भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने जैसे ही
अपने ब्लाग में बीजेपी : एक हब आफ होप शीर्षक से आलेख लिख कर अपनी ही
पार्टी की आलोचना की तो पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी के करीबी
अंशुमान मिश्रा ने आडवाणी को पत्र लिख कर रिटायर होने की सलाह दे डाली।
उन्होंने आडवाणी को सुषमा स्वराज, अरुण जेटली और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं
को मौका देने की सलाह देते हुए कहा कि देश को ए के हंगल नहीं, आमिर और
रणबीर कपूर की जरूरत है।
आइये जानते हैं कि ये अंशुमान मिश्रा हैं कौन? ये वे ही हैं जो पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव के दौरान चर्चा में आए थे। निर्दलीय के रूप में राज्यसभा पहुंचने की तमन्ना लिए अंशुमान को जब भाजपा ने यह कह कर समर्थन देने से इंकार कर दिया कि उसके विधायक झारखंड में वोट ही नहीं डालेंगे तो अंशुमान मिश्रा को अपना नामांकन वापस लेना पड़ा। इस पर वे नाराज हो गए और उन्होंने धमकी दी थी कि वे एक-एक करके सभी भाजपा नेताओं को नंगा करेंगे। सबसे पहला नंबर उन्होंने डा. मुरली मनोहर जोशी का लिया और आरोप लगाया कि 2जी घोटाले की जांच करते समय उसने कुछ उन कंपनियों के अधिकारियों से जोशी की मुलाकात करवाई थी, जो 2जी घोटाले के आरोपी थे। मतलब साफ है कि अंशुमान विरोधी उनको शाहिद बलवा का करीबी बता कर उसका राज्यसभा टिकट काट रहे थे, तो वही अंशुमान मिश्रा उन्हीं टूजी आरोपियों से भाजपा को शिकार करने में जुट गए। मिश्रा ने खुली चुनौती दे दी है कि जोशी के फोन रिकार्ड जांच लिये जाएं, सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। अंशुमान सिंह की इस हरकत पर समाचार विश्लेषकों का मानना था कि वे भाजपा के नए भस्मासुर साबित हो सकते हैं।
मीडिया यह पता लगाने में जुट गया था कि आखिर अंशुमान मिश्रा हैं कौन? बताया जाता है वे मूलत: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहनेवाले हैं। उनकी जड़ें उत्तर प्रदेश में ज्यादा गहरी हैं । राजनीति की एबीसीडी उन्होंने महर्षि महेश योगी के आश्रम ओहियो में सीखी। उन्होंने वहां जम कर तरक्की की। उनका दावा है कि विदेशों में रहने के दौरान वे ओवरसीज फ्रेंड्स आफ बीजेपी का काम भी देखते थे और भाजपा के लिए चंदा भी उगाहते थे। इस चंदा उगाही के कारण बकौल मिश्रा लालकृष्ण आडवाणी व डा. मुरली मनोहर जोशी सहित अनेक नेताओं के करीबी हो गए। मिश्रा का दावा है कि उसे ये सारे नेता उसे फोन करते थे। अंशुमान मिश्रा की पकड़ नरेन्द्र मोदी तक भी थी और 2011 में जब मोदी ने महात्मा मन्दिर में वाइब्रंट गुजरात का आयोजन किया था तो यह अंशुमान मिश्रा फ्रंट सीट के अतिथि थे।
पिछले विधानसभा चुनाव में गडकरी ने उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को अंशुमान मिश्र की प्रतिभा की जानकारी देते हुए कहा था ये हर तरह की मदद करेंगे। बताया जाता है कि अंशुमान ने इससे पहले पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर दबाव डाल कर न सिर्फ शीर्ष पदों पर नियुक्तियां करवाई, बल्कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ता गिरिजेश शाही का टिकट कटवा कर अपने भाई राजीव मिश्रा को टिकट दिलवा दिया। इस पर शाही बागी हो गए और उन्हें दूसरे नंबर पर 44687 वोट मिले, जबकि राजीव मिश्रा को 17442 वोट ही मिल पाए। यहां उल्लेखनीय है कि राज्यसभा चुनाव में भले ही पार्टी ने उनसे दूरी जहिर की मगर इससे पूर्व वे गडकरी के निर्देश पर पार्टी के जन संपर्क अभियान की अप्रत्यक्ष कमान संभाले रहे थे। गोरखपुर रैली में अंशुमान मिश्र गडकरी के साथ ही मंच पर भी मौजूद थे।
बहरहाल, हाल ही जब उन्होंने आडवाणी को इस्तीफे की सलाद दी है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि या तो उन्होंने ऐसा गडकरी के इशारे पर किया है या फिर गडकरी के प्रति अपनी वफादारी जाहिर करने के लिए उन्होंने ऐसा किया है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com
आइये जानते हैं कि ये अंशुमान मिश्रा हैं कौन? ये वे ही हैं जो पिछले दिनों राज्यसभा चुनाव के दौरान चर्चा में आए थे। निर्दलीय के रूप में राज्यसभा पहुंचने की तमन्ना लिए अंशुमान को जब भाजपा ने यह कह कर समर्थन देने से इंकार कर दिया कि उसके विधायक झारखंड में वोट ही नहीं डालेंगे तो अंशुमान मिश्रा को अपना नामांकन वापस लेना पड़ा। इस पर वे नाराज हो गए और उन्होंने धमकी दी थी कि वे एक-एक करके सभी भाजपा नेताओं को नंगा करेंगे। सबसे पहला नंबर उन्होंने डा. मुरली मनोहर जोशी का लिया और आरोप लगाया कि 2जी घोटाले की जांच करते समय उसने कुछ उन कंपनियों के अधिकारियों से जोशी की मुलाकात करवाई थी, जो 2जी घोटाले के आरोपी थे। मतलब साफ है कि अंशुमान विरोधी उनको शाहिद बलवा का करीबी बता कर उसका राज्यसभा टिकट काट रहे थे, तो वही अंशुमान मिश्रा उन्हीं टूजी आरोपियों से भाजपा को शिकार करने में जुट गए। मिश्रा ने खुली चुनौती दे दी है कि जोशी के फोन रिकार्ड जांच लिये जाएं, सारी सच्चाई सामने आ जाएगी। अंशुमान सिंह की इस हरकत पर समाचार विश्लेषकों का मानना था कि वे भाजपा के नए भस्मासुर साबित हो सकते हैं।
मीडिया यह पता लगाने में जुट गया था कि आखिर अंशुमान मिश्रा हैं कौन? बताया जाता है वे मूलत: उत्तर प्रदेश के कुशीनगर के रहनेवाले हैं। उनकी जड़ें उत्तर प्रदेश में ज्यादा गहरी हैं । राजनीति की एबीसीडी उन्होंने महर्षि महेश योगी के आश्रम ओहियो में सीखी। उन्होंने वहां जम कर तरक्की की। उनका दावा है कि विदेशों में रहने के दौरान वे ओवरसीज फ्रेंड्स आफ बीजेपी का काम भी देखते थे और भाजपा के लिए चंदा भी उगाहते थे। इस चंदा उगाही के कारण बकौल मिश्रा लालकृष्ण आडवाणी व डा. मुरली मनोहर जोशी सहित अनेक नेताओं के करीबी हो गए। मिश्रा का दावा है कि उसे ये सारे नेता उसे फोन करते थे। अंशुमान मिश्रा की पकड़ नरेन्द्र मोदी तक भी थी और 2011 में जब मोदी ने महात्मा मन्दिर में वाइब्रंट गुजरात का आयोजन किया था तो यह अंशुमान मिश्रा फ्रंट सीट के अतिथि थे।
पिछले विधानसभा चुनाव में गडकरी ने उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेतृत्व को अंशुमान मिश्र की प्रतिभा की जानकारी देते हुए कहा था ये हर तरह की मदद करेंगे। बताया जाता है कि अंशुमान ने इससे पहले पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी पर दबाव डाल कर न सिर्फ शीर्ष पदों पर नियुक्तियां करवाई, बल्कि पार्टी के पुराने कार्यकर्ता गिरिजेश शाही का टिकट कटवा कर अपने भाई राजीव मिश्रा को टिकट दिलवा दिया। इस पर शाही बागी हो गए और उन्हें दूसरे नंबर पर 44687 वोट मिले, जबकि राजीव मिश्रा को 17442 वोट ही मिल पाए। यहां उल्लेखनीय है कि राज्यसभा चुनाव में भले ही पार्टी ने उनसे दूरी जहिर की मगर इससे पूर्व वे गडकरी के निर्देश पर पार्टी के जन संपर्क अभियान की अप्रत्यक्ष कमान संभाले रहे थे। गोरखपुर रैली में अंशुमान मिश्र गडकरी के साथ ही मंच पर भी मौजूद थे।
बहरहाल, हाल ही जब उन्होंने आडवाणी को इस्तीफे की सलाद दी है तो अनुमान लगाया जा रहा है कि या तो उन्होंने ऐसा गडकरी के इशारे पर किया है या फिर गडकरी के प्रति अपनी वफादारी जाहिर करने के लिए उन्होंने ऐसा किया है।
-तेजवानी गिरधर
7742067000
tejwanig@gmail.com