तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, फ़रवरी 03, 2011

मोहन भागवत जी, क्या आप दरगाह जियारत करेंगे?

परम आदरणीय श्री मोहन भागवत जी,
इन दिनों ऐतिहासिक अजमेर शहर देश के सबसे बड़े विपक्षी दल भाजपा की  च्आत्माज् राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख के नाते आपकी गरिमामय मौजूदगी का गवाह बन रहा है। दुनिया भर को सांप्रदायिक सौहाद्र्र का संदेश देने वाला यह शहर इस बात का भी गवाह रहा है कि राजा हो या रंक, हर कोई दोनों अंतर्राष्ट्रीय धर्मस्थलों तीर्थराज पुष्कर व दरगाह ख्वाजा साहब में हाजिरी जरूर देता है। ऐसे में आमजन में यह सवाल कुलबुला रहा है कि क्या आप भी इन स्थलों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करेंगे। जहां तक पुष्कर का सवाल है, अगर वहां जाते हैं तो उसमें कोई आश्चर्य नहीं होगा, या यूं कहिए कि उसमें कुछ भी असहज नहीं लगेगा, क्योंकि आप हिंदूवादी संगठन के अगुवा हैं, मगर क्या दरगाह जाएंगे, यह सवाल जरूर तनिक चौंकाने वाला हो सकता है। यह कदाचित संघ से जुड़े लोगों की मन:स्थिति को कुछ असहज भी कर सकता है कि कैसा बेहूदा सवाल उठाया जा रहा है? मगर सवाल तो सवाल है। अनुकूल जमीन पर हवा, पानी, धूप मिलते ही खुद-ब-खुद उगता है। बस फर्क सिर्फ उसे दबा देने अथवा उजागर करने का है।
वस्तुत: आप देश के सबसे बड़े हिंदूवादी व राष्ट्रवादी संगठन के शीर्षस्थ नेता हैं। देश के एक प्रमुख सत्ता केन्द्र हैं। इन दिनों चूंकि दरगाह बम ब्लास्ट में कुछ संघनिष्ठों के शामिल होने के आरोप लग रहे हैं और संघ इस वजह से लगाए जा रहे भगवा आतंकवाद के आरोप को सिरे से नकार रहा है, अत: यह सवाल बिलकुल सहज और प्रासंगिक है। यह इसलिए भी स्वाभाविक है कि बम ब्लास्ट मामले में संघ के प्रमुख पदाधिकारी इन्द्रेश कुमार भी आरोप के घेरे में आए तो संघ और भाजपा ने कड़ा ऐतराज किया। राजस्थान की मुख्यमंत्री श्रीमती वसुंधरा राजे ने तो इन्द्रेश कुमार का बचाव करते हुए यहां तक कहा कि सरकार उन्हें झूठा फंसाने का षड्यंत्र रच रही है। यह एक ऐसे व्यक्तित्व को बदनाम करने की साजिश है, जिसने राष्ट्रीय मुस्लिम मंच के माध्यम से सभी मजहबों में भाईचारा कायम करने के लिए सेतु का काम किया है। जाहिर है संघ  केवल कथनी में ही नहीं, अपितु करनी में भी इन्द्रेश कुमार के माध्यम से राष्ट्रवादी मुस्लिमों को अपने करीब करने में जुटा हुआ है। कुछ मुस्लिम जुड़े भी हैं। वैसे भी संघ की अवधारणा है कि हिंदू कोई धर्म नहीं, अपितु एक संस्कृति है, जीवन पद्धति है, जिसमें यहां पल रहे सभी धर्मावलम्बी शामिल हैं।
इसी संदर्भ में संघ के ही एक प्रमुख विचारक के विचार देखिए। उन्होंने लिखा है कि आजादी से पूर्व संघ के संस्थापक डॉ0 केशवराव बलिराम हेडगेवार की सबसे बड़ी पीड़ा यह थी कि इस देश का सबसे प्राचीन समाज यानि हिन्दू समाज राष्ट्रीय स्वाभिमान से शून्य प्राय: आत्म विस्मृति में डूबा था। इसी परिप्रेक्ष्य में संघ का उद्देश्य हिन्दू संगठन यानि इस देश के प्राचीन समाज में राष्ट्रीय स्वाभिमान, नि:स्वार्थ भावना व एकजुटता का भाव निर्माण करना बना। यहां यह स्पष्ट कर देना उचित ही है कि डॉ. हेडगेवार का यह विचार सकारात्मक सोच का परिणाम था। किसी के विरोध में या किसी क्षणिक विषय की प्रतिक्रिया में से यह कार्य नहीं खड़ा हुआ। अत: इस कार्य को मुस्लिम विरोधी या ईसाई विरोधी कहना संगठन की मूल भावना के ही विरुद्ध हो जायेगा। हिन्दू संगठन शब्द सुनकर जिनके मन में इस प्रकार के पूर्वाग्रह बन गये हैं, उनके लिए संघ को समझना कठिन ही होगा। हिन्दू के मूल स्वभाव उदारता व सहिष्णुता के कारण दुनिया के सभी मत-पंथों को भारत में प्रवेश व प्रश्रय मिला। भारत में अनेक मत-पंथों के लोग रहने लगे। भारत में सभी पंथों का सहज रहना यहां के प्राचीन समाज (हिन्दू) के स्वभाव के कारण है। उस हिन्दुत्व के कारण है जिसे देश के सर्वोच्च न्यायालय ने भी जीवन पद्धति कहा है, केवल पूजा पद्धति नहीं। संघ की प्रार्थना में प्रार्थना में मातृभूमि की वंदना, प्रभु का आशीर्वाद, संगठन के कार्य के लिए गुण, राष्ट्र के परम वैभव (सुख, शांति, समृद्धि) की कल्पना की गई है। प्रार्थना में हिन्दुओं का परम वैभव नहीं कहा है, राष्ट्र का परम वैभव कहा है।
उन महाशय के ये विचार जाहिर करते हैं कि संघ मुसलमानों को अपने से अलग करके नहीं मान रहा, भले ही उनकी पूजा पद्धति भिन्न है। आज जब कि इसी पूजा पद्धति की बिना पर कांग्रेस संघ को मुस्लिमों के विरुद्ध खड़ा माना रही है, आपके समक्ष यह चुनौती है कि आप अजमेर की सरजमीं से यह संदेश दें कि उसके आरोप निराधार हैं। कि संघ मुस्लिमों अथवा उनके धर्मस्थलों के प्रति घृणा का भाव नहीं रखता। विशेष रूप से सूफी मत की इस कदीमी दरगाह के प्रति, जो कट्टरवादी इस्लाम से अलग हट कर सभी धर्मों में भाईचारे का संदेश दे रही है।
यदि आपके दरगाह जियारत करने के सवाल को बेहूदा माना जाता है तो इसकी क्या वजह है कि दरगाह में जियारत को आने वालों में मुसलमानों की तुलना में हिंदू ही अधिक होते हैं? क्या उन्हें पता नहीं है कि उन्हें यहां सिर नहीं झुकाना चाहिए।
इसी सिलसिले में बम विस्फोट के आरोप में गिरफ्तार असीमानंद के उस इकबालिया बयान पर गौर कीजिए कि बम विस्फोट किया ही इस मकसद से गया था कि दरगाह में हिंदुओं को जाने से रोका जाए। दरगाह बम विस्फोट की बात छोड़ भी दें तो आज तक किसी भी हिंदू संगठन ने ऐसे कोई निर्देश जारी करने की हिमाकत नहीं की है कि हिंदू दरगाह में नहीं जाएं। वे जानते हैं कि उनके कहने को कोई हिंदू मानने वाला नहीं है। वजह साफ है। चाहे हिंदू ये कहें कि ईश्वर एक ही है, मगर उनकी आस्था छत्तीस करोड़ देवी-देवताओं में भी है। बहुईश्वरवाद के कारण ही हिंदू धर्म लचीला है। और इसी वजह से हिंदू धर्मावलम्बी कट्टरवादी नहीं हैं। उन्हें शिवजी, हनुमानजी और देवीमाता के आगे सिर झुकाने के साथ पीर-फकीरों की मजरों पर भी मत्था टेकने में कुछ गलत नजर नहीं आता। रहा सवाल मुस्लिमों का तो वह खड़ा ही बुत परस्ती के खिलाफ है। ऐसे में भला हिंदू कट्टरपंथियों का यह तर्क कहां ठहरता है कि अगर हिंदू मजारों पर हाजिरी देता है तो मुस्लिमों को भी मंदिर में दर्शन करने को जाना चाहिए। सीधी-सीधी बात है मुस्लिम अपने धर्म का पालन करते हुए हिंदू धर्मस्थलों पर नहीं जाता, जब कि हिंदू इसी कारण मुस्लिम धर्म स्थलों पर चला जाता है, क्यों कि उसके धर्म विधान में देवी-देवता अथवा पीर-फकीर को नहीं मानने की कोई हिदायत नहीं है।
बहरहाल, आज जब कि संघ मुस्लिम विरोधी और भगवा आतंकवाद के आरोप से मुक्त होने को तत्पर है, भले ही वह घर-घर जा कर खुलासा करे, मगर संघ प्रमुख होने के नाते आपके लिए यह विचारणीय है कि अजमेर में अपनी मौजूदगी का लाभ उठाएंगे या नहीं? क्या दरगाह जियारत करके अथवा दरगाह में सिर्फ औपचारिकता मात्र के लिए श्रद्धा सुमन अर्पित करके कोई उदाहरण पेश करेंगे? क्या भाजपा से जुड़े मुस्लिमों व खादिमों अपनी जमात में गर्व से सिर उठाने का मौका देंगे? या फिर इस सवाल को अनुत्तरित ही छोड़ देंगे?
-गिरधर तेजवानी