भाजपा के निलंबित सांसद वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी पार्टी के लिए गले ही हड्डी बन गए प्रतीत होते हैं, जो न उगलते बनती है, न निगलते बनती है। हाल ही वे न केवल बिना बुलाए ही पार्टी संसदीय दल की बैठक में पहुंच गए, अपितु उन्होंने हंगामा भी किया, जिससे एकबारगी मारपीट की नौबत आ गई। उन्होंने आरोप लगाया कि पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को सही तरीके से नहीं उठाया। यहां तक कि पार्टी की कांग्रेस से मिलीभगत का गंभीर आरोप भी जड़ दिया। पार्टी अनुशासन को ताक पर रख कर उन्होंने नेतृत्व को चेतावनी भी दे दी कि उनका निलंबन वापस लिया जाए या उन्हें पार्टी से निकाल दिया जाए। अपने आप को केडर बेस पार्टी बताने वाले राजनीतिक दल में कोई इस हद तक चला जाए और फिर भी उसके खिलाफ कार्यवाही करने पर विचार करना पड़े या संकोच हो रहा हो तो यह सवाल उठना लाजिमी ही है कि आखिर जेठमलानी में ऐसी क्या खास बात है कि पार्टी हाईकमान की घिग्घी बंधी हुई है?
पार्टी के नेता उनसे कितने घबराए हुए हैं, इसका अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि एक तो निलंबन के बाद भी उन्हें बैठक में आने से नहीं रोका गया? इतना ही नहीं उन्हें बोलने का मौका भी दिया गया। यदि इसके लिए पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र की दुहाई दी जाती है और यह कह कर आंखें मूंदी जाती हैं कि उन्हें भी अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया, तो इस सवाल का जवाब क्या है कि पार्टी के वजूद को ही चुनौती देने के बाद भी उनके खिलाफ कार्यवाही करने में संकोच क्यों हो रहा है?
ज्ञातव्य है कि जनवरी में पार्टी के खिलाफ बयानबाजी करने पर उन्हें निलंबित कर दिया था, इस कारण उन्हें संसदीय दल की बैठक में नहीं बुलाया गया था। बावजूद इसके बाद भी वे बैठक में शामिल हो गए।
यह पहला मौका नहीं है कि वे पार्टी नेताओं का मुंह नोंच रहे हैं, इससे पहले भी जब उन्होंने पूर्व पार्टी अध्यक्ष नितिन गडकरी से इस्तीफा देने को कहा और सीबीआई के निदेशक की नियुक्ति पर पार्टी के रुख की खुली आलोचना की थी, तब भी यही धमकी दी थी कि है किसी में हिम्मत कि उनके खिलाफ कार्यवाही कर सके। गडकरी के पूर्ती उद्योग समूह में निवेश की अनियमितताओं के आरोपों पर जेठमलानी ने सार्वजनिक रूप से यह कहा था कि पाक साफ साबित होने तक उन्हें अध्यक्ष पद से इस्तीफा देना चाहिए। वह पार्टी के लिए बड़ा कठिन समय था, जब अरविंद केजरीवाल की ओर से भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी पर सीधे हमले किए जा रहे थे और पूरी भाजपा उनके बचाव में आ खड़ी हुई थी। ऐसे बुरे वक्त में उनका यह कहना कि वे भाजपा अध्यक्ष रहते हुए गडकरी द्वारा लिए गए गलत फैसलों के सबूत पेश करेंगे, तो यह पूरी पार्टी को कितना नागवार गुजरा होगा।
उनकी इस प्रकार की हिमाकत पर उन्हें निलंबित किया गया, मगर बाद में जानकारी मिली कि वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और गडकरी से मुलाकात में उन्होंने भाजपा की विचारधारा में अपनी पक्की आस्था होने की बात कही तो यह संकेत मिले कि उनका निलंबन समाप्त कर दिया जाएगा। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने भी निलंबन समाप्त करने की उम्मीद जताई थी, मगर मामला लटका रहा। जब पार्टी ने इसे लंबा खींचने की कोशिश की तो उन्होंने एक बार फिर पार्टी को चुनौती दे दी है।
आपको याद होगा कि ये वही जेठमलानी हैं, जिनको भारी अंतर्विरोध के बावजूद राज्यसभा चुनाव के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे न केवल पार्टी प्रत्याशी बनवा कर आईं, बल्कि विधायकों पर अपनी पकड़ के दम पर वे उन्हें जितवाने में भी कामयाब हो गईं। तभी इस बात की पुष्टि हो गई थी कि जेठमलानी के हाथ में जरूर भाजपा के बड़े नेताओं की कमजोर नस है। भाजपा के कुछ नेता उनके हाथ की कठपुतली हैं। उनके पास पार्टी का कोई ऐसा राज है, जिसे यदि उन्होंने उजागर कर दिया तो भारी उथल-पुथल हो सकती है। स्पष्ट है कि वे भाजपा नेताओं को ब्लैकमेल कर पार्टी में बने हुए हैं।
यहां यह बताना प्रासंगिक होगा कि ये वही जेठमलानी हैं, जिन्होंने भाजपाइयों के आदर्श वीर सावरकर की तुलना पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना से की थी। इतना ही नहीं उन्होंने जिन्ना को इंच-इंच धर्मनिरपेक्ष तक करार दे दिया था। पार्टी के अनुशासन में वे कभी नहीं बंधे। पार्टी की मनाही के बाद भी उन्होंने इंदिरा गांधी के हत्यारों का केस लड़ा। इतना ही नहीं उन्होंने संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु को फांसी नहीं देने की वकालत की, जबकि भाजपा अफजल को फांसी देने के लिए आंदोलन चला रही है। वे भाजपा के खिलाफ किस सीमा तक चले गए, इसका सबसे बड़ा उदाहरण ये रहा कि वे पार्टी के शीर्ष नेता अटल बिहारी वाजपेयी के खिलाफ ही चुनाव मैदान में उतर गए।
कुल मिला का यह स्पष्ट है कि अपने आप को बड़ी आदर्शवादी, साफ-सुथरी और अनुशासन में सिरमौर मानने वाली भाजपा को जेठमलानी ब्लैकमेल कर रहे हैं।
-तेजवानी गिरधर