तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

सोमवार, जनवरी 14, 2013

संघ लॉबी से कहीं ज्यादा खौफ है वसुंधरा राजे का

भले ही वर्चस्व की लड़ाई को लेकर संघ पृष्ठभूमि के कुछ दिग्गजों ने पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को घेर रखा हो, मगर पूरे राजस्थान की बात करें तो वसुंधरा का खौफ ज्यादा ही नजर आता है। यही वजह है कि जब संघ लॉबी के नेताओं पूर्व प्रदेशाध्यक्ष ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया, ओमप्रकाश माथुर, घनश्याम तिवाड़ी और रामदास अग्रवाल आदि ने राजस्थान प्रभारी कप्तान सिंह सोलंकी के सामने शक्ति प्रदर्शन के लिए प्रदेशभर के नेताओं को जयपुर बुलाया तो 38 में से केवल 4 जिलाध्यक्ष ही पहुंचे। वसुंधरा विरोधी लॉबी में माने जाने वाले कई जिला अध्यक्ष सहित अन्य नेता चुनावी साल में विवाद से बचने के लिए नहीं आए। यहां तक कि जयपुर जिलाध्यक्ष भी कन्नी काट गए। ऐसे में वसुंधरा लॉबी को यह कहने का मौका मिल गया है कि विरोधी लॉबी अपने आप को जितनी ताकतवर जता रही है, उतनी है नहीं। मात्र चार जिलाध्यक्षों सहित कुल डेढ़ दर्जन नेता ही वसुंधरा का विरोध कर रहे हैं।
असल में ताजा परिदृश्य ये है कि फिलवक्त वसुंधरा कुछ घिरी हुई हैं, मगर राजस्थान के सारे भाजपा नेता जानते हैं कि वसुंधरा को भले ही फ्री हैंड न मिले, लेकिन पलड़ा तो उनका ही भारी रहने वाला है। ऐसे में दिग्गज तो फिर भी टिकट हासिल कर लेंगे, मगर वे खुल कर वसुंधरा के विरोध में आ गए तो उन्हें टिकट मिलने में परेशानी आएगी। अधिसंख्य विधायक भी वसुंधरा के साथ इसी कारण हैं क्योंकि उन्हें फिर से टिकट चाहिए व टिकट वितरण में वसुंधरा की ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका होगी। इसके अतिरिक्त वे नेता भी वसुंधरा के साथ खड़े हैं, जो उनके राज में उपकृत हो चुके हैं।
उधर संघ लॉबी के दिग्गजों को अनुमान हो गया है कि वे वसुंधरा को तो कत्तई नहीं निपटा सकते, लिहाजा उन्होंने अपना रुख कुछ नरम कर लिया है और ये नया राग अलाप रहे हैं कि उन्हें नेता प्रतिपक्ष वसुंधरा राजे से नहीं, उनकी मंडली से परेशानी है। राजे अगर इस मंडली से मुक्त होकर सबको साथ लें तो किसी को कोई आपत्ति नहीं है। यानि खेमेबाजी संघनिष्ठ बनाम वसुंधरा राजे नहीं, बल्कि नवभाजपाइयों के बीच है। ज्ञातव्य है कि जहां ललित किशोर चतुर्वेदी, गुलाबचंद कटारिया, रामदास अग्रवाल, घनश्याम तिवाड़ी, महावीर प्रसाद जैन, ओम प्रकाश माथुर, सतीश पूनियां, मदन दिलावर, ओंकार सिंह लखावत आदि एकजुट हैं तो दूसरी तरफ वसुंधरा राजे वाले खेमे में किरण माहेश्वरी, नंदलाल मीणा, राजेंद्र सिंह राठौड़, दिगंबर सिंह, भवानी सिंह राजावत, सांवर लाल जाट आदि प्रमुख हैं। दोनों धड़े जानते हैं कि विधानसभा चुनाव को कम समय बचा है। विवाद जारी रहा तो कांग्रेस सरकार के खिलाफ बने माहौल का फायदा उठाने का मौका भाजपा के हाथ से निकल जाएगा, ऐसे में उन्हें किसी न किसी तरह एकजुट होना ही होगा। अब देखना ये है कि इस नूरा कुश्ती के बाद ऊंट किस करवत बैठता है।
-तेजवानी गिरधर

निदा फाजली को समझने केलिए अक्ल चाहिए होती है

मशहूर शायर निदा फाजली को आखिर खुल कर आरोप लगाना पड़ा कि मीडिया ने उनके बयान को तोड़ मरोड़ कर पेश किया है। यह विवाद हिन्दी की एक साहित्यिक पत्रिका को फाजली के भेजे पत्र के बाद शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने कहा था-अमिताभ को एंग्री यंग मैन की उपाधि से क्यों नवाजा गया। वह तो केवल अजमल कसाब की तरह गढ़ा हुआ खिलौना है। एक को हाफिज मोहम्मद सईद ने बनाया और दूसरे को सलीम जावेद ने गढ़ा। खिलौने को फांसी दे दी गई, लेकिन खिलौना बनाने वाले को पाकिस्तान में उसकी मौत की नमाज पढऩे खुला छोड़ दिया। जब बात का बतंगड़ बनाया गया तो निदा को सफाई देनी पड़ी कि उन्होंने कभी अमिताभ बच्चन की तुलना आतंकवादी अजमल कसाब से नहीं की। उन्होंने कभी अमिताभ को आतंकवादी नहीं कहा। मीडिया ने बयान को सनसनी फैलाने के लिये तोड़ मरोड़कर पेश किया और नया विवाद पैदा कर दिया। उन्होंने एंग्री यंग मैन की छवि के बारे में बयान दिया था, अमिताभ के बारे में नहीं। अमिताभ बेहतरीन कलाकार हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। हर कलाकार की तरह हालांकि उनकी भी सीमायें हैं।
वस्तुत: फाजली की बात में जो बारीकी है, उसे समझने के लिए अक्ल की जरूरत होती है, बहुत ज्यादा नहीं, थोड़ी सी, मगर ऐसा लगता है कि इलैक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े पत्रकार मैनेजमेंट के दबाव में अक्ल घर छोड़ कर आते हैं और महज सनसनी फैलाने के लिए बाल की खाल उधेड़ते हैं। निदा का चिंतन व कल्पना जिस स्तर की है, जब तक उस स्तर पर जा कर बात को नहीं समझा जाएगा, ऐसे ही विवाद पैदा होते रहेंगे। पत्रकारों का वह स्तर तो टीआपी बढ़ाने के दौर में कुंद कर दिया गया है। इस प्रकरण की तुलना अगर इत्र बेचने वाले गंधी और इत्र को चाटने के बाद उसे बेस्वाद बताने वाले गंवार से की जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। जब जब सुनार के बना हुए गहने को लुहार को सौंपा जाएगा, ऐसा ही होगा। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। इतनी तो निदा फाजली में अक्ल होगी ही, है ही कि अमिताभ की तुलना आतंकी अजमल कसाब से कैसे करेंगे, यह समझने के लिए अक्ल की जरूरत है। वे दरअसल उस करेक्टर की बात कर रहे हैं, जिसकी वजह से अमिताभ को एंग्री यंग मैन की उपाधि से नवाजा गया। समझा जा सकता है सत्तर के दशक में ही व्यवस्था के खिलाफ एक एंग्री यंग मैन पैदा किया गया था, जो कानून को ताक पर रख कर खुद की कानून बनाता है, खुद ही फैसले सुनाता है और खुद ही सजा देता है। उसी का सुधरा हुआ रूप आज 74 साल के अन्ना हजारे हैं। सच तो ये है आज अन्ना हजारे के दौर में व्यवस्था के खिलाफ गुस्सा उस जमाने से कहीं अधिक है। बेशक यह व्यवस्था के नाम पर फैली अव्यवस्था की ही उपज है। अन्ना हजारे अपने आप में कुछ नहीं, वे उसी अव्यवस्था की देन हैं। उसी अव्यवस्था से उपजे गुस्से को अन्ना ने महज दिशा भर दी है। आज अन्ना के दौर में भी सरकार पर जिस बेहतरी के दबाव बनाया गया, उसमें साफ इशारा था कि संसद में बैठे चोर-बेईमान सांसदों का बनाया कानून जनता को मंजूर नहीं, अब कानून सड़क पर आम जनता बनाएगी। निदा फाजली संभवत: इसी के इर्द गिर्द कोई बात कर रहे थे, मगर मीडिया ने तो सीधा अमिताभ व कसाब को खड़ा कर दिया। इसे सनसनी फैलाने की अतिरिक्त चतुराई माना जाए अथवा बुद्धि का दिवालियापन, इसका फैसला अब आम आदमी ही करे।
-तेजवानी गिरधर