तीसरी आंख

जिसे वह सब दिखाई देता है, जो सामान्य आंखों से नहीं दिखाई देता है

रविवार, अक्तूबर 21, 2012

दिग्विजय के सवालों पर अरविंद की बोलती बंद


इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के सुनियोजित सहयोग से राजनीतिक हस्तियों पर सीधे हमले कर हंगामाश्री बने अरविंद केजरीवाल की बोलती बंद है। कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने जैसे ही उनके व्यक्तिगत व सार्वजनिक जीवन से संबंधित सवाल उठाए हैं, उनका जवाब देते उनसे नहीं बन रहा। अपनी पादर्शिता की ढिंढोरा पीटने वाली टीम केजरीवाल दिग्विजय के सवालों पर लीपापोती करती नजर आ रही है। केजरीवाल जानते हैं कि अगर जवाब दिया तो उनके आदर्शों की पूरी पोल खुल जाएगी और सवाल दर सवाल उठेंगे तो सारी छकड़ी भूल जाएंगे, सो बहाना ये बना रहे हैं कि पहले दिग्विजय अपने आकाओं सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह व राहुल में से किसी को उनसे खुली बहस के लिए राजी करें, तब वे जवाब देंगे।
असल में वे जानते हैं कि दिग्विजय सिंह बिना अध्ययन के हवा में सवाल नहीं उठाते। उनके सवालों पर भले ही लोग खिल्ली उड़ाते हुए अपशब्दों का इस्तेमाल करते हैं, पागल करार देते हैं, मगर बाद में खुलासा हो जाता है कि उनके सवाल में दम था। केजरीवाल जानते हैं कि वे दिग्विजय सिंह से अटके तो उनके सवालों के जवाब देते खुद की चाल ही भूल बैठेंगे। हालांकि उनका तर्क ये है कि दिग्विजय के सावलों में से एक भी सवाल देश से जुड़ा नहीं है, इसलिए जवाब देने की कोई जरूरत नहीं, मगर सच ये है कि कई सवाल उनके आंदोलन व उनके एनजीओ की पोल खोलने वाले हैं। हालांकि वे कहते हैं कि दिग्विजय सिंह जनता के करप्शन के मुद्दे से ध्यान हटाना चाहते हैं, मगर सच ये भी है कि खुद केजरीवाल भी देश के अन्य सभी जरूरी मुद्दों से ध्यान हटा कर केवल अपनी भावी राजनीतिक पार्टी को चमकाने में ही जुटे हुए हैं।
टीम केजरीवाल के अहम सदस्य संजय सिंह कह रहे हैं कि हमने 15 मंत्रियों से सवाल पूछे, लेकिन हमें एक भी सवाल का जवाब नहीं मिला। सरकार की जवाबदेही जनता के प्रति है तो उसे सामने आकर खुली बहस करना चाहिए। मगर उनके इस तर्क से केजरीवाल पर उठे सवालों के जवाब न देने का कोई ठोस आधार नहीं बनता। चलो, वे 15 मंत्री तो चोर हैं, भ्रष्ट हैं, मगर केजरीवाल तो ईमानदारी की मिसाल हैं, वे क्यों मंत्रियों जैसा रवैया अपना रहे हैं?
दरअसल व्यवस्था परिवर्तन के नाम पर लोगों को सब्ज बाग दिखा कर चर्चित हुए अरविंद केजरीवाल जब अपने राजनीतिक एजेंडे पर आए, तब तक तो ठीक था, मगर खुद को महान व ईमानदारी का पुतला साबित करने के लिए जैसे ही राजनीतिक शख्सियतों पर सीधे हमले पर उतारु हुए, उनका घटियापन खुल कर सामने आ गया। अगर ये मान भी लिया जाए कि दिग्विजय सिंह घटिया व अविश्वसनीय हैं, तो वे तो हैं ही इसी रूप में चर्चित, मगर इससे केजरीवाल की महानता तो स्थापित नहीं हो जाती। लब्बोलुआब, केजरीवाल को पहली बार सेर को सवा सेर मिला है। अब आया है ऊंट पहाड़ के नीचे।
-तेजवानी गिरधर