तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, जून 26, 2016

क्या ये मोदी भक्तों की खिसियाहट है?

चीन के अड़ंगे की वजह से एनएसजी के मामले में भारत को मिली असफलता का मुद्दा इन दिनों गरमाया हुआ है। जाहिर तौर पर हर देशवासी को इसका मलाल है। मलाल क्या गुस्सा कहिये कि चीन की इस हरकत के विरोध में उसे सबक सिखाने के लिए चीन से आयातित सामान न खरीदने की अपीलें की जा रही हैं। इन सब के बीच कुछ भाजपा मानसिकता के लोग व्यर्थ ही खिसिया कर उन अज्ञात लोगों को लानत मलामत भेज रहे हैं, जो कि इस असफलता को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से जोड़ कर कथित रूप से जश्न मना रहे हैं।
सवाल ये उठता है कि आखिर भारत की इस असफलता पर कौन जश्न मना रहा है। ऐसा तो अब तक एक भी समाचार नहीं आया। हां, इस असफलता को मोदी की कूटनीतिक कमजोरी के रूप में जरूर गिनाया जा रहा है, वो भी इक्का-दुक्का नेताओं द्वारा, जो कि सामान्यत: हर विरोधी दल सत्तारूढ़ दल पर हमला करते हुए किया ही करता है। इसमें जश्न जैसा कुछ भी नहीं। फिर भी सोशल मीडिया पर मोदी के अनुयायी बड़ा बवाल मचाए हुए हैं। स्वाभाविक रूप से भारत की असफलता का दु:ख सभी को है। होना भी चाहिए। जब हम अदद क्रिकेट मैच में हार पर दुखी होते हैं, तो इस अहम मसले पर दुख होना लाजिमी है। मोदी भक्तों को कदाचित अधिक हो सकता है, क्योंकि वे ही इसे मोदी के चमत्कारिक व्यक्तित्व से जोड़ कर सफलता की पक्की संभावना जाहिर कर रहे थे। कदाचित उनका अनुमान था कि भारत को कामयाबी मिल जाएगी, जिसकी कि थोड़ी संभावना थी भी, तो वे सफलता मिल जाने पर मोदी का गुणगान करते हुए बड़ा जश्न मनाते। अब जब कि अपेक्षा के अनुरूप नहीं हो पाया तो वे खिसिया कर गैर भाजपाइयों पर हमला बोल रहे हैं। उनका आरोप है कि गैर भाजपाइयों को देश की तो पड़ी नहीं है, केवल मोदी की असफलता से खुश हैं। साथ ही वे ये भी जताने की कोशिश कर रहे हैं कि गैर भाजपाई देशभक्त नहीं है। देशभक्ति तो केवल भाजपाइयों का ही जन्मसिद्ध अधिकार है।
समझा जा सकता है कि यह स्थिति क्यों आई। न मोदी भक्त और कुछ मीडिया समूह फैसला होने से पहले ज्यादा उछलते और न ही असफल होने पर इतना मलाल होता। राजनीतिक अर्थों में इसे मोदी की कूटनीतिक असफलता ही माना जाएगा, हालांकि अंतरराष्ट्रीय मसलों में कई बार हमारे हाथ में कुछ नहीं होता। सफलता असलफलता चलती रहती है, उसको लेकर इतनी हायतौबा क्यों। अव्वल तो इसे किसी एक व्यक्ति अथवा सरकार की असफलता मात्र से नहीं जोड़ा जाना चाहिए। हां, इतना जरूर है कि अगर हमें सफलता हाथ लगती तो सोशल मीडिया पर मोदी को एक बार फिर भगवान बनाने की कोशिश की जाती।
बहरहाल, असफल होने पर पलट कर विरोधियों पर तंज कसना अतिप्रतिक्रियावादिता की निशानी है। मानो उन्होंने ही चीन को भडकाया हो। अब तक तो ये माना जाता रहा है कि भाजपा मानसिकता के लोग अन्य दलों के कार्यकर्ताओं की तुलना में अधिक प्रतिक्रियावादी होते हैं और उन्हें आलोचना कत्तई बर्दाश्त नहीं होती, अर्थात क्रिया होते ही तुरंत प्रतिक्रिया करते हैं, मगर ताजा मामले में तो क्रिया हुई ही नहीं थी, किसी ने जश्न नहीं मनाया, फिर भी वे कड़ी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। इसे क्या कहा जाए? इसके लिए क्या शब्द हो सकता है? पता नहीं। मगर इतना तय है कि ताजा मामले को केवल और केवल मोदी की प्रतिष्ठा से जोड़े जाने, जिसको कि बाद में भुनाया जाना था, असफल होने पर मोदी भक्तों को, सारे भाजपाइयों को शुमार करना गलत होगा, चुप बैठे गैर भाजपाइयों का मन ही मन जश्न मनाया जाना दिखाई दे रहा है।
रहा सवाल चीन की हरकत के विरोध में चीनी वस्तुओं को न खरीदने का तो यह विरोध का एक कारगर तरीका हो सकता है। बेशक अगर ऐसा किया जा सके तो वाकई चीन को सबक मिल सकता है, मगर ऐसा हो पाएगा, इसमें संदेह है। सच तो ये है कि हम भारतीयों के पास शाब्दिक देशभक्ति तो बहुत है, मगर धरातल पर वैसा जज्बा दिखाई नहीं देता। अगर यकीन न हो तो सोशल मीडिया पर चीनी सामान का विरोध करने वालों की निजी जिंदगी में तनिक झांक कर देख लेना, सच्चाई पता लग जाएगी कि क्या स्वयं उन्होंने चीनी सामान खरीदना बंद कर दिया है या फिर वे सोशल मीडिया पर केवल कॉपी पेस्ट का मजा लेते हुए देशभक्ति का इजहार कर रहे थे।
-तेजवानी गिरधर
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