदी के रहते ऐसा मुश्किल ही है।
खैर। हालांकि वसुंधरा राजे की स्थिति अभी इतनी खराब नहीं हुई है, उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना कर इज्जत बख्शी गई है। उन्होंने शेखावत की जो हालत की थी, उससे से तो वे बेहतर स्थिति में ही हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से उनकी जो नाइत्तफाकी है, उसे तो देखते हुए यही लगता है कि वे भी उसी संग्रहालय में रख दी जाएंगी, जहां भाजपा के शीर्ष पुरुष लालकृष्ण आडवाणी व मुरली मनोहर जोशी को रखा गया है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000