तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, अगस्त 31, 2014

राजस्थान में नेतृत्व परिवर्तन की सुगबुगाहट

हालांकि राजस्थान में श्रीमती वसुंधरा राजे के नेतृत्व में प्रचंड बहुमत से भाजपा ने कामयाबी हासिल कर सत्ता हासिल की है और ऐसे में इसकी अस्थिरता की कल्पना करना भी नासमझी कहलाएगी, मगर राजनीति हल्कों में इस किस्म की चर्चा आम है कि भाजपा हाईकमान राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की संभावनाएं तलाश रहा है अथवा एक गुट विशेष वसुंधरा को अपदस्थ करने की फिराक में है।
बेशक ऐसी बात कपोल कल्पित ही लगती है, मगर जिस प्रकार आठ माह बीत जाने के बाद भी पूर्ण मंत्रीमंडल गठित नहीं हो पाया, उससे इसकी आशंका तो महसूस की ही जा रही है कि जरूर केन्द्र व राज्य में कहीं न कहीं कोई गतिरोध है। संभव है ऐसा मंत्री बनाने को लेकर पसंद-नापसंद को लेकर है। ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा हाईकमान विशेष रूप से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी श्रीमती वसुंधरा को फ्रीहैंड देने के मूड में नहीं हैं। और इसी को लेकर खींचतान चल रही है। एक ओर जहां प्रचंड बहुमत से भाजपा को जिताने वाली वसुंधरा कम से कम राजस्थान में अपनी पसंद का ही मंत्रीमंडल बनाना चाहती हैं, वहीं केन्द्र में सत्तारूढ़ हो कर मजबूत हो चुकी भाजपा अपनी हिस्सेदारी, जिसे कि दखल कहना ज्यादा उपयुक्त होगा, रखना चाहती है। असल में वे दिन गए, जब केन्द्र में भाजपा विपक्ष में और कमजोर थी और वसुंधरा विधायकों के दम पर उस पर हावी थी, मगर अब हालात बदल गए हैं। केन्द्रीय नेता देश की सरकार चला रहे हैं। वे ज्यादा पावरफुल हो गए हैं। ऐसे में वे राजस्थान के मामले में टांड अड़ा रहे हैं। इसी अड़ाअड़ी के बीच ये चर्चा हो रही है कि मोदी राजस्थान में अपनी पसंद का मुख्यमंत्री बनाना चाहते हैं, जो उनके इशारे पर काम करे, वसुंधरा की तरह आंख में आंख मिला कर बात न करे। बताया जाता है कि मोदी की शह पर प्रदेश भाजपा के पूर्व अध्यक्ष ओमप्रकाश माथुर मुख्यमंत्री की कुर्सी हथियाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। कहने की जरूरत नहीं है कि माथुर मोदी के कितने करीबी हैं। इस सिलसिले में तकरीबन सत्तर विधायकों की एक गुप्त बैठक भी हुई और जोड़तोड़ की कवायद चल रही है। मसले का एक पहलु ये भी है कि मोदी पूरे देश में अपने हिसाब से ही जाजम बिछाना चाहते हैं। केन्द्रीय मंत्रियों पर शिकंजे और अपने ही शागिर्द अमित शाह को भाजपा अध्यक्ष बनवाने से यह साफ है कि वे इंदिरा गांधी वाली शैली में काम कर रहे हैं। आपको याद होगा कि इंदिरा गांधी के सामने जा कर बात करने के दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री उनकी भृकुटी के अंदाज का पूरा ख्याल रखा करते थे।
खैर, मोदी की शह पर राज्य में अंडरग्राउंड चल रही हलचल कितनी कामयाब होगी, यह कहना मुश्किल है, मगर इससे कम से कम वसुंधरा जरूर अचंभित हैं। हालांकि वे इतनी चतुर राजनीतिज्ञ हैं कि एकाएक कोई बड़ा बदलाव नहीं होने देंगी, मगर इतना जरूर है कि पिछली बार की तरह वे शेरनी की शैली नहीं अपना पा रही हैं। दमदार नेतृत्व के बावजूद उनके ओज में आई कमी को साफ तौर पर देखा जा सकता है। असल में पहले जब सीमित विधायक थे, तब उनका उन पर एकछत्र राज था, मगर इस बार ढ़ेर सारे विधायकों को संभालना आसान नहीं रहा है। उसमें आरएसएस लॉबी के विधायक लामबंदी कर रहे हैं, जो कि वसुंधरा के लिए सिरदर्द है। जो कुछ भी हो, मगर आने वाले दिनों में कुछ ऐसा साफ झलकेगा कि केन्द्र वसुंधरा पर शिकंजा रखना चाहती है, ताकि वे एक क्षत्रप की तरह मनमानी न कर पाएं।
-तेजवानी गिरधर