प्रदेश की कथित अनुशासित पार्टी भाजपा समर्थित भारतीय मजदूर संघ अब तीन खंडों में विभाजित हो गया हैै। कहा जाता है कि यह वह संघ है, जो सरकारी कर्मचारियों को राष्ट्रीय विचारधारा से जोडऩे का काम करता है। धरातल का सच ये है कि राजनीतिक मायनों में यह भाजपा समर्थित है। यह सबसे पुराना एवं एक मात्र कर्मचारी संगठन है। प्रदेश के सरकारी विभाग, निगम और बोर्ड की कर्मचारी राजनीति में उक्त संगठन का रोल तो रहता ही है, वहीं विधानसभा और लोकसभा चुनावों में भी उक्त संघ भाजपा की लाइफ लाइन का काम करता आया है। मौजूदा समय में यह शक्ति तीन खंडों में खंड -खंड हो रही है। इसके पीछे कुछ नए तो कुछ पुराने कारण उभर कर आए हैं।
वस्तुत: 2008 के चुनावों में भारतीय मजदूर संघ ने भाजपा राजनीति में अपना दखल देते हुए 25 टिकट मांगे। उस वक्त टिकट नहीं दिए गए। कहीं न कहीं भाजपा की हार में यह स्थिति भी कारण बनी। भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ भामसं के प्रदेश अध्यक्ष महेश व्यास से इस्तीफा तक मांग लिया गया। व्यास भामसं के कद्दावर नेता तो थे ही साथ ही यह कर्मचारी हितों की मांगों के जरिए कांग्रेस सरकार पर हमला बोलने वाले अचूक बाण भी माने जाते थे। सचिवालय में पदस्थापित होने के कारण व्यास ने पूरे प्रदेश में अपना नेटवर्क पहले से ही जमा रखा था, इसी नेटवर्क के बूते पर उन्होंने जनवरी 2010 में अखिल राजस्थान कर्मचारी एवं मजदूर महासंघ का गठन कर लिया। यह संघ अब भामसं को प्रदेश के हर जिले में बराबर की टक्कर दे रहा है। इससे बीएमएस टूटने लगा है।
कुछ महीने पहले ही भाजपा ने एक और संगठन की नींव डाल दी। कर्मचारी राजनीति के जानकारों के मुताबिक यह संगठन जाने-अनजाने में भारतीय मजदूर संघ को ही क्षीण करने का काम कर रहा है। गैर सरकारी मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए भारतीय जनता मजदूर महासंघ की स्थापना की गई है, ताकि भाजपा के संस्कारों का प्रसार हो। अजमेर में इस संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र गोयल है। सुरेंद्र गोयल यूआईटी ट्स्टी और भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। अब तक भारतीय मजदूर संघ से कई प्राइवेट कर्मचारी और अन्य यूनियनें नाता बनाकर चलती थीं, मगर नए मजदूर महासंघ ने सभी को तोडऩा आरंभ कर दिया है। ऐसे में प्रदेश स्तर पर सरकारी विभागों से भामसं का वर्चस्व कमजोर होता जा रहा है। कर्मचारी भामसं और व्यास गुट में तो बंटे ही थे, अब मजदूर महासंघ के प्रवेश ने कर्मचारी और मजदूर वर्ग की शक्ति को बांट दिया है। भाजपा की यह शक्ति त्रिशंकु हो चली है। यदि इसे संतुलित नहीं किया गया तो, इसका परिणाम आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा पर पडऩा लगभग तय है।
-तेजवानी गिरधर
वस्तुत: 2008 के चुनावों में भारतीय मजदूर संघ ने भाजपा राजनीति में अपना दखल देते हुए 25 टिकट मांगे। उस वक्त टिकट नहीं दिए गए। कहीं न कहीं भाजपा की हार में यह स्थिति भी कारण बनी। भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष एवं राजस्थान राज्य कर्मचारी महासंघ भामसं के प्रदेश अध्यक्ष महेश व्यास से इस्तीफा तक मांग लिया गया। व्यास भामसं के कद्दावर नेता तो थे ही साथ ही यह कर्मचारी हितों की मांगों के जरिए कांग्रेस सरकार पर हमला बोलने वाले अचूक बाण भी माने जाते थे। सचिवालय में पदस्थापित होने के कारण व्यास ने पूरे प्रदेश में अपना नेटवर्क पहले से ही जमा रखा था, इसी नेटवर्क के बूते पर उन्होंने जनवरी 2010 में अखिल राजस्थान कर्मचारी एवं मजदूर महासंघ का गठन कर लिया। यह संघ अब भामसं को प्रदेश के हर जिले में बराबर की टक्कर दे रहा है। इससे बीएमएस टूटने लगा है।
कुछ महीने पहले ही भाजपा ने एक और संगठन की नींव डाल दी। कर्मचारी राजनीति के जानकारों के मुताबिक यह संगठन जाने-अनजाने में भारतीय मजदूर संघ को ही क्षीण करने का काम कर रहा है। गैर सरकारी मजदूरों एवं कर्मचारियों के लिए भारतीय जनता मजदूर महासंघ की स्थापना की गई है, ताकि भाजपा के संस्कारों का प्रसार हो। अजमेर में इस संघ के अध्यक्ष सुरेंद्र गोयल है। सुरेंद्र गोयल यूआईटी ट्स्टी और भारतीय मजदूर संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। अब तक भारतीय मजदूर संघ से कई प्राइवेट कर्मचारी और अन्य यूनियनें नाता बनाकर चलती थीं, मगर नए मजदूर महासंघ ने सभी को तोडऩा आरंभ कर दिया है। ऐसे में प्रदेश स्तर पर सरकारी विभागों से भामसं का वर्चस्व कमजोर होता जा रहा है। कर्मचारी भामसं और व्यास गुट में तो बंटे ही थे, अब मजदूर महासंघ के प्रवेश ने कर्मचारी और मजदूर वर्ग की शक्ति को बांट दिया है। भाजपा की यह शक्ति त्रिशंकु हो चली है। यदि इसे संतुलित नहीं किया गया तो, इसका परिणाम आने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा पर पडऩा लगभग तय है।
-तेजवानी गिरधर