तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

गुरुवार, फ़रवरी 07, 2013

कहीं ये वसुंधरा धड़े की जीत का जश्न तो नहीं?


फाइल फोटो
भाजपा की नवनियुक्त प्रदेशाध्यक्ष वसुंधरा राजे का राज्य की शाहजहांपुर सीमा से लेकर जयपुर और उसके बाद जयपुर शहर में जिस प्रकार अद्वितीय व भव्य स्वागत किया गया, उससे एक ओर जहां इस बात का आगाज हो गया कि आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वसुंधरा की आंधी ने प्रवेश कर लिया है तो दूसरी ओर इसे भाजपा की अंतरकलह में वसुंधरा धड़े की जीत के जश्न के रूप में भी रेखांकित किया जा रहा है।
असल में तकरीबन अस्सी स्थानों पर स्वागत और पच्चीस स्थानों पर सभा का आयोजन ही इस बात का प्रमाण है कि यह पूरी तरह से योजनाबद्ध तरीके से किया गया, ताकि एक ओर पूरे प्रदेश में यह संदेश जाए कि जिस जलवे का नाम वसुंधरा है, वह आज भी बरकरार है। साथ ही अब तक विरोध कर रहे धड़े को भी आइना दिखा दिया जाए कि वसुंधरा के बिना राजस्थान में भाजपा क्या है। पूरा आयोजन यह साफ दर्शा रहा था मानो वसुंधरा एक बड़ी जंग जीत कर आई हों। प्रदेश अध्यक्ष बन कर जयपुर आने पर वसुंधरा का जितना भव्य स्वागत किया गया, उतना तो उनके मुख्यमंत्री बनने पर भी नहीं हुआ था।
वसुंधरा के जयपुर आगमन पर स्वागत की भव्यता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस वक्त वे पद संभालेंगी, हैलिकॉप्टर से भाजपा मुख्यालय पर लगातार एक घंटे तक पुष्प वर्षा होगी। गवर्नमेंट हॉस्टल चौराहे पर लगातार चार घंटे आतिशबाजी कर आसमान में वसुंधरा राजे लिखना, 501 थाल दीपों से आरती, स्वागत के लिए रहमान अली सरीखे गायक बुलाना, शहनाई वादन तथा हाथियों की पुष्प वर्षा का कार्यक्रम ऐसा आभास कराता है मानो किसी महारानी का अभिनंदन हो रहा हो।
वसुंधरा की धमक से संघ लॉबी में धुकधुकी
कुल मिला कर वसुंधरा के जयपुर आगमन की धमक से संघ लॉबी के कार्यकर्ताओं व टिकट के दावेदारों में धुकधुकी है कि कहीं वसुंधरा फिर से मनमानी न करने लग जाए। असल में दिल्ली में समझौते के ऐन मौके पर जैसे ही वसुंधरा को प्रदेश भाजपा अध्यक्ष और गुलाब चंद कटारिया को नेता प्रतिपक्ष बनाया गया तो वरिष्ठ भाजपा नेता घनश्याम तिवाड़ी वहां से चले गए। इससे यह संदेह उत्पन्न हुआ है कि कहीं न कहीं पार्टी में असंतोष व्याप्त है। ऐसे मौके पर जब कि राजस्थान भाजपा का फैसला हो रहा था और उस फैसले तक पहुंचने में तिवाड़ी की भी भूमिका थी, तो ऐसी कौन सी जरूरी शादी आ गई कि उन्हें दिल्ली छोड़ कर जाना पड़ा। अपने बेटे-बेटी की शादी होती तो फिर भी समझ में आता, मगर किसी रिश्तेदार की शादी के लिए इतनी महत्वपूर्ण बैठक छोड़ कर चले जाना, साफ जाहिर करता है कि वे समझौते से राजी नहीं थे। हालांकि ये पता नहीं लगा कि उन्हें निजी तौर पर संतुष्टि नहीं हुई या फिर सीटों के बंटवारे पर उन्हें कोई शंका थी, मगर जिस तरह से गए, यह साफ हो गया कि समझौता तो हुआ है, मगर उसमें अब भी गांठ पड़ी हुई है। ऐसे में संघ लॉबी के नेताओं में मन में सशंय उत्पन्न हुआ है कि कहीं वसुंधरा अपने स्वभाव की तरह फिर से मनमानी न करने लग जाएं।
सब जानते हैं कि वसुंधरा एक नेता की बजाय महारानी की तरह व्यवहार करती रही हैं। उनके इस व्यवहार के कारण ही प्रदेश के अनेक वरिष्ठ नेता आहत हुए और पार्टी साफ तौर पर दो धड़ों में बंट गई। इसके बाद भी वसुंधरा के रवैये में अंतर नहीं आया। इसका सबसे ज्वलंत उदाहरण है कि राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा और भाजपा ही वसुंधरा जैसा बयान आया। इस पर विवाद भी हुआ, मगर लीपापोती कर दी गई।
खैर, अब जब कि समझौता हो चुका है, तब भी संघ लॉबी के नेताओं को आशंका है कि उनका सम्मान बना रहेगा अथवा नहीं। कहने को भले ही वसुंधरा यह कह रही हैं कि सबको साथ लेकर चलेंगे, मगर जैसा उनका मिजाज रहा है, कहीं ऐसा न हो कि वे पूरी तरह से मनमानी न करने लग जाएं। निवर्तमान प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी के एक बयान से भी आशंका उत्पन्न हो रही है कि वसुंधरा कहीं सब पर हावी न हो जाएं। इस बयान में उन्होंने आशा जताई कि वसुंधरा सब को साथ लेकर चलेंगी, यानि कि उन्हें कहीं न कहीं डर तो है ही। उन्हें इस बात का भी अफसोस रहा कि उनके कार्यकाल में संगठन मंत्री का अभाव था, वह अगर होता तो बात ही कुछ और होती।
धरातल पर भी जिस प्रकार वसुंधरा लॉबी के दावेदारों के चेहरों पर रौनक आई है और संघ लॉबी के दावेदारों के चेहरों से साफ झलक रहा है कि वे ठगे गए हैं, उससे स्पष्ट है कि संघ लॉबी के दावेदारों को अपनी टिकटों पर संकट नजर आ रहा है। वैसे बताया ये जा रहा है कि संघ लॉबी को कुल तीस सीटें देने का मोटे तौर पर समझौता हुआ है, मगर संघ लॉबी को डर है कि ऐन वक्त पर वसुंधरा ज्यादा अड़ाअड़ी न करें। अब ये तो वक्त ही बताएगा कि संघर्ष विराम के बाद भी राख की गरमाहट क्या रूप लेती है।
-तेजवानी गिरधर